मेरे दोस्तों, बंधुओ की सूची में और भी युवा है, पत्रकार है, भोपाल के गढ़ माखनलाल विवि की एक लंबी फौज है क्या वे भी लगभग इसी उहापोह में जी रहे है???
मेरी एक पोस्ट पर युवा मेधावी और कर्मठ पत्रकार Sarang Upadhyay की दुखभरी प्रतिक्रया.......बात तो सही है सूचना के युग में जब इतनी जल्दी जल्दी सूचनाएं आ रही है तो क्या करे और क्या ना करें.............
"दादा..आपने पहले भी पूछा था. मैंने कहा था न इतनी जल्दी मत बूझो कई बार मैं भी इन बिंदुओ की तरह चलता हूं..आप सोचिए न ये मेरे जैसे युवकों के लिए अजीब सी त्रासदी है कि वे केवल सूचनाओं के युग में जी रहे हैं.. खाते, पीते, सोते, जागते, रोत बैठते, सब जगह सूचनाएं, बेचारे इतनी सूचनाएं झेलते हैं कि विवेक शून्य हो गए हैं और अप हैं कि दुनिया की सबसे गहरी बात पूछते हैं. अरे हमारी पूरी पौध ही विचार शून्रू और सूखी है.. कहां जाएं हम लोग कि कम्बख्त चौराहे पर आजकल ओसामा और ओबामा की बातें होती हैं.. जबकि यहां नगरपालिका ने नाक में दम करके रखा है.. फिर ये 4 हजार की ट्रॉली पर कूटकर मरने जैसे हादसे को पूरी दुनिया में ऐसे दिखाया जाता है जैसे वह संसार का एकमात्र सत्य है.. फिर एकाएक ध्यान उन जंगलों में जाता है जहां एक आदिवासी महिला के साथ बहुत बुरा घटा है लेकिन सामने ही नहीं आया.. फिर सोचता हूं साला बात करना ही बेवकूफी है... राजनीति कुछ नहीं दादा असमंजसता भर है..."
मेरी एक पोस्ट पर युवा मेधावी और कर्मठ पत्रकार Sarang Upadhyay की दुखभरी प्रतिक्रया.......बात तो सही है सूचना के युग में जब इतनी जल्दी जल्दी सूचनाएं आ रही है तो क्या करे और क्या ना करें.............
"दादा..आपने पहले भी पूछा था. मैंने कहा था न इतनी जल्दी मत बूझो कई बार मैं भी इन बिंदुओ की तरह चलता हूं..आप सोचिए न ये मेरे जैसे युवकों के लिए अजीब सी त्रासदी है कि वे केवल सूचनाओं के युग में जी रहे हैं.. खाते, पीते, सोते, जागते, रोत बैठते, सब जगह सूचनाएं, बेचारे इतनी सूचनाएं झेलते हैं कि विवेक शून्य हो गए हैं और अप हैं कि दुनिया की सबसे गहरी बात पूछते हैं. अरे हमारी पूरी पौध ही विचार शून्रू और सूखी है.. कहां जाएं हम लोग कि कम्बख्त चौराहे पर आजकल ओसामा और ओबामा की बातें होती हैं.. जबकि यहां नगरपालिका ने नाक में दम करके रखा है.. फिर ये 4 हजार की ट्रॉली पर कूटकर मरने जैसे हादसे को पूरी दुनिया में ऐसे दिखाया जाता है जैसे वह संसार का एकमात्र सत्य है.. फिर एकाएक ध्यान उन जंगलों में जाता है जहां एक आदिवासी महिला के साथ बहुत बुरा घटा है लेकिन सामने ही नहीं आया.. फिर सोचता हूं साला बात करना ही बेवकूफी है... राजनीति कुछ नहीं दादा असमंजसता भर है..."
आज मेरी कर्मस्थली पर एक वरिष्ठ जिला अधिकारी ने कहा कि नरेन्द्र कुमार बेवकूफ था जो सिर्फ चार हजार के पत्थरों के लिए कूद पड़ा और अपनी जान गंवा दी अरे चार हजार तो एक मिनिट की बात है अरे जाना ही था किसी का पीछा करने तो करोडो के पीछे जाता वरना किसी बड़े होटल में छापा मार देता..........आजकल के नए उम्र के अफसर दिमाग नहीं लगाते बुढापे में क्या करेंगे और क्या देंगे अपने पूतों को ..........................
मुझे दुःख हुआ कि सुख मुझे नहीं पता चला..........पर दिमाग से सोचने से लगा कि बात तो कुछ हद तक सही है............सिर्फ चार हजार के पत्थर और एक आई पी एस अफसर और मौत.........और फ़िर लंबी राजनीती और फ़िर टुकडो टुकडो में न्यायिक जांच और अन्ततोगत्वा सी बी आई जांच के लिए केन्द्र सरकार से दरखास्त ...............
समझ नहीं आ रहा कि क्या कहू, मराठी में कहते है "हे खर कि ते खर" ..तुका म्हणे उभा राहवे आणि जे जे हुइल ते ते पहावे.....................परमे श्वरा परमेश्वरा ...........!!!!
मुझे दुःख हुआ कि सुख मुझे नहीं पता चला..........पर दिमाग से सोचने से लगा कि बात तो कुछ हद तक सही है............सिर्फ चार हजार के पत्थर और एक आई पी एस अफसर और मौत.........और फ़िर लंबी राजनीती और फ़िर टुकडो टुकडो में न्यायिक जांच और अन्ततोगत्वा सी बी आई जांच के लिए केन्द्र सरकार से दरखास्त ...............
समझ नहीं आ रहा कि क्या कहू, मराठी में कहते है "हे खर कि ते खर" ..तुका म्हणे उभा राहवे आणि जे जे हुइल ते ते पहावे.....................परमे
Comments