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Showing posts from April, 2011

एनजीओ पुराण भाग ७०

उसे लगता था कि उसकी दो कोढ़ी की सुंदरता से देश हिल जाएगा और वो सब एजेंसियों को अपनी और खिंच लेगी पर कहा हो पाता है सब दूकान खोली थी कि बुढापे में एकाध ही सही पदमश्री मिल जाए पर जवानी में इतनी खराब हो गयी त्वचा कि बस किसी काम नहीं आई हां गरीब गुर्गे ज़रूर उसे माताजी कहते है इलाके के टुच्चे अधिकारी भी कृत्रिम सम्मान देते है पर अब पदमश्री ना मिलने का दुःख सालता है (एनजीओ पुराण भाग ७०)

एनजीओ पुराण भाग ६९

भोजन का अधिकार एक बड़ा मामला था देश में जब साले गरीबो के बच्चे भूख से मरने लगे वो आया और खूब बड़ी मीडिया की टीम लेकर आया ताकि इस पिछड़े प्रदेश की सरकार को जगा सके बड़ी धाँसू पत्रकार वार्ता थी बच्चो की मौत का क्या रोना धोना था फिर उसके बाद भोजन भी गजब का था, सबने देखा कि उसने चिकन का सिर्फ एक हिस्सा खाकर छोड़ दिया थाली में कि उससे अब खाया नहीं जाता बस ३-४ प्रकार के ज्यूस पीता रहा (एनजीओ पुराण भाग ६९)

एनजीओ पुराण भाग ६८

दोनों मिले एक लंबे अरसे बाद, फिर चाय पी साथ साथ, फिर गिला शिकावा हुआ साथ, दोनों ने बोस को गाली दी फिर दोनों ने सब दुकानों को गाली दी और अंत में सोचा कि कुछ करते है, फिर एक नई दूकान पर साझा समझ बनी तेरे मेरे परिवार को मिलाकर तो सब हो ही जाएगा ७ लोगो से नई दूकान बनती थी और बस मामला फिट हो गया दोनों ने फिर शानदार दारू पी और अगली बार मिलने के लिए बिछड गए (एनजीओ पुराण भाग ६८)

एनजीओ पुराण भाग ६७

उसने कहा में तुमसे प्रेम करती हूँ और उसने स्वीकृती दे दी, बस फिर क्या था दूकान पर रोज प्रेम प्रदर्शन के ठेले लगने लगे और सारे मजदूर ताकते रहते सांझ सवेरे संमाज में प्रेम के बिना कुछ नहीं हो सकता यह सिद्ध कर दिया था इन दोनों ने देश के बेहतरीन कालेज से आये थे, सो वर्जना क्यों मानते, सारे जवान होते कस्बो के लिए ये दोनों आदर्श थे, एक दिन दोनों यूएन चले गए छोड़ गए अपने पापों की पोटली और किस्से कहानिया (एनजीओ पुराण भाग ६७)

एनजीओ पुराण भाग ६६

बहुत ढुलमुल आदमी था वो कहते थे कि वो बिन पैंदी का लौटा था और उसका अपना कोइ बेस नहीं था, ना विचारधारा का नाही समझ का, बस वो हर तरह के काम में शामिल हो जाता था और एक प्रखर बुद्धिजीवी की तरह से बड़ी संजीदगी से बिहेव करता था. एक दिन किसी ने उसे आईना दिखा दिया फिर क्या था वो भड़क गया फिर उसने सारी दुकानों को चुनौती दे डाली आजकल वो भारत सरकार की एक समिति में सरगना है(एनजीओ पुराण भाग ६६)

एनजीओ पुराण भाग ६५

कस्बे में जब से वो बड़े शहर की हवा खाकर आई है पढाई के बहाने से तो सारे लोगो के होश उड़ गए है इसकी चाल ढाल से कस्बे के परिवार अपनी जवान होती लड़कियों को सम्हाल कर रखते है, हां एक फ़ायदा हुआ है कि वो सारे विभागों में हर तरह का काम कर सकती है उसके घर में देश भर की दूकान चलाने वाले आते जाते है और गहरी पैठ के कारण वो भी कस्बे की समाजसेविका है आजकल और फिर बाकि तो ठीक ही है (एनजीओ पुराण भाग ६५)

एनजीओ पुराण भाग ६४

बहुत खुली थी और सबके साथ एक समान व्यवहार रखती थी, बाजार की गहरी समझ थी सो किसी नए माहौल में ढलना उसके लिए आसान होता था, विदेशो में या बड़े शहरों में पढ़े लिखे होने से बाकी सारी वर्जनाये तो दूर हो ही जाती है, सो उसे किसी बात से परहेज नहीं था बस था तो सिर्फ उसके अहम का और एक झूठे जगत के मिथ्या होने का, एक दिन भाग गयी वो विदेश किसी दूकान वाले के साथ और वुमन लिब का ख्वाब सच हो गया (एनजीओ पुराण भाग ६४)

