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मोहित ढोली तुम्हारे आगे सार्थक भविष्य है. शुभकामनाएं और ढेर स्नेह.

प्रिय मोहित 
पिछले लगभग बारह बरसों में हम कितने करीब आ गये पता ही नहीं चला तुम्हारी पढाई- आर्मी स्कूल महू,  आई आई टी रूडकी, नौकरी और इस दौरान मेरा लगातार तुमसे संपर्क हरिद्वार, शिरडी, इंदौर, महू, देवास, सीहोर, होशंगाबाद, मेरी माँ के आख़िरी दिनों में सुयश अस्पताल में तुम्हारा साथ और माँ की मृत्यु के बाद जीवन के सबसे मुश्किल समय में मेरे साथ होना  और ना जाने कहा कहा भटकते भटकते हम कितने करीब आ गये और आज अचानक तुम जब अपनी आगे की पढाई के लिए जा रहे हो तो मन बहुत व्यथित है. बहुत छोटे थे जब मै आर्मी स्कूल में तथाकथित बड़े पद पर आया था और फ़िर उसके बाद तुम्हारी जीवन में जो त्रासदी हुई उससे हम बहुत करीब आये और मैंने तुम्हे अपना पुत्र मान लिया और वो सारे एक्सपोजर दिए जो देना भी थे और नहीं भी यहाँ  तक कि अभी तीन दिन खाना बनाने की ट्रेनिंग के बहाने से तुम तीन दिन मेरे पास रहकर गये हो, मैंने यही कहा था कि अब ये क्षण जीवन में कभी नहीं आयेंगे क्योकि तुम भले ही दिल दिमाग से मेरे पास रहोगे पर ये सामीप्य कभी एक पिता को नहीं मिल पायेगा...........यह मुझे लगता है. पिछले कई बरसों से तुमने मेरा पागलपन झेला भुगता और सहा है, आज यह सब सोचकर शर्म भी आती है, एक ग्लानि भी होती है और शायद मेरे इस सबसे तुम वाकिफ भी हो, जिस बहादुरी और खुलेपन से तुमने अपनाया मुझे इस सबके बावजूद भी वह मै बयाँ नहीं कर सकता. लगता है कि जीवन में जो कुछ पागलपन और लडने की जिद्द थी वो अब खत्म हो गयी है और जैसा मैंने कहा कि अपूर्व के केस ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि अपने पागलपन में मैंने कितना नुकसान कर दिया सबका, मै, तो खैर, एक प्रायश्चित्त कर ही रहा हूँ, सारी  उम्र करता रहूंगा पर अब सब पर से विश्वास उठ गया है, यहाँ तक कि अपने आप से भी!!! जब तुम जाने वाले थे और हम रोज, हर बार मिलकर बातें करते थे तो कितना जोश होता था पर अब जब तारीख पास आ गयी है तो लग रहा है कि हाथ पांवों में जान ही नहीं है दिल दिमाग सुस्त पड गये है, इन आख़िरी दिनों में जो कुछ भी हुआ वो बेहद दुखदायी है और इस सबके लिए मै अपने आप को और अपने पागलपन को जिम्मेदार मानता हूँ. बहुत जिद्द करके समाज सेवा में आया था घर से झगड कर अपनी मरती हुई माँ को भी कुछ बता नहीं पाया था कि ऐसा क्यों जीवन जीने का निश्चय किया है, उस दिन तुमने जीवन जीने की कुछ टीप दी थी इंदौर के उस पार्क में पर अब अपराध बोध इतना है कि फ़िर से नया शुरू करने की हिम्मत नहीं है और अपूर्व प्रसंग ने बची खुची हिम्मत भी तोड़ दी है मेरी बहुत दुखी हूँ, पिछले दस दिनों से घर पर बैठा हूँ........और आज.........खैर !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
तुम्हारे आगे एक नई जिंदगी है, नए सपने, नए दोस्त, नए लोग, नई दास्तानें ......बस जाओ.... खूब पढों यश कमाओ, और अपने साथ - साथ अपनी माँ और भाई  और उस पुरे परिवार के लिए कुछ  सार्थक करो जिन्होंने तुम्हारे आज के होने में तुम्हे योग्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. मेरे जैसे लोग जीवन में आते जाते रहते है जो बिगाडते ज्यादा है.  
देश की बात तो नहीं करूँगा पर हम दुनिया के बाकी लोगों की तुलना में सच में पिछड़े है और अभी भी शिक्षा और बाकी बातें हमारी प्राथमिकता नहीं है यही मै कहना चाह रहा था कि उच्च अध्ययन करके देश समाज के लिए भी कुछ  करना होगा ताकि आने वाले पीढियां कुछ सार्थक नहीं तो कम से कम अपना पेट भर सके......मै कोई सीख नहीं दे रहा और ना ही अपेक्षा कर रहा हूँ पर एक बात कि यदि कभी कुछ हम अपने ही लोगों के लिए कर पाए कि वो कम से कम समझ ही विकसित कर ले तो पर्याप्त होगा. 
जैसा कि मैंने कहा था कि मै सच में अकेला हूँ थोड़ा बहुत था वो दोनों में बाँट दिया था पर अब नितांत अकेला रह गया हूँ मेरी जिंदगी में सिर्फ "तुम हो और तुम ही रहोगे"..............एक बेटे को मै जो भी दे सकता था देने की कोशिश की और आगे भी करूँगा, कुछ नहीं चाहिए बस अपना आख़िरी कर्तव्य निभा देना तुम जानते हो मै क्या कह रहा हूँ, बस............मेरा सारा पागलपन भूल कर यही छोड़ जाना और बस अपने सुखी और सार्थक भविष्य के लिए ईमानदारी से प्रयास करना, हाँ अनूप, अमितोष, सचिन, उत्कर्ष जैसे प्यारे लोगों  से मिलवाने के लिए तो मै धन्यवाद भी नहीं कह सकता........ये लोग मेरे लिए जीवन में बहुत कीमती है मै कोशिश करूँगा कि इनसे जुडा रहू तुम्हारे बगैर भी एकदम निश्छल रूप से साधारण रूप से पागलपन में नहीं चिन्ता मत करो........तुम्हारी इज्जत खराब नहीं होगी.

