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मप्र में षड्यंत्र और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के गिरगिट

मप्र में पिछले पांच बरसों में एक बहुत बड़ा षड्यंत्र हुआ आम लोगों के साथ कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के महामानवों और महामहिलाओं ने प्रशासन में बैठे गधाप्रसादों को देश विदेश घूमने का न्यौता देकर अपने कुत्सित दिमाग की गन्दगी परोसी और आम लोगों को समाज के हाशिए पर पड़े लोगों को टारगेट बनाकर सरकार को रूपया दिया हर जिले को प्रदेश में प्रति वर्ष पच्चीस लाख रूपये दिए गये जो जिला योजना और सांखियिकी अधिकारी को दिए गये. सोचिये पिछले पांच बरस से यह रूपया दिया गया यानी एक जिले को अभी तक सवा करोड दिया गया जिसे सिर्फ कलेक्टर एवं जिला योजना अधिकारी ने स्व विवेक से खर्च किया सिवाय समुदाय को बेवक़ूफ़ बनाने के और प्रशासन के लोग घूमते फिरे रहे देश विदेश. जन अपेक्षाओं को सही तरीके से वेब पेज पर दर्ज किया गया पर आजतक ये अपेक्षाएं कितनी पूरी हुई कोई भी जिला दम ठोंककर नहीं कह सकता कि एक भी पंचायत या गाँव की जन अपेक्षाएं पूरी हुई हो गत पांच बरसों में हर साल जिला योजना बनाई गई परन्तु राज्य योजना आयोग के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है कि वो बता सके कि इस प्रयोग से जिसमे कुछ सार्थक काम हुआ हो बारह करोड पचास लाख प्रतिवर्ष सिर्फ जिलों में खर्च हुए है और भोपाल में इस पुरे तामझाम के लिए लगभग इतने ही रूपये खर्च हुए होंगे सोचे कि यदि एक वर्ष में इतने तों गत पांच बरसों में कितने रूपये खर्च हुए होंगे और निकला क्या सिवाय एक बहुत बड़े कॉमेडी शो के अलावा.........बात बहुत गंभीर है. इस पुरे तंत्र को विकसित करने में कई लोगों, संस्थाओं और बुद्धिजीवियों ने अपना दिमाग और समय खर्च किया था परन्तु आज वे सब बेहद निराश और हतप्रद है मप्र शासन के कारण. इन सभी प्रयासों में जो भी प्रयास लोगों ने इमानदारी से किये उन्हें एक तरफ रखकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के गिरगिट तों निकल गये यहाँ-वहाँ प्रमोशन पर दूसरे देशों के प्रमुख बनकर, यहाँ के ब्यूरोक्रेट्स घूम लिए दुनियाभर में सरकारी खर्चों पर वो लोग जो इमानदारी से आम लोगों को, समुदाय के हाशिए पर पड़े लोगों और बूढ़े, विकलांग, महिलाओं को इस पूरी प्रक्रिया में भागीदार बनाकर काम कर रहे ठे, उनके सपनों को दर्ज कर एक सुहाने कल का सपना बता रहे थे उनका क्या होगा.....शर्मनाक है यह पूरा खेल और यहाँ तक कि बड़ी संस्थाओं की इस तरह की षड्यंत्रपूर्ण भागीदारी.......वैसे भी लोगों का सरकार पर से और राज्य नामक संस्था से भरोसा उठ ही गया है.

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