एनजीओ पुराण भाग ६३

बाजारों में काफी रौनक थी और सब सजी धजी दुकानों में माल की बिक्री जम कर हो रही थी तरह तरह के माल मौजूद थे और बेचने वाले भी जैसे जादूगर थे सब कुछ बेच देते थे एक बार तो दोस्त यार, परिवार को भी बेच दिया दूकान की प्रतिबद्धता जबरदस्त थी सब लोग एक दूसरे को जितना नीचा दिखा सकते थे उतना तो कर ही देते थे बस हद तो तब थी जब इन्होने अपना जमीर भी बेच दिया रीढ़ की हड्डी जो नहीं थी (एनजीओ पुराण भाग ६३)

एनजीओ पुराण भाग ६३

बाजारों में काफी रौनक थी और सब सजी धजी दुकानों में माल की बिक्री जम कर हो रही थी तरह तरह के माल मौजूद थे और बेचने वाले भी जैसे जादूगर थे सब कुछ बेच देते थे एक बार तो दोस्त यार, परिवार को भी बेच दिया दूकान की प्रतिबद्धता जबरदस्त थी सब लोग एक दूसरे को जितना नीचा दिखा सकते थे उतना तो कर ही देते थे बस हद तो तब थी जब इन्होने अपना जमीर भी बेच दिया रीढ़ की हड्डी जो नहीं थी (एनजीओ पुराण भाग ६३)

एनजीओ पुराण भाग ६२

बहुत पिछड़े इलाके से आया था वो बहुत ख्वाब लेकर और उम्मीदे लेकर कि इस दूकान पर उसकी सारी समस्याए खतम हो जायेगी पर यहाँ आकार भी उसे उन सभी तानो का सामना करना पड़ा कि वो उस समुदाय से है और फिर जाति और वर्ण तो खत्म नहीं हो सकता बस वह सहता रहा एक दिन वह भाग गया और फिर संसार में लौट गया और सारी दुकानों से नफ़रत करने लगा (एनजीओ पुराण भाग ६२)

एनजीओ पुराण भाग ६१

मुन्ना बहुत खुश था अब वो बड़ी दूकान पर जा रहा है पर अपनी योग्यताओं को लेकर सशंकित था पर इतना तो पक्का था कि वो नौकरी के लिए कुछ भी कर सकता था और उसने किया भी जी हूजूरी, चाटुकारिता, गुलामी, और रिश्वत जैसे भी हथियार अपनाए हाँ इसमें कुछ पाने लोगो से जरूर पंगा हो गया पर साला दूकान पर जाने के लिए ये सब तो लाजमी है सो काहे का डर और काहे का संकोच बस लग गया मुन्ना (एनजीओ पुराण भाग ६१)

एनजीओ पुराण भाग ६०

छोटे कस्बे में अजीब से कपडे में कोई भी आता तो सारे ऑटो वाले समझ जाते थे कि ये भी उसी दूकान पर जायेंगे जहां वैसे ही लोग रहते है वैज्ञानिक चेतना के नाम पर कस्बे में कुछ ही करते थे खग्रास सूर्य ग्रहण या ओजोन लेयर के प्रभाव, पर बड़े धाँसू लोग थे बड़े बढ़िया फेब इंडिया के कुर्ते पहनते थे और चेहरे से ही शैतानी टपकती थी ये बाद में पता चला कि शहर के निर्णायक लोग थे और सारे जिले का सुधार करने के लिए यहाँ आये थे बाहर से, ऊँचे लोग ऊँची पसन्द(एनजीओ पुराण भाग ६०)

एनजीओ पुराण भाग ५९

झूठ बोलना उसकी नौकरी में शामिल था वो सब्जबाग दिखाए था धीरे धीरे वो खुद कब इन ख्वाबो में फंस गया उसे पता ही नहीं चला फिर वो कामरेडों सी बाते करने लगा और मार्क्स और चे गवारा की दुनिया में रहने लगा और उसे लगा कि बस अब वो भी प्रदेश का कर्मवीर हो जाएगा और पार्टी का कार्ड उसे एक नई दुनिया में ले जाएगा, पर पत्नी की डिमांड पर वो कर्तव्य परक पति बन गया और फिर एक यूएन की नौकरी करने लगा आजकल वो आदिवासी संस्कृति का विशेषज्ञ है(एनजीओ पुराण भाग ५९)

एनजीओ पुराण भाग ५८

एक बीयर बार में जब थकान निकालने के लिए जब वो गया तो देखा कि वहाँ सात आठ लड़किया भी " सर्व " कर रही थी मुह से लार टपकने लगी और वो देर तक बैठा सोचता रहा कि महिला उत्थान कैसे होगा फिर अचानक उसने निर्णय लिया कि आज वो इन सबका दुःख दूर कर ही देगा फिर तो बस उसने अपना विसिटिंग कार्ड निकाल कर बाँट दिया सब में और फिर कुटील मुस्कान के साथ निकल गया कि कोइ तो आयेगी अपना उत्थान करने(एनजीओ पुराण भाग ५८)

