जब तक धृतराष्ट्र है तब तक कौरव मजे करते रहेंगे, पांडवो को हमेशा अज्ञातवास में रहना ही पडेगा क्योकि ये कौरव कमीने और नीच हो गए है.............प्रशासन में आजकल ब्यूरोक्रेट्स के नाम पर सिर्फ और सिर्फ धृतराष्ट्र है जो आँखे मूंदे सब देख रहे है रिश्वत रूपी गान्धारियाँ इनकी साँसों का हिसाब रख रही है और इन्हें बेसुध चला रही है. किस्सा एक छोटे से कस्बे का है जहा एक कौरव एक पांडव को सरेआम मार देता है और जिले का धृतराष्ट्र अंधा बना बैठा सब कुछ देख रहा है निर्लिप्त भाव से और किसी को कोई खबर नहीं, जनपद से राजधानी तक कोई हलचल नहीं सब कौतुहल से देखते है मजे लेते है और एक गर्म चाय की चुस्की से सब खत्म हो जाता है. धृतराष्ट्र इस देश का सबसे बड़ा मिथक है और असली खलनायक, उसकी नपुंसकता से देश का जितना नुकसान हो रहा है उतना पांडवो की सक्रियता से नहीं...............कोरव और पांडव का ये खेल देखती जनता जनार्दन चुप है और सोच रही है कि अब चन्दन चाचा के बाडे में जब ये पहलवान उतरेंगे और कुरुक्षेत्र की लड़ाई लड़ी जायेगी तो चारों खाने चित्त कौन और कैसे होगा यह अभी से तय करना है. रहा सवाल कृष्ण रूपी भांड और चारणों का तो वे तो सदा से कर्महीन लाचार और इन धृतराष्त्रो पर निर्भर रहे है. सत्ता के खेल में ये धृतराष्ट्र ही हमेशा से जीतते आये है आततायी और आक्रमणकारी!!! जितना इस देश को बाहर से खतरा नहीं उतना इस धृतराष्ट्र रूपी रावणों से है जो चुपचाप बैठे सब कुछ अपनी गांधारी के इशारे पर कर रहे है ...........
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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