Skip to main content

फाग, लांगुरिया और मन की लंबी यात्रा............

हवाओं में नरमी है और हवा जिस तरह से चल रही है उससे लगता है कि कुछ होने वाला है, ये लंबे दिन ये पछुआ हवाएं और खेतों से गेंहू की झूमती बालियाँ कुछ कह रही है, सडको पर चलते रहो तो लगता है कुछ दरक रहा है कुछ पिघल रहा है और दूर से चमकती हुई सड़क और सूरज के प्रकाश में लगता है मानो सब कुछ साफ़ होता जा रहा है, शाम होते होते ये सब जम जाता है. जैसे जम जाते है गहरे में कही दर्द और गुनगुनी सी संवेदनाएं. इन लंबे दिनों में सूनी दोपहर में ऊँघता है मन और डोलता है शरीर, पर कहा बस चलता है!!! दिल दिमाग में गूंजते है फाग के असुरी गीत और याद आती है रागिनिया, माच, लांगुरिया और दिलकश सूर्ख लाल पलाशों के फूल, इस सुनसान में किसी दूर बजने वाले संगीत से पूरा तन मन भगोरिया हो जाता है मन निकल पडता है उन्ही मेलो-ठेलो में, घूमने लगता हूँ किन्ही दूर तलक कोनों में...और फ़िर एक खोज और उन सभी स्मृतियों में खो जाता हूँ.... जब कभी रंगों की चटक महक आती थी, रंग बोलते थे और रंग कहते थे, रंग आसपास खड़े हो जाते थे और अपना वजूद दिखा देते थे और ये बावरा सा पागल इंसान झूमकर उन रंगों के साथ चल पडता था - हर क्षण, हर सड़क पर एक नए सफर पर हर बार-लगातार, पर अब क्या हो गया है रंग भी वही है हवाएं भी वही है और तन मन की सुध भी लगभग खो ही गयी है, पर ना रंग बोलते है, ना रंग कुछ एहसास दिलाते है और मै आज भी बावरों की तरह तुम्हे खोजता हूँ इन तेज हवाओं में सब कुछ क्षण-भंगुर होता जा रहा है और ये फाग के गीत है कि कानों में इतनी तेजी से बज रहे है कि लगता है सब कुछ खत्म कर देंगे सब कुछ........सुन रहे हो कहा हो तुम............ये फाग ..ओफ्हो बंद करो ये नगाड़े और झपताल, ये बांसुरी का क्रन्दन और शहनाई की गूँज बंद करो. कान फटे जा रहे है बंद करो भगवान के लिए बंद करो मै पागल हो रहा हूँ और मन फ़िर किसी एक लंबे सफर पर हमेशा के लिए निकल जाना चाहता है..............बंद करो........................

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही