मै घास पर चलूँगा तो पगडंडी बन् जायेगी .....................
मै पानी की एक बूँद हूँ जो पत्थर पर पडी तो पार उतर जाउंगा..............
बीहड़ में रास्ते बना लूंगा
हवाओं में छेद करके मै आवाज गूंजा दूंगा
मै शब्दों से एक संसार बुन दूंगा
और फ़िर निकल पडूंगा ऐसे सफर पर
कि जहां कोई नहीं पहुँच पायेगा
बस सब कुछ जीत लूंगा एक दिन
तुम साथ हो ना मेरे...........
इस संसार में जाने के लिए............
-संदीप नाईक
(अपने जीवन की एक गर्म दोपहरी के बियाबान में जहां आज कोई साथ नही मेरे)
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