बहुत बार सुना है कि बुढ़ापे में लोग बच्चे से हो जाते हैं॥किन्तु जान पड़ा है कि बचपन और बुढ़ापे से परे भी एक स्टेशन होता है जहाँ मनुष्य उम्र का खूंटा छुड़ाकर सब स्टेज एक साथ पार करता जाता है, आगे पीछे की दिशाओं का कोई बोध नहीं रहता कोई भी कदम कहीं भी पड़ सकता है | पता भी नहीं चलता किस क्षण वह किस आयु की शिला पर खड़े होकर अपनी दुनिया को देख रहे हैं-और वह दुनिया भी एक जगह स्थिर नहीं रहती…
जबरदस्ती नहीं होती कि साथ बैठने का मतलब एक दुसरे से बोलना ही हो.........
कभी-कभी तो हमें याद भी नहीं रहता कि हम साथ बैठे हैं
जबरदस्ती नहीं होती कि साथ बैठने का मतलब एक दुसरे से बोलना ही हो.........
कभी-कभी तो हमें याद भी नहीं रहता कि हम साथ बैठे हैं
जब दो लोग बहुत दिनों तक साथ रहते हैं, तो अक्सर ऐसा भ्रम होता है कि वे एक दुसरे से को सुन रहे हैं, हालाँकि उनमे से बोल कोई भी नहीं रहा होता है ..........................
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