रात भर बरसी बूंदों का फर्श पर इकठ्ठे पड़े रहना दिखाता है कि जब खूब बहता है पानी तो ठहर भी जाता है एक जगह पर यह दिखाने को कि बहना भी एक तरह से भर जाना होता है जैसे भर जाते है नदी तालाब झील और दरिया और मन, इंतज़ार तो रहता है सूखने का और फ़िर उद्दाम वेग से बहने का चाहे फ़िर वो नदी हो या भावनाएं क्योकि एक जगह ठहरने से मुखर हो जाती है अतीत की वो सब बातें जिसे हम सडन कहते है बस बहना है इस बहाव में आगे और बहुत आगे(मन की गांठे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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