मार्च आ गया है सखी सारे एनजीओ और सरकारी लोग चिंता मै है कि इस वर्ष का रूपया कैसे खर्च होगा, बड़े नामी गिरामी लोग जो कुशल बहुतेरे है व्यस्त है और सारे कंसल्टेंट्स भी जुगाड में व्यस्त है किसी के पास समय नहीं है, हाल, धर्मशालाएं और सभागार भी खाली नहीं है ससुरे कहा जाए और कहा से खर्च करे लोग बाग भी व्यस्त है यहाँ वहा अब श्रोता कहा से लाये, श्रोता है कि मानते नहीं जो ज्यादा सुविधा वाला संस्थान होगा और आने -जाने का पूरा टी ए / डी ए देगा उसकी दूकान पर जायेंगे और खूब लूटकर आयेंगे........इधर बेंक वाले भी अपनी लक्ष्य पूर्ति के लिए सरकारी विभागों के चक्कर लगा रहे है कि पिछले साल का पचास साथ लाख तो जस का तस पड़ा है अब इस साल भी दो तीन करोड डाल दो प्रभु तो हमारी नौकरी बच जाए ब्रांच का लक्ष्य पुरा हो जाए और गधे घोड़े गंगा नहा ले.......मार्च की माया बड़ी महान है और जिलो में तो अधिकारियों ने दो तीन करोड डाल रखे है इस साल भी मार्च के अंत तक वे चार पांच डाल देंगे फ़िर आप क्यों नहीं जुगाड करते आपकी सुविधा के लिए हम है ना बेंक आपका साथी............
इधर एनजीओ वाले भी त्रस्त है हे प्रभु कोई भी पचास साथ लोग दिला दे ताकि यह बजट खर्च हो जाए ससुरे मीडिया वालो को दाना पानी डाल आकर छपवा लेंगे ताकि रिपोर्ट झकास बन् जाए.............बस मार्च के पहले सब हो जाए.........................हे प्रभु इज्जत रख लेना...........ये मार्च इतनी जल्दी क्यों आ जाता है...................................(प्रशासन पुराण 39)
इधर एनजीओ वाले भी त्रस्त है हे प्रभु कोई भी पचास साथ लोग दिला दे ताकि यह बजट खर्च हो जाए ससुरे मीडिया वालो को दाना पानी डाल आकर छपवा लेंगे ताकि रिपोर्ट झकास बन् जाए.............बस मार्च के पहले सब हो जाए.........................हे प्रभु इज्जत रख लेना...........ये मार्च इतनी जल्दी क्यों आ जाता है...................................(प्रशासन पुराण 39)
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