एनजीओ पुराण भाग ५७

छः फूट का गजब का बन्दा था वो, उसका आभा मंडल जबरदस्त था, देश की सेवा में उसने पूरी जिंदगी लगा दी थी कई समितियों को हेड किया, रपट लिखी, और आज भी वो गरीबी पर काम करता है पर ये लोग उससे सीखते नहीं और बेवजह शक करते है असल में उतनी मेहनत करने के लिए बहुत कुछ करना पडता है फिर बंधी बंधाई नोकरी है तो क्यों पचड़े में पड़े हाँ रोल माडल जरूर ढूंढते है आज भी (एनजीओ पुराण भाग ५७)

एनजीओ पुराण भाग ५६

यह इस कस्बे की आखिरी रात थी जब ये सब लोग जा रहे थे देश की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने वाले थे रात गहरा रही थी सारा गम दारू के साथ निकल रहा था और आख़िरी में जब बात निंदा रस पर उतर आई तो मामला गरमा गया और फिर तो सब गुड गोबर हो गया सब धुल गया समाज और सेवा, कर्म और प्रतिबद्धता, बस रह गया तो विशुद्ध मौका और मौका (एनजीओ पुराण भाग ५६)

एनजीओ पुराण भाग ५५

भला हो बिल गेट्स का कि उसने अपना सारा रूपया भारत जैसे देश को दे दिया क्योकि यहाँ अब दुकानों को रूपया मिल नहीं रहा साली एजेंसिया देश छोडकर जा रही है.अब एइस् का काम एकदम जोरो पर है सारी दुकानों में देशी हो या विदेशी एड्स के कीटाणु जरूर मिलते है जिन शूरवीरों को मेडिकल का 'म' नहीं मालूम वो यौन शिक्षा के जनक बन गए है. अच्छा है दुकानों के लिए चंदे की तो व्यवस्था हो गयी है वरना क्या होता (एनजीओ पुराण भाग ५५)

एनजीओ पुराण भाग ५४

उस कामरेड की दूकान पर कई ऐसे ही कई दो कौड़ी के मध्यमवर्गीय थे और इन ससुरो की वजह से समाज में क्रान्ति नहीं आ पा रही थी, कामरेड परेशान थे और समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे सो उन्होंने एक नई दूकान बनाई जिसका नाम रखा " सहयोग " बड़ा मजेदार था काम इस दूकान का सब कुच्छ यहाँ मिलता था और संडास बनाने से लेकर निरोध तक बाँटते थे आखिर रूपया ही तो ज़िंदा रखेगा कामरेड को(एनजीओ पुराण भाग ५४)

एनजीओ पुराण भाग ५३

खूब बड़े बड़े सपने लेकर वो आई तो थी यहाँ इस शहर में कि कुछ काम करेगी और नाम करेगी पर यहाँ आकार उसने अखाड़े देखे और बड़े बड़े पहलवान भी देखे जो दंड, मुदगल, लाठी भांजते थे पत्रकारों की लंबी फौज इनके पीछे चलती थी और दान अनुदान लेने देने वाले भी इन दुकानों पर आते जाते थे एक डेढ़ साल में वो इतनी घबराई कि भाग गयी और फिर उसने विधिवत समाजसेवा शिक्षा का पाठ पढ़ा आजकल वो देश की राजधानी में ज्ञान बांटती है(एनजीओ पुराण भाग ५३)

एनजीओ पुराण भाग ५२

वो दिल्ली से पत्रकारिता पढकर आया था और इसी दूकान में लग गया, खूब झमाझम भाषण देता और जमकर विचारधारा का बखान करता. बाद में पता चला कि वो तो देश्प्रेमियो की संस्था का नुमाइंदा था जो इन प्रगतिशीलो के पास रहकर देशप्रेम का सबुत दे रहा था, उसे निकाल तो दिया कामरेडों ने पर बाद में प्रदेश में एक राज्य सरक्षण से जुडी दूकान पर काम करने लगा बस आजकल उसी का मालिक है(एनजीओ पुराण भाग ५२ )

एक पत्रकार का हलफनामा

हे गांधीवादी अन्ना हमें माफ करना, हम नहीं दे सकते धरना, तुम देश की खातिर लड़ रहे हो, दे रहे हो धरना, हमें माफ करना, हे भ्रष्टाचार विरोधी हमें माफ करना, हम तो हैं पत्रकार का काम है खबरें बनाना, और उन्हें एडिट करना, हे बाबा अन्ना, हमें माफ करना, हम नहीं दे सकते धरना, नहीं जा जा सकते इंडिया गेट रोशनपुरा जाकर हमें क्या करना, हम नहीं दे सकते धरना, हे अन्ना, हमें माफ करना, तुम्हारे आंदोलन का करेंगे कवरेज बढ़िया खबरें पैकेज कर करेंगे काम अपना, पर हम नहीं दे सकते धरना हे अन्ना हमें माफ करना। - दीपक राय

