बड़ा अजीब तंत्र है छोटे सरपंचों के जिनके पास खाने का एक दाना नहीं था आज मेरे दफ्तर में वो बोलेरो, स्कोर्पियो लेकर आते है, जिले के छोटे कर्मचारी जिन्हें तृतीय श्रेणी कहा जाता है जो सायकिलो पर घूमते थे वे आज वेगन आर या अल्टो में घूम रहे है, ब्लाक स्तर के अधिकारी बड़ी बड़ी गाडियों में घूम रहे है, कलेक्टर रेट पर काम करने वाले कर्मचारी भोपाल से रोज कार से आते है और जाते है, अपने कार्यालय के साथी की बहन बेटियों की शादी में कर्मचारी वाशिंग मशीन से लेकर लेप टॉप तक गिफ्ट देते है .............वो भी पचास हजार की रेंज में, मेरे दफ्तर के चपरासी हर छः माह में नई डिजाइन की मोटर बाईक खरीद लेते है, पता नहीं सब इमानदारी से काम करते है तो रूपयों का पेड़ इनके घर लगा है क्या या ये कुछ विशेष हूनर वाले है ? मुझे तो ट्रक पर लिखा शेर याद आता है "दूसरे को देखकर परेशान क्यों होता है / खुदा तुझे भी देगा हैरान क्यों होता है"
विनाश काले विपरीत बुद्धि जैसी कहावते अपना दम तोड़ रही है और फ़िर इस संक्रमण काल में लोग कहते है कि यही तो तरक्की है थोड़े से पासिटीव हो जाओ ...........क्या करू उम्र का झटका है या समझ का फेर या सच में मतिभ्रम ..................
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी इतिहास..............
विनाश काले विपरीत बुद्धि जैसी कहावते अपना दम तोड़ रही है और फ़िर इस संक्रमण काल में लोग कहते है कि यही तो तरक्की है थोड़े से पासिटीव हो जाओ ...........क्या करू उम्र का झटका है या समझ का फेर या सच में मतिभ्रम ..................
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी इतिहास..............
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