ये जिले का सबसे बड़ा गधा प्रसाद था अपने विभाग का इसे एक बार एक गिरगिट ने सुदूर जंगल में एक समस्या निवारण बैठक में बुला लिया कि ये आए और बताए कि प्रदेश के गधा प्रसादों की चीटियों और कीड़े मकोडो की मरने की समस्या में क्या कर सकते है अब ये गधा प्रसाद अपने उल्लू को लेकर लोह्पथ गामिनी स्थल पर पहुंचा और लगा डींगे हांकने बस एक लंबी नार नवेली गाड़ी में बैठकर पहुँच गया उस बैठक में और फ़िर सुन्दर से बिल में खूब जमकर भकोसता हुआ अंदर पंहुचा जहा चूहे शेर सियार और वो मद मस्त गिरगिट भीन - भीना रहे थे लाशो पर और जुगाड कर रहे थे कि कैसे लाया जाए और माल मत्ता कि अपनी दूकान मकान की गाड़ी चलती रहे मामला अंगरेजी का था सारे चूहे शेर और सियार अंगरेजी में वाक् पटु थे और लंबी लंबी हांकने में माहिर बस यह बेचारा गधा प्रसाद टुकुर - टुकुर ताकता रहता बस शाम ढले मंदिरों और मजारो पर मत्था टेकता रहा फ़िर जाना तो था पर लोमड़ियों को देखकर उसका मन पसीज गया एक दिन और रुक गया बगैर खर्च किये "माले मुफ्त दिले बेरहम" बस फ़िर क्या था अगले दिन गिरगिट ने स्थानीय कुत्तों को उसके पीछे छोड़ डिया तो उन्होंने उसे काट काट कर नोच दिया और लगभग नंगा करके जंगल से भगाया इसलिए कहते है कि गिरगिट से दोस्ती अच्छी नहीं; चूहों, शेर, सियारों का भरोसा नहीं करना और लोमड़ियों पर पसीजना नहीं ( प्रशासनिक पुराण 42)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
Comments