ये चुहो, शेरो, सियारो और लोमड़ियों की बैठक थी एक दूर सुरम्य वातावरण और एक बड़े लंबे चौड़े बिल में जहा खाने पीने का सामान दर्जनों महीने के लिए भरा रखा था उस जंगल में जहा रोज हजारों चीटियाँ मर जाती थी और कीड़े मकोड़े जन्म के बाद ही बिलबिला कर मर जाते थे, ये वही जंगल था जहां चीटियों को उड़ने के पहले ही मार दिया जाता था. और ये सारे लोग इन्ही के लिए काम करते थे खूब लंबे चौड़े हाल में बैठे हुए भरे पेट और डकार मार कर पादते हुए इन्ही जंगल के कीड़े मकोडो और अजन्मी चीटियों की शिक्षा दीक्षा और स्वास्थय पर बात करने एकत्रित हुए थे. ये चूहे, शेर, सियार और लोमडिया जंगल के क़ानून बनाते थे, उस पर महीनों काम करते थे फ़िर बहस करते थे और अगली बार फ़िर किसी नए अभयारण्य में मिलने का तय करके फुर्र हो जाते थे. अबकी बार इनकी बैठक में एक रंगीला सा सुहाना, मदमदाता हुआ अंतर्राष्ट्रीय गिरगिट आ गया जिसने सारी सभा का दिल जीत लिया यह सुनहली गिरगिट बहुत मद मस्त और क्रीडा प्रेमी था सारे चूहों सियारो को अपने रंग बदलने के फन में उलझाकर बाजी जीतना चाहता था बस इसी क्रम में उसने एक एक करके सबको निपटाना शुरू किया, शुरुआत उसने अपने ही कबीले की शेरनी से की जिसे घर के ही कुए में उलटा लटका कर वो इस बीहड़ तक पहुंचा था, अब उसने एक मरी हुए और नाकाम लोमड़ी से शुरू करके बहादुर चूहों, सियारो को मार गिराया पानी के डबके में, बस एक बुढा शेर छूट गया उसके रंगों से और छूटा एक मजबूर गीदड जो शेर का लबादा ओढ़े उस जंगल के अहाते में घुस आया था. दो घाघ उल्लूओ को तो लगभग खा ही गया गटक कर. यह अंतर्राष्ट्रीय गिरगिट अपना उल्लू सीधा करने के लिए कुछ भी कर सकता है आप चाहे तो आजमा कर देख ले............( प्रशासनिक पुराण 41)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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