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जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना.


ये मसाइले तसव्वुफ़, ये तेरा बयान ग़ालिब
झे हम वली समझते, जो न वादाख्वार होता!!
बेचैन बहुत फिरना, घबराए हुए रहना
इक आग सी जज्बों की दहकाए हुए रहना.

आदत सी बना ली है तुमने तो मुनीर अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना.

Comments

Rahul Paliwal said…
आदत सी बना ली है तुमने तो मुनीर अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना....

बहुत खूब..
कुछ अपना भी हाल ऐसा हैं.
तू बता तेरा कैसा हैं.
हम तो उकता ही चुके.
तू कुछ अपनी कह, तो मेरे पग रुके.

Regards
Rahul

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