Skip to main content

प्रशासन पुराण 44

कहते है राजा देवो का दूत होता है और उसका काम प्रजा के दुःख दर्द समझ कर उन्हें नीतिसंगत ढंग से दूर करना है यही राजा की पहचान होती है और यही कर्म उसे इतिहास में अमर करता है नाम और कीर्ति की पताकाएं फहराता है अब बात करे इसी इतिहास में राजे रजवाडो की उनके कामो की. आज भी राजा है पर ये देवो के दूत नहीं लक्ष्मियों के वाहन है जिनकी वजह से देश में कुछ छः सात घराने लक्ष्मी से ज्यादा ताकतवर हो गए और उनमे असीम बल आ गया. इसमे बड़ी भूमिका रही धृतराष्ट्रों की जो जिलो में बैठे सत्ता के दलाल बनकर कमाते खाते रहे और फ़िर यश कीर्ति की पताकाए अभी भी फहरा रहे है. मजेदार यह है कि इन धृतराष्ट्रों के साथ एक ऐसा अमला है जो खा पीकर जोर से डकार मारता है, कुर्सियों पर पसर कर पादता रहता है, जिसका सर दुखता है काम के वक्त, चेहरे पर कोई भाव नजर नहीं आते, इनके पास जाओ तो बहुत ही नकारात्मक भाव आते है, जिले के धृतराष्ट्र अब महज धृतराष्ट्र नहीं बल्कि प्रकृति से एकाकार हो गए है उन्होंने गिरगिट से सारे गुण लेकर अपने आप को स्थापित कर लिया है अब ये पौराणिक नहीं वरन आई टी से लेस और परिपूर्ण गिरगिट है जो यदा कदा अंतर्राष्ट्रीय गिरगिटो से सीखते रहते है कि कैसे, कब, कहा प्रजा के तंत्र जिसे लोकतंत्र  कहते है का इस्तेमाल किया जाए. आजकल मै एक गिरगिट और एक अंतर्राष्ट्रीय गिरगिट के चक्कर में पड़ा "देख तमाशा लकड़ी का" की तर्ज पर देख रहा हूँ  ये युवा शिरोमणि धृतराष्ट्र चुप है प्रजा बेचैन है उसके मातहत रोज नए रंग लेकर जाते है और ये धृतराष्ट्र जिस अदा में रंग बदलता है जिस तरह से अदाएं दिखाता है और फन निकालकर डसता है हर आने जाने वाले को.... हाय मुझे उससे प्यार हो गया है मै सदके जावा......( प्रशासन पुराण 44)

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही