Skip to main content

Netflix Movies and "Khed Hai" - Poem of Naiduniya Diwali Special 1999, Posts of 24 to 25 May 2021

 Dear Daddy

Sandeep and Pinky Faraar

Grand son of Sardar
कुरुक्षेत्र

लोनावाला बायपास
आखिरी दो मराठी बाकी हिंदी - पिछले तीन चार दिनों में देर रात देखी फिल्में है -ताकि सनद रहें, नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन प्राइम पर
***
|| खेद है ||


बहुत पुरानी बात
जब हिंदी क्षेत्रों में भी दीवाली विशेषांक निकाले जाते थे और अखबारों के इन विशेषांकों में छपने से लेकर पढ़ने और चर्चा करने की होड़ मची रहती थी
अभी Abhay Sahasrabuddhe ने फोन करके 1999 के नईदुनिया के दीवाली विशेषांक की याद दिलाई कि "तेरी कविता पढ़ रहा हूँ, लगभग 22 साल पुरानी कविता का फोटो भेज रहा हूँ "
दिन बन गया भाई, तब दोस्तों को चिट्ठियाँ लिखते थे हम लोग ; मोबाइल नही, नेट नही बस चिट्ठी यानी पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय या 50 पैसे के लिफ़ाफ़े और कॉपी से फाड़े हुए चार पन्नों पर भर - भरकर लिखी चिठ्ठी से जीवन ख़ुश था और दिमाग़ी तनाव नही होता था, Binay Saurabh , Sanjeev Thakur , Jitendra Srivastava, Avinash Das , Ramesh Gupta , Dinesh Kushwah से लेकर तमाम दोस्तों और तत्कालीन बड़े साहित्यकारों, सम्पादकों और कवियों को, यहाँ तक कि स्थानीय शहर के दोस्तों को भी पोस्टकार्ड लिखते थे और पोस्टमेन का हर दोपहर इंतज़ार रहता था, दीवाली होली या ईद पर ₹10/- का इनाम देने पर ख़ुश हो जाता था और हर चिठ्ठी पत्रिका को याद से घर दे जाता था पर आज ना चिठ्ठी ना पत्रिकाएँ, बस नेट, नेट - मेल - मेल, मैसेज - मैसेज , ब्ल्यू स्टिक्स और आँखें फोडू अभियान - उफ़्फ़, कहाँ गए वो दिन
बहरहाल, वो कविता पढ़िये - शायद कुछ बात समझ मे आये जो उस समय कहना चाहता था यह आज भी मौजूँ है उन मित्रों के लिये जो जवाब नही देते कही भी
शुक्रिया अभय


Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...