हुए हैं कई ब्लास्ट
मरे हैं कई लोग
सूनी हो गयी कई गोद ,
उजड़ गयी कितने मांग फिर से
सो गयी हैं कई साँसे फिर से
इस पर तुम कुछ लिखोगे नहीं भैया
कल छुट्टन कह रहा था
बाबूजी भी कह रहे थे
मिश्रा के पान की दुकान पे भी
सबकी बैठक बंद हो गयी है
शर्माजी के चौपाल पे ताँता था लोगो का
पर आवाजाही ख़त्म हो गयी है
अपनी गली भी सूनी-सूनी हो गयी न भैया
कल छुट्टन कह रहा था
टीवी पे देखत रहे
एक नेता बोलत रहा की
मुसलमानों का हाथ है
कोई बोला की हिन्दुओं की सियासी चाल है
पर जो मरे वो इन्सान है न
उसकी फिक्र किसे है भैया
कल छुट्टन कह रहा था
सलमा के अब्बू का पता नहीं है
राधा की अम्मा भी गुम है कही
खन्नाजी के घर में भी कोई घायल हुआ
हर तरफ रोना-धोना जारी है
मन बड़ा अशांत हो रहा है मेरा
जिम्मेदार कौन है इन सबका भैया
कल छुट्टन कह रहा था
बड़ा अजीब लगे
यहाँ तो लाशों की भी राजनीति है
सबमें है गुस्सा पर चुप सारी आबादी है
कुछ मोमबत्तियां इनके नाम पे जलेगी
कुछ धरने किये-कराये जांयेंगे
फिर कुछ दिन सब यूँ ही भूल जायंगे ना भैया
कल छुट्टन कह रहा था
ना जाने कितने चेहरे इस धुंध में खो गए हैं
पर उन्हें कोई ढूंढता नहीं
क्यूंकि वो अपने खून नहीं है
क्या एक दिन किसी ब्लास्ट में
मैं भी यूँ ही मर जाऊंगा
क्या तब तुम जागोगे भैया
कल छुट्टन कह रहा था
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