एनजीओ पुराण भाग ५१

बहुत हैरान परेशान था, काम की समझ तो थी नहीं और राजनीति से कोइ वास्ता नहीं था सो कुल मिलाकर उपरी माला खाली था बस शराब ही साली ऐसी चीज थी जो जिंदगी चलाने लायक अक्ल दे देती थी अब क्या करे किसी ने कहा एम्एसडब्ल्यू कर लो कुछ नहीं तो नौकरी तो मिल ही जायेगी बस फिर क्या था बन्दा प्रदेश के एकमात्र कालेज में घुस गया जुगाड से आजकल मजे में है और संसार चला रहा है सूना है दूकान भी खोल ली है और अनुदान मांगता है(एनजीओ पुराण भाग ५१ समाप्त )

एनजीओ पुराण भाग ५०

एक बड़े एक्टिविस्ट की पत्नी बनाना भी कम किस्मत की बात नहीं है और तब जब वो देश भर में घूम घूम कर ज्ञान बांटता हो और सारे प्रशासनिक अधिकारियों से दोस्ताना हो बस ये माताजी भी सबसे रिश्ते बनाती और कार्यशालाओं में महिला मुद्दों की जानकार बन गयी फिर क्या था इनकी तो तूती बोलने लगी . एक दिन घर में चोरी हो गयी रोती रही कि हाय मेरे दस हजार डालर चले गए और १३ डेबिट/क्रेडिट कार्ड भी, जय हो(एनजीओ पुराण भाग ५० समाप्त )

एनजीओ पुराण भाग ४९

इतनी खूबसूरत थी कि लगता था स्वर्ग से आई है यहाँ पिछड़े प्रदेश में आकर जम गयी, पुश्तैनी रूप से दूकान मिल गयी थी, बड़े शाहर की अंग्रेजीदा थी सो सब सम्हाल लिया बस सास के मृत्यु के बाद पूरा कब्जा हो गया था दूकान पर फिर क्या था खूब काम किया और खूब जमीन जायदाद खरीदी बेटे के एड्मिशन में भी लाखो का चन्दा दिया आखिर डाक्टर बने बिना विरासत कौन सम्हालेगा. दूकान पर परियोजनाए जारी है और खूबसूरती का मेंटेनेंस भीा(एनजीओ पुराण भाग ४९ समाप्त )

एनजीओ पुराण भाग ४८

वो अक्सर सोचता था कि जब तक समाज के लिए कुछ ना कर लू तब तक कुछ नहीं होगा, बस समाज सेवा में आ गया और जम के काम करने लगा. थोड़े ही दिनों में हवा निकल गयी जब पाला पड़ा अग्रेजी से, कंप्यूटर से और अप्रतिम कर देने वाली भाषा से तो मुन्ना के होश उड़ गए बस इसकी तो नानी मर गयी खैर मुन्ना बहादुर था उसने विधायक की जी हुजूरी करना शुरू किया और फिर समाजसेवा का धंधा(एनजीओ पुराण भाग ४८ समाप्त )

एनजीओ पुराण भाग ४७

ये दो बूढ़े अपने संघर्ष का ब्यौरा इन कर्मवीर नौजवानों के दे रहे थे और उम्मीद कर रहे थे कि बस ये रणबाकुरे जाकर कुछ कर दिखाएँगे, कक्षा में उंघते अनमने से और मोबाईल पर खेल खेलते ये कर्मवीर सोच रहे थे कि क्लास खत्म हो और सब जाकर दिल मांगे मोर की तर्ज पर कुछ छलकते जाम टकराए और फिर बस रात है और हम है. दोनों बूढ़े स्वांत सुखाय की तरह लौट गए कि बस ये ही करेंगे देश का उद्धार(एनजीओ पुराण भाग ४७ समाप्त )

Dalit Dilemma in Marathwada of Maharastra, Ref- Solapur

The Solapur city was full of hoardings and stalls of Dr Ambedkar, I was surprised to see the Dalit Expressions of Brahmanism Sanscrtization, in the way Dalits have spent money to decor their small houses and put money for the Jayanti, was really shocking. Only thing is where r the entire movement is going? This sort of programs will not lead to any solution of Social Discrimination and Exclusion and ultimately they will fall in typical system of Feudal Web for another level of Exploitation.I can understand that Marathwada region of this state has lot of influence of Dr Ambedkar but today in global world the issues are little different and the kind of Politics we are observing, is not pro-poor or pro dalit than the question is why such huge propaganda and show off? Ultimately the entire money is being captured from a dalit's pocket and he/she is paying at the cost of his daily wages? I was really shocked to see the Arti of Statue of Dr Ambedkar which Ambedkar never s...

एनजीओ पुराण भाग ४६)

उसका देश के लिए प्रेम था विवि अनुदान आयोग का रूपया लेकर वो देश भर में देश का आइडिया बेचता था बड़ा रसूखदार आदमजात था उसके भाई बंद इस नेक काम में मदद करते थे हवाई जहाज से आना जाना और देश प्रेम का ठोस काम। दो कहानी जो मंटो और स्वयप्रकाश ने लिखी थी से उसकी रोजी रोटी चलती थी पर दिल्ली में रहने से कुछ ही कहो अलग ही फर्क पडता है सो वहा रहना मजबूरी थी वरना देश के गांव की सेवा कैसे होती?(एनजीओ पुराण भाग ४६ समाप्त )

