जब जाता था एक नई कहानी और फ़िर कहानी से कहानी निकलती रहती थी, और वो अनथक कहते रहती आज ही वो सुना रही थी सुहास की बात- जो उसी मोहल्ले के बाड़े में रहती थी, रणदिवे मास्टर की बहन जिसकी शादी इंदौर में एक बेंक वाले से हो गई, बाई ने ही तों बताया था रिश्ता...... हमारी बाई बड़ी मददगार थी सबकी और महाराज साब के ड्राईवर को हमारी बाई ने ही सुझाया था कि जब महाराज का मूड ठीक हो तब जमीन की बात कर लेना और सच में एक दिन ड्राईवर साब ने महाराज को जमीन की बात में उलझाकर ये मोती बंगले का प्लाट अटका लिया, महाराज साब तों थे ही धूत नशे में, दे दिया प्लाट, पर बाद में जब महाराज साब नहीं रहे तों खूब जमके लड़ाई हुई, अब ड्राईवर साब तों नहीं रहे, छोरे यहाँ-वहाँ फेक्ट्रियों में काम करते रहे एक दिन मालूम पड़ा कि ये प्लाट अपना है, तों ले देकर अपने नाम करवा लिया -दो पटवारियों को खूब खिलाया और बस रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली............वो सुहास......? अरे हाँ वही तों कह रही हूँ............सुहास की शादी में ये दोनों लड़कों ने खूब काम किया था--- बाड़े की लडकी की शादी और ये काम ना करें..... ऐसा हो ही नहीं सकता और ये पूरी रात लगे रहे हमारा बाबा, रमेश, मुक्कु, बब्या, अशोक और सब थे सुहास की शादी में, पर सुहास सब भूल गई, इन छोरों को ना कभी मदद की, ना पानी का एक प्याला पिलाया इंदौर में, जब देवास में मोहल्ले में आती तों फिएट कार से ही आती थी, उसकी खूब जोर से भोंगा बजाती और सबको बताती कि ये कार उसके पति ने तीस हजार में खरीदी है सेकेण्ड हेंड पर मजा आता है.........सुहास ड्राईवर साब के बच्चों को गलियाती और कहती इनके बाप ने महाराज साब को दारू पिलाकर जमीन हड़प ली, पर ये दोनों शरीफ चुप रहते क्योकि मोहल्ले की लडकी जमाई के साथ आती, बस खून का घूँट पीकर रह जाते ........अब देवास के बाड़े का जमाई तों सबका जमाई होता था, पुरे देवास का..... सुहास तों सबको बेवक़ूफ़ समझती थी उसे लगता था कि बेंक में काम करने वाला उसका पति दुनिया का सम्राट है पर एक दिन जब इंदौर के "विश्व भ्रमण" में खबर छपी कि उसके पति का सहकारी बेंक घपलों के चलते बंद हो गया तों पुरे मोहल्ले के लोग देर रात तक सुहास और उसके पति के बारे में बात करते रहे और उसी भीड़ में हमारी इंदु भाग गई थी उसी रात को....... हमारी इंदु मतलब किसन भैया की लडकी उस लंगड़े के भाई के साथ, बस क्या था पुरे मोहल्ले के लोगों ने उस घर की ओर से मुँह फेर लिया था, किसन भैया तों किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहे थे उस रात के बाद......... हाँ सुहास एक बार और आई थी और चली गई, फ़िर कभी पलट कर नहीं आई...........ड्राईवर के दोनों बच्चे आज खुशहाल है खूब बड़ा कारोबार है उनका, वे सुहास की मैय्यत में नहीं गये कह रहे थे क्या जाना ऐसी घमंडी औरत के यहाँ, जो शादी के बाद एक बच्चा भी पैदा नहीं कर सकी, पति साला नकली निकला, बेंक के काले कारनामों में पकड़ा गया, और हमें गाली देती थी, अरे थू है ऐसी औरतों पर .....सुहास कह रही थी.......कि वो नीला है ना अनिल की पत्नी....उनकी नई कहानी शुरू हो रही थी और मै सोच रहा था सुहास, ये दोनों बड़े उद्योगपति और संभ्रांत लोगों के बारे में, बाड़ा जो अब बाड़ा ही नहीं रहा बस एक याद है तबेले की जिसे पायगा कहते थे ...और महाराज तों सिर्फ अब ई एम फास्टर के उपन्यासों में ही दर्ज है ...... ( देवास के मोहल्ले-2)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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