अगर इस बार संसद में सांसद नहीं बैठे और काम
नहीं किया तो इन्हें हम जैसे लोगों को नैतिकता के उपदेश देने का कोई हक
नहीं है साथ ही देश के सुप्रीम कोर्ट से निवेदन है कि इनकी सदस्यता सदनो से
समाप्त कर दे ......सबके सब चैनलों पर बैठ कर ज्ञान बघार रहे है परन्तु
संसद में बैठकर काम नहीं करना चाहते...............हद है मक्कारी और
राजनीति की और बकवास करने की चाहे फ़िर वो भाजपा हो कांग्रेस हो या सपा हो
या तृणमूल
या बसपा.................सारे
मक्कार रात में चैनलों पर बैठकर बकवास करते है और एंकर और मीडिया के लोग भी
फ़ालतू के सवाल करते है बजाय इन्हें सदन में बिठाने के घेर-घार कर ले आते
है. इनका चैनलों पर बहिष्कार किया जाये, मीडिया कवरेज देना बंद कर दे और
सुप्रीम कोर्ट इनसे पूछे कि क्या किया, या फ़िर सदन की कार्यवाही में लगे
हमारे श्रम के रूपयों को इनसे वसूला जाये ....... सब लाइन पर आ
जायेंगें...........माननीय मुफ्तखोर............एफ डी आई आदि सब चुतियापा है हम ऐसे लोगों को
बरगलाने के लिए, साले मुफ्तखोर, काम नहीं करते साल भर और दिल्ली में बैठकर
हमपर राज करना चाहते है और जे मीडिया वाले कम है हर माह लाखों की तनख्वाह
खाते है, रोज सारी फ़ोकट की सुविधाएँ भकोसते है, मुफ्त की दारु और मुर्गा
खाते है और आम आदमी के सवाल पूछते है इन मुफ्तखोरों से ........इन औरतों को
देखो जो सांसद बनी फिरती है उनके चश्मे देखो लाखों के
है.................साडी देखो, लटके झटके देखो............
संसद तो अब इनको चलानी ही पड़ेगी वरना हम इन्हे बताएँगे कि वोट कैसे मिलते है................ना चने चबवा दिए तो देख लेना ..........
परधान मंत्री इनको पटाने के लिए घर बुलाकर खाना खिलाते है दस हजार रूपये की थाली, इनके संडास पैतीस लाख के है, इअनके पेट कभी भरेंगे और साले फ़िर भी साल में एक महीना संसद में बैठकर बातचीत करके निर्णय नहीं ले सकते, तो बदल दो यह परजातंत्र की व्यवस्था ..........मर तो हम रहे है महंगाई में और पीस रहे है सरकारी दफतरों में जहां हरामखोर अधिकारी बैठे है जो रूपया खाए बिना बाप को बाप भी नहीं कहते तो क्या फ़ायदा ऐसी व्यवस्था का.........
संसद तो अब इनको चलानी ही पड़ेगी वरना हम इन्हे बताएँगे कि वोट कैसे मिलते है................ना चने चबवा दिए तो देख लेना ..........
परधान मंत्री इनको पटाने के लिए घर बुलाकर खाना खिलाते है दस हजार रूपये की थाली, इनके संडास पैतीस लाख के है, इअनके पेट कभी भरेंगे और साले फ़िर भी साल में एक महीना संसद में बैठकर बातचीत करके निर्णय नहीं ले सकते, तो बदल दो यह परजातंत्र की व्यवस्था ..........मर तो हम रहे है महंगाई में और पीस रहे है सरकारी दफतरों में जहां हरामखोर अधिकारी बैठे है जो रूपया खाए बिना बाप को बाप भी नहीं कहते तो क्या फ़ायदा ऐसी व्यवस्था का.........
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