एनजीओ पुराण भाग ४५

जिंदगी भर वो बिहार के पिछड़े इलाके में नक्सलियों के साथ काम करता रहा फिर एक दिन उसकी जिंदगी में कुछ ऐसा घटा कि वो सब छोड़ कर संसार में लौट आया, अपने घर और ग्रिश्तेदारो के लिए कुछ करने की ठान ली बस यही से संसार का मोह त्याग नहीं पाए जबकि जानता था कि माया महाठगिनी पर कहा टिक पाता है कोइ माया के सामनेआजकल माया के चक्कर में देश परदेश सब चलता है और माँ लक्ष्मी की असीम कृपा है(एनजीओ पुराण भाग ४५ समाप्त )

एनजीओ पुराण भाग ४४

उसे लगता था कि देश में अब क्रांति आ ही जायेगी बस दो कदम दूर है और सारे सर्वहारा के लिए तरक्की के द्वार खुल जायेंगे, इसी जोश में वो ख्वाब बुनने लगा था कि देश में दूध दही की नदिया फिर से बहेंगी फिर क्या था वो दुगुने जोश से बाहर जाता, नया था ना, दूकान के मालिक ने कहा अबे तुझे नौकरी पर रखा है और सब कुछ ठीक हो गया तो मेरी दूकान कैसे चलेगी चुपचाप काम कर या फूट ले यहाँ से, तब से वो सिर्फ दूकान में काम करता है और कुछ नहीं(एनजीओ पुराण भाग ४४ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ४४ समाप्त

वो और ये एक ही दूकान पर थे, प्रेम होना स्वाभाविक था बस धीरे धीरे पींगे बढ़ी और इश्क ने अपना पूरा चक्र समाप्त किया, शादी तो कर ली पर ना जमाने से ना घर से स्वीकृती मिली बस एक एसडीएम को खुश करके एक कागज़ का टुकड़ा ले लिया, फिर क्या था शहर बदला दूकान बदली . यही तो है दूकान में काम करने का फ़ायदा सारे नफे नुकसान एक तरफ और समाज सेवा एक तरफ(एनजीओ पुराण भाग ४४ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ४४ समाप्त

वो और ये एक ही दूकान पर थे, प्रेम होना स्वाभाविक था बस धीरे धीरे पींगे बढ़ी और इश्क ने अपना पूरा चक्र समाप्त किया, शादी तो कर ली पर ना जमाने से ना घर से स्वीकृती मिली बस एक एसडीएम को खुश करके एक कागज़ का टुकड़ा ले लिया, फिर क्या था शहर बदला दूकान बदली . यही तो है दूकान में काम करने का फ़ायदा सारे नफे नुकसान एक तरफ और समाज सेवा एक तरफ(एनजीओ पुराण भाग ४४ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ४३

वो लड़ता रहा जिंदगी भर और आखिर में राज्य ने उसे निपटा दिया अब तो इस राज्य में कोइ भी दूकान खोलने की हिम्मत नहीं करता, हालांकि वो अब भी आदर्श तो है पर ये सब दूकान वाले सामने बोलने में उसका नाम भी लेने में कतराते है जैसे यदि नाम ले लिया तो वो भी निपट जायेंगे और बस फिर दूकान बंद दाना पानी बंद! सो सतर्क रहो और सत्ता के दल्ले बने रहो यही मूलमंत्र सीखा है इन सबने इस घटना सें(एनजीओ पुराण भाग ४३ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ४२

जे एन यू से आनी वाली सारी खूबसूरत लड़किया इसी दूकान पर आती थी और समाज सेवा के बुनियादी उसूल समझती थी, हाथो में सिगरेट, होठो पर अंगरेजी, दिमाग में फितूर और कुछ कर दिखाने का जज्बा, दूकान के लोग बड़े सेवाभावी थे और यहाँ अक्सर मेले लगते रहते थे ना ना प्रकार के मेले- प्रजनन तंत्र के मेलो से लेकर शिक्षा के मेले नई नई किताबे भी छापती थी. पिछले कई सालो से दूकान बंद हो गयी है क्योकि साले लोकल लौंडे बदमाश हो गए थे अपना हिस्सा मांगने लगे थे हर तरह के "काम" में(एनजीओ पुराण भाग ४२ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ४१

दिल्ली से आकर वो इस पिछड़े प्रदेश में बस ही गया था फिर उसने एक दूकान खोली और देश भर की प्रतिभाओं को सरकारी रूपयों पर ले आया इस दूकान पर, बहुत माल बेचा बुद्धि और कापी किताब भी, बस नेताओं से मधुर रिश्ते बन गए फिर क्या था वो देश का मेधावी बुद्धिजीवी हो गया फिर कई कई समितियों का सदस्य और आखिरी में देश के मंत्री का प्रमुख सलाहकार, आजकल वो विदेश में घूमता रहता है भारत की चिंता तो विदेश में ही होती है ना(एनजीओ पुराण भाग ४१)

