ये
नर्मदा किनारे के आख़िरी कुछ दिन है और लगता है कि सब कुछ थम गया
है...........पानी, रेत, हवा, भीड़, पूजा-पाठ, घाट, यहाँ तक कि भगवान भी
........लगता है एक सर्द सी जिंदगी इन घाटों पर काईनुमा जम गई है जहां पाँव
रखते ही फिसल जायेंगे कदम और फ़िर अपरान्ह की इस चला-चली की बेला में सब
कुछ शांत हो गया है.....अब पानी में फेंका पत्थर भी लहरों को पसराता नहीं
है, कही कोई जादू होता नहीं दिखता......दूर कही रेतघाट
पर
जब एक स्त्री की लाश जलती है तो धुएं के बादल देर तक पानी के ऊपर छाये
रहते है और पूछते है कि ये क्यों........जब एक लाश और किसी दूर किनारे पर
जलती है तो हवाएं बेचैन हो जाती है...........पर एक उन्माद में डूबा यह
पन्द्रह साल का संतोष शर्मा गुनगुनाता है "चंद्रचूड एक राजा जिसकी विपदा
हरी, ओम सत्यनारायण स्वामी.............."
Comments