Dear Daddy
Sandeep and Pinky Faraar
Grand son of Sardar
कुरुक्षेत्र
लोनावाला बायपास
आखिरी दो मराठी बाकी हिंदी - पिछले तीन चार दिनों में देर रात देखी फिल्में है -ताकि सनद रहें, नेटफ्लिक्स और अमेज़ॉन प्राइम पर
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जब हिंदी क्षेत्रों में भी दीवाली विशेषांक निकाले जाते थे और अखबारों के इन विशेषांकों में छपने से लेकर पढ़ने और चर्चा करने की होड़ मची रहती थी
अभी Abhay Sahasrabuddhe ने फोन करके 1999 के नईदुनिया के दीवाली विशेषांक की याद दिलाई कि "तेरी कविता पढ़ रहा हूँ, लगभग 22 साल पुरानी कविता का फोटो भेज रहा हूँ "
दिन बन गया भाई, तब दोस्तों को चिट्ठियाँ लिखते थे हम लोग ; मोबाइल नही, नेट नही बस चिट्ठी यानी पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय या 50 पैसे के लिफ़ाफ़े और कॉपी से फाड़े हुए चार पन्नों पर भर - भरकर लिखी चिठ्ठी से जीवन ख़ुश था और दिमाग़ी तनाव नही होता था, Binay Saurabh , Sanjeev Thakur , Jitendra Srivastava, Avinash Das , Ramesh Gupta , Dinesh Kushwah से लेकर तमाम दोस्तों और तत्कालीन बड़े साहित्यकारों, सम्पादकों और कवियों को, यहाँ तक कि स्थानीय शहर के दोस्तों को भी पोस्टकार्ड लिखते थे और पोस्टमेन का हर दोपहर इंतज़ार रहता था, दीवाली होली या ईद पर ₹10/- का इनाम देने पर ख़ुश हो जाता था और हर चिठ्ठी पत्रिका को याद से घर दे जाता था पर आज ना चिठ्ठी ना पत्रिकाएँ, बस नेट, नेट - मेल - मेल, मैसेज - मैसेज , ब्ल्यू स्टिक्स और आँखें फोडू अभियान - उफ़्फ़, कहाँ गए वो दिन
बहरहाल, वो कविता पढ़िये - शायद कुछ बात समझ मे आये जो उस समय कहना चाहता था यह आज भी मौजूँ है उन मित्रों के लिये जो जवाब नही देते कही भी
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