एनजीओ पुराण भाग ४०

प्रदेश के इस उन्नत इलाके में उसकी चार दुकाने थी चारों के पास लायसेंस थे और देश विदेश का पैसा वो जमके लेता था, हां ये बात और थी की उसकी इमेज दुकानदारों के बीच बड़ी खराब थी, क्योकि वो काम के नाम पर मक्कारी करता था और शोषण भी करता था, एक बार पानी रोकने के ठेके में एक पुलिस वाले अधिकारी के चक्कर में आ गया, दूकान और अपनी इज्जत मुश्किल से बचाकर भागा और आज तक भाग रहा है जय हो समाज सेवको की (एनजीओ पुराण भाग ४०)

एनजीओ पुराण भाग ३९

यह प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग का बड़ा अधिकारी था, एक दिन वो रंगे हाथो नगद नारायण लेते हुए पकड़ा गया सारे लो तो खुश थे कि चलो ये भी टपका पर छोटी बड़ी दुकान वालो का नुकसान हो गया कि जो इसे कमीशन देकर चालित स्वास्थय का वाहन चलाते थे अब दूकान और घर का दानापानी कैसे चलेगा उधर मंत्री भी घर और ये भी घर दूकान वाले परेशान है और ठेके दार भी समाजसेवा के(एनजीओ पुराण भाग ३९ समाप्त)

एनजीओ पुराण ३८

राष्ट्रीय स्वास्थय मिशन में काम करके काम इतना हावी हो गया था उस पर की वो सबको एक ही सांचे में देखता था घर हो या बाहर, सब तरफ उसे लोग टारगेट ही नजर आते थे, उसे हर जगह कमीशन दीखता था, और देश के स्वास्थ्य पर बात करते समय उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ जाती थी, आखिर यह स्वाभाविक भी था क्योकि इसी से तो उसने कार, घर, धन दौलत और सब इकट्ठा किया था. आजकल वो एक नई नौकरी में है पर उस चोले से निकल नहीं पा रहा है बेचारा, उसकी प्रतिबद्धता जबरदस्त है कोइ जवाब नहीं (३८ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग 36

वे दोनों एक बड़ी दुकान पर मुलाजिम थे फिर दुकानदार से झगड़ा हो गया क्योकि दुकानदार की बीबी जो आ गयी थी सो वो सब धंधा मेनेज करने लगी, सो इन दोनों ने अपनी दूकान खोल ली, सारे प्रशासनिक अधिकारी दोस्त थे सो दूकान चल निकली, बस ये नए लौंडो को रखते खूब जम के शोषण करते और अयोग्य बताकर निकाल देते, सरकारी दस्तावेज बनाने में माहिर थे सो जम के ठेका मिलता बस दूकान चल निकली आजकल सरकारी काम के विशेषज्ञ माने जाते है शहर की राजधानी में सूना है दूकान जम गयी है.(एनजीओ पुराण भाग 36 समाप्त) )

एनजीओ पुराण भाग ३६

ये तारों भरी शाम थी जब सारा मजमा उस पांच सितारा होटल में इकट्ठा था और देश की गरीबी पर बात हो रही थी, महंगी दारू के दौर के साथ समुद्री भोजन भी परोसा जा रहा था, अचानक एक बेबस गरीबी सा आदमी उस बैठक में घूस गया बस फिर क्या था लोगो ने क्या नहीं किया उसके साथ सारे लोग पिल पड़े उस पर और जब तक वो गया नहीं वहाँ से उन सब संभ्रांत लोगो ने खाने को छूआ नहीं गरीबी पर कार्यशाला मजेदार "ड्रिंक्स' के साथ समाप्त(एनजीओ पुराण भाग ३६ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ३५

यह विचित्र झगड़ा था दो समाज सेविकाए मिलकर तीसरी को पीट रही थी और लात घूंसे चला रही थी कारण सिर्फ इतना था कि तीसरी महिला सशक्तिकरण के नाम पर बनी दूकान अपने पति के साथ मिलकर घर ले जाना चाहती थी और वही से आपरेट करना चाहती थी बस ये दोनों जो अनुदान देने वाली थी, भिड ली उससे, फिर क्या था दफ्तर में लग गए ताले और रोज घमासान होने लगा और मामला पुलिस तक पहुंचा. हो गया था भैय्या महिला उत्थान देश का (एनजीओ पुराण भाग ३५ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ३४

गांव में जब वो ग्यारहवी की परीक्षा में पूरक पा गया तो भाग आया एक संस्था में फिर वहा चाय पानी बनाने लगा और धीरे धीरे सब "काम" सीख गया, एक लडकी पटाई, पर मामला जमा नहीं फिर अपनी जाति की नौकरी वाली लडकी से शादी कर ली, कई जगह काम किया और खूब नक़ल करके लेख लिखे, छात्रवृति कबाड़ी और पुरस्कार भी जुगाड़े, बीबी की नौकरी थी ही, बस तीन चार मकान बना लिए, आजकल प्रदेश के व्यापारिक नगर में ज्ञान की दूकान चलाता है जय हो(एनजीओ पुराण भाग ३४ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ३३