पुनीत को मै देखता रहूगा यह मेरा वादा है, बशर्ते,  यदि तुम्हारा परिवार और वो इसे अन्यथा ना ले तो............

आज जितना दुखी हूँ, कभी नहीं हुआ, शायद अपने अकेले रहने के निर्णय पर भी नहीं था.......अब मेरे पास बात कंरने के लिए, लडने के लिए और अपने पागलपन को तवज्जों देने वाला कोई नहीं है एकदम अकेला हूँ .......बस आशा यह है कि आख़िरी समय पर तुम मेरे पास हो, साथ हो हो यही आश्वस्ति जीवित रखेगी शायद मुझे............

बहुत आशीष, स्नेह और  आगे के उज्जवल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं

क्या संबोधन दूँ समझ नहीं पा रहा..........

Comments

Sandip Naik said…
....kuch kehne ko nahi hai mere paas...darr lagta hai ki kuch peeche na chut jaye...par umeed karna chahta hoon ki sab kuch thik hi hoga..

aapko jitna akela yahan lagega..shayad usse zyada akela uss naye shahar..naye desh me main rahunga..aap ka sneh..aashirwaad hi mere liye bahut hai...hum lagatar sampark me rahenge..main yeh to nahi kehta ki sab kuch pehle jaisa hi rahega..parantu meri koshish me koi kami nahi rahegi..yahi aashwasan dekar aapse vidai lena chahta hoon..iss vishwas ke saath ki hum jald hi phir milenge!!!

-Mohit

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