उसे लगता था कि उसकी दो कोढ़ी की सुंदरता से देश हिल जाएगा और वो सब एजेंसियों को अपनी और खिंच लेगी पर कहा हो पाता है सब दूकान खोली थी कि बुढापे में एकाध ही सही पदमश्री मिल जाए पर जवानी में इतनी खराब हो गयी त्वचा कि बस किसी काम नहीं आई हां गरीब गुर्गे ज़रूर उसे माताजी कहते है इलाके के टुच्चे अधिकारी भी कृत्रिम सम्मान देते है पर अब पदमश्री ना मिलने का दुःख सालता है (एनजीओ पुराण भाग ७०)
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