देश भर की सताई और घर परिवारों से निकाली महिलाए यहाँ काम करती थी, इनमे वो भी शामिल थी जिनकी चाईस भी अलग थी, सो सारी की सारी मिलकर देश भर की महिलाओं को सशक्त करती थी, हवाई जहाज में घूमना और बड़े धाँसू काम करना-सम्मलेन और बैठके, बस मजेदार था. इनकी नेता भी एक मजबूर औरत थी बस उसके संपर्क खतरनाक थे सारे नेता और राजदूतो को जेब में रखती थी और खूब अनुदान बटोर लाती थी(इति एनजीओ पुराण भाग ३३ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ३२

वो सुन्दर थी जवान थी, उसके जैसी तीन और सखिया मिल गयी बस फिर क्या था समाज में " बेचारी अबलाओं" की स्थिति सुधारने निकालने निकल पडी, सारे मर्दों को हर तरीके से निपटाने लगी रोज शहर के मर्द परेशान रहते 'हम सब कर सकती है' यह स्लोगन था. सब कहते " आता ना जाता, भारत माता" पर काम जारी था. अब ये महिलाओं की सबसे प्रमुख संस्था थी लोग घर बिगाडू औरते कहते थे पर भला हो उस संस्था का जो अबलाओं को आर्थिक रूप से सबला बना रही थी(इति एनजीओ पुराण भाग ३२ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ३१

वो सारे वरिष्ठ थे, सरकारी नौकरियों से या तो निकाले गए थे या बर्खास्त हुए थे, घर में कोइ इज्जत नहीं थी रोज सुबह घूमने जाते और फिर देर तक गप्प लगाते रहते थे सरकार को और भ्रष्टाचार को कोसते हुए. बस एक दिन इस चालू बुढो ने शहर में वरिष्ठ नागरिको की एक एनजीओ बना ली बस तब से ये सब अनुभवी और समाजसेवक बने फिरते है और माल चख रहे है सरकार का और अपना बुढापा सुधार कर स्वर्ग की कामना कर रहे है(इति एनजीओ पुराण भाग ३१ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग ३०

जब वो पढके निकला तो समाज में सामाजिकता का बड़ा बोलबाला था और इज्जत थी, दूकान बनाना थी यह तो प्राण था ही. ससुरी अंगरेजी में नानी मरती थी सो एक आईडिया आया क्यों ना ऐसी लड़की से ब्याह कर ले जो सब मामला सुलटा ले बस खूब प्रयास किये पर जमा नहीं सो विजातीय से ब्याह बना लिया जो सक्षम थी निपुण थी. बस आजकल संस्था मजे में है और देश में सोहाद्र का प्रतिसाद अलग से मिलता हैी(इति एनजीओ पुराण भाग ३० समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग २९

शहर का जाना माना पत्रकार था कलेक्टर से दोस्ती यारी, और सब काम में माहिर था धीरे धीरे ठेके लेना शुरू लिए, फिर लगा कि इस साले कामधाम में मेहनत बहुत है, सोचा कि क्यों ना एक एनजीओ डाल दिया जाए, बस महिला कलेक्टर की बड़ी मेहरबानी रही. आजकल जिले के साथ राज्य भर में दूकान की बड़ी इज्जत है और रूपया पैसा अलग से है सुना है विदेशी संस्था भी मदद करती है, जय हो मीडिया की संस्था की(इति एनजीओ पुराण भाग २९ समाप्त)

महेश्वर की चार पंक्तिया

धुप में जब भी जले है पाँव घर की याद आई, सफर में जब भी दुखे है घाव घर की याद आई रेत में जब भी थमी है नाव घर की याद आई धुप में जब भी जले है पाँव घर की याद आई

एनजीओ पुराण भाग 28

वो कार्ल मार्क्स से बहुत ही प्रभावित था सो कालेज की नौकरी छोडकर इस कस्बे में आ गया था कुछ प्रयोग और नवाचार करने, बड़ा मेधावी था और जीवट भी बस पूरे जिले में घूमता रहा काडर बनाता रहा, एक दिन फुर्र हो गया और राजधानी में बस गया. सूना था कि उसके बच्चे अब सेटल हो रहे है. आजकल वो राजधानी में ही व्यस्त रहता है और ज्ञान की दूकान चलाता है और राज्य की कई समितियों में मेंबर हैै(इति एनजीओ पुराण भाग २8 समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग २७

वो इसी कसबे का रहें वाला था फिर संस्था में लग गया, बाद में पढ़ पढ़ा कर एक शोध की डिग्री भी ले ली और स्थानीय कालेज में लेक्चरार हो गया, बस मेधावी था बड़ा होनहार था सो किस्मत चल निकली कविता कहानी वगैरह करना तो शगल था ही आजकल सब करता है संस्था और कालेज, बस करता तो काम नहीं, बाकि सारे कसबे की हर गतिविधि में शामिल रहता है कहते है वो शहर के सबसे बड़ा बुद्धिजीवी है(इति एनजीओ पुराण भाग २७ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग २६

