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Cat is out and Mice are Playing

एक निकम्मे हो चुके तंत्र को कितना ज़िंदा रखेंगे गत ६६ बरसों से हम ढो रहे है और दुष्परिणाम भुगत चुके है कितना लील चुका है मुझे, तुम्हे, हम सबको यह तंत्र, पर हममे से कोई आगे नहीं आता और कहता कि हो गयी पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए.............ना ही कहते है हो कही भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए..................पुरे तंत्र में बाबू और अधिकारी एक सिरे से नाकाम और भ्रष्ट है और ऊपर से ब्यूरोक्रेट्स की एक नपुंसक फौज है जो सिर्फ और सिर्फ दूम हिलाना जानती है और इस पुरे घालमेल में जनता बुरी तरह से पीस चुकी है. आज अपने कर्मस्थली के जिले के प्रमुख कार्यालय में लगभग दो घंटे बैठा रहा, पद-पैसा और प्रतिष्ठा के बावजूद मेरा आवेदन लेने वाला कोई बाबू  नहीं था उस अंधी गुफा में सारे अंधे, लूले, लंगड़े और बेबस तंत्र के मारे लोग बेहद निष्काम भाव से टेबलो पर बैठे बस अपना वेतन, क्रमोन्नति, समयमान वेतनमान और कमीशन का खेल खेल रहे थे अंगरेजी में एक कहावत है "Cat is out and Mice are Playing" यही कुछ मनोहारी दृश्य था. मुझे गत छः माह में यह यकीन हो गया है कि इस तंत्र को सिर्फ एक विस्फोट से ही सुधारा जा सकता है. मेरे अपने दफ्तर में लोग दिनभर बैठकर अपने निजी काम रूपया लेकर करते है और अधिकारी  टुकुर-टुकुर  देखते है कबीर की भाषा में "साधो ये मुर्दों का गाँव, राजा मरी है परजा मरी है, मरी है सारा गाँव .................

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हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही