यह चित्र बहुत कुछ याद दिलाता है विजय, मुझे अभी पता चला कि रवि का सोनकच्छ के पास एक दुर्घटना में निधन हो गया रवि मेरे बहुत करीबी दोस्तों में से थे हमने एक जमाने में दादा यानी यशवंत व्यास के साथ नई दुनिया इंदौर में धमाल किया था धडकन का बुधवारीय अंक अदभुत निकलता था बाद में रवि ने फ्री प्रेस का हिन्दी अखबार सम्हाला था और मैंने उसमे रवि के आग्रह पर लगातार एक साल तक "कॉफी हाउस में इन दिनों " नामक व्यंग्य का कॉलम लिखा था रूपये थे नहीं फ्री प्रेस के हिन्दी संस्करण में सो रवि के आग्रह पर मै लिखता रहा था, आज यह चित्र देखकर जोशी जी के साथ अनेक बार हुई भेंट ताजा हो गयी चाहे इंदौर नई दुनिया का कार्यालय हो या माखान लाल पत्रकारिता विवि में कुलपति का दफ्तर हो.....राहुल देव जी से तो अभी रावल स्मृति कार्यक्रम में मिला था.............और इस सबमे हरसूद का डूबना एक विडम्बना ही है क्या हुआ हरसूद को डूबा कर क्या खोया क्या पाया............बहरहाल शुक्रिया और रविन्द्र जैसे होनहार दोस्त / पत्रकार को नमन.............
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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