ये बहुत पुरानी बात है, गरीब आदिवासियों के लिए यहाँ काम शुरू हुआ था उन्ही की जमीन पर संस्था ने काम शुरू किया और कालान्तर में कब्जा, फिर संस्था को विदेशी रूपया मिलने लगा और संस्था के साथ राजनीतिज्ञ भी जुड गए जो बाद में सांसद बने, हाल ही में संस्था में सामुहिक विवाह का आयोजन किया जो अपने आप में मिसाल था नेक काम था भैया संस्था यही सब तो करने आई थी सामाजिक बदलाव(इति एनजीओ पुराण भाग २६ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग २५

दोनों ने प्रेम किया था एक ही संस्था में काम करते करते प्रेम होना स्वाभाविक था क्योकि संस्था के यही संस्कार थे बस घर परिवार से बगावत करके शादी कर ली फिर दूर देश के एक हिस्से में काम करने लगे, सामाजिक बंधन बांधने का काम और नेट्वर्किंग का काम बड़ा महत्वपूर्ण काम था, बस घर परिवार दूर था और सब यार दोस्त भी दूर थे, पर काम काम होता है और फिर एक दिन सब खत्म करके दोनों ने एक दूकान डाल दी अब सब ठीक है रूपया पैसा, बस कमी है तो घर परिवार की(इति एनजीओ पुराण भाग २५ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग २४

मुन्ना बड़ा मालिक भक्त था और साहब को खुश करना उसे बेहतर आता था क्योकि ये उसके खून में था घर से कुछ ही लाना हो या साहब का कोइ भी काम हो मुन्ना सहर्ष करता था क्योकि मुन्ना को मालुम था कि प्रमोशन की असली सीढ़ी सिर्फ और सिर्फ साहब है बाकी काम धाम तो सब " चुतियापा" है सो लगे रहो मुन्ना भाई की तर्ज पर वो कालान्तर में अधिकारी बन गया और आजकल वो एक बड़े पद पर साहब के साथ काम करता है जय हो(इति एनजीओ पुराण भाग २४ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग २३

छोटे शहरों से आये लोगो के लिए ये शहर एक बड़ा अचम्भा था यहाँ की कुडिया और लडके बड़े निराले थे, साले सब मजेदार बाते करते थे और खूब काम करते थे जिसे एनजीओ कहते थे रात शाम से ही गुलज़ार होना शुरू होती थी और फिर देर रात तक मार्क्स, चे गवारा पर जोरदार बहस दारू के दो पेग जाने के बाद ही होती थी. ये मुन्ना भी पीना सीख गया और फिर एक दिन गांव का ये लौंडा बुद्धीजीवी बन गया बस रोज घर जाकर बीबी से पीटता था(इति एनजीओ पुराण भाग २३ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग २२

वो देश का जाना माना कप्यूटर का दिमाग था उसे लगा कि शिक्षा में काम की जरूरत है सो उसने अपने ही नाम से एक बड़ी दूकान डाली, और अपने ही कंपनी का काफी रूपया लगा दिया फिर देश भर से बुद्धीजीवियो को इकठ्ठा किया और झकास तरीके से शिक्षा का काम शुरू किया कुछ रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारियो को, और उनके बच्चो को उसने रोजगार दिया इस तरह से वो देश का कर्मवीर बना और अब उसकी नजर पदमश्री पर है (इति एनजीओ पुराण भाग २२ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग २१

ये देश की जाना मानी संस्था थी एक जमाने में बहुत काम करती थी, फिर राज्य के प्रगतिशील मुख्यमंत्री ने इनकी दूकान बंद करवा दी जबकि इसमे कई वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जुड़े थे पर जादू चला नहीं देर तक, खैर आजकल ये वामपंथी दूसरी दूकान चलाते है और देश भर में अपने जन-माल को सप्लाय करते है और मोटा रूपया लेकर कंसल्टेंसी करते है, "खुद को आबाद किया देश बर्बाद किया" कमला भसीन का एक पुराना गाना है(इति एनजीओ पुराण भाग २१ समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग बीस

देश के चुने हउए लोग यहाँ जमा थे और पिछले २५ बरसो से एनजीओ की रोटी तोड़ रहे थे, अभी भी ये लोग देश के सबसे बड़े पूंजीपति की संस्था में प्रशिक्षण ले रहे थे और मजेदार ये था कि सब हरामखोर एनजीओ को ही गाली देते थे क्योकि इनके मन में कही दर्द था और फ्रस्टेशन था कि ये प्रशासनिक अधिकारी तो दूर एक पटवारी या शिक्षाकर्मी भी नहीं बन पाए... जय हो(इति एनजीओ पुराण भाग बीस समाप्त)

एनजीओ पुराण भाग उन्नीस

वो लगातार काम कर रहा था और उसे लगा कि अब बस आराम करना चाहिए पर पीछे इतनी जिम्मेदारिय थी कि वो चाहकर भी छोड़ नहीं पा रहा था एक दिन समय आया और उसने संन्यास ले लिया बस इस संसार को त्याग दिया जहां दो कौड़ी के टुच्चे लोग थे और सिर्फ अपने में ही मगन, और मजेदार ये था कि ये लोग सामाजिक कामो के लिए मोटा रूपया लेते थे कई बड़ी बड़ी संस्थाओं से(इति एनजीओ पुराण भाग उन्नीस समाप्त)