ईद का पवित्र त्योहार सबको मुबारक हो, आईये दुआ करें कि अमन चैन हो, सब स्वस्थ रहें और खुशहाल रहें
ईद समर्पण और त्याग का त्योहार है जो एक माह की कठिन तपस्या के बाद आता है, हम सबको इसका इंतजार रहता है - सिर्फ़ सौहार्द्र, मिलन और भाईचारे के लिये नही, बल्कि इसलिये कि इस पाक माहे रमज़ान में जितनी शिद्दत से लोग सबके लिये दुआएँ करते है दिल से, वे सभी फलीभूत होती है
आज कोविड का तांडव जरूर है, पर फिर भी हम सब इसलिये ज़िंदा है और साँसे ले पा रहें है कि कोई था - जो रोज पाँचों वक़्त की नमाज़ में हमे याद कर रहा था, इस संसार की सलामती की दुआएँ मांग रहा था, करोडों हाथ दुआओं में रोज़ उठ रहे थे और देखिये कि हम स्वस्थ हो रहें है और जीते जागते आज ईद मुबारक कह पा रहे हैं
मिल जुलकर मनायें यह त्योहार, मन के गुबार निकालकर सबकी भलाई और सेहत के लिये दुआ करें - आमीन
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|| जिये तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले ||
त्योहारों पर बद्दुआ नही देना चाहिये पर हम लोग यही डिजर्व करते है शायद, "लातों के भूत बातों से नही मानते" - यह कहावत भारत मे ही है सिर्फ़
आज़ाद भारत के 75 वर्ष हो गए और तरक्की के नाम पर जो परोसा गया वह दर्शाता है कि इन सालों में व्यवस्थाएं चरमराई ही नही - बल्कि बर्बाद हो गई है, सरकार, तंत्र नामक कुछ बचा नही है, और इस सारी लड़ाई में इंसान, इंसान की औकात कितनी बौनी साबित हुई यह रोज़ लिखी जा रही हजारों पोस्ट्स से समझ आता है
ऐसे राष्ट्र में जहाँ मरने के बाद मुर्दे को राख या खाक में तब्दील हो जाने को मुश्किल पड़े वहाँ के जिम्मेदारों को सौ - सौ लानते भेजना ही सद्कार्य है
सरकार बुरी तरह से फेल हुई है, घर - घर में सन्नाटा है, गाँव, कस्बे, शहर, मेट्रो शहर में मौत का तांडव जारी है - ज़मीन ही नही नदियां भी लाशों से भरी पड़ी है, जिस गंगा को अमृत समझते हो वही लाशें तैर रही है - कह रही है कि 75 वर्षों में क्या तंत्र बनाया कि मरने के बाद 700 - 800 रुपये आदमी जलाने के जुटा नही पा रहा और पानी मे लाश छोड़कर भाग रहा है, हुक्मरानों तुम्हे कुत्ते चील और बाज खाएँ, गिद्ध नोचें और इस सबके बाद हम कुछ नही कर पा रहें है, बल्कि पुलिस लगवाकर पीट रहें है गरीबों को - बेशर्म सत्ता और सत्ता के भूखे भेड़िये पूरी बेशर्मी से लदे फदे अपने निजी आवास, " लोकतंत्र के 75 साल की विष्ठा के प्रोजेक्ट" को पूरा करने में लगे हैं
क्या प्राथमिकता है इस देश की - अस्पताल, कब्रस्तान, लाशों के लिये लकड़ी और जगह, आक्सीजन, दवाई, बेड्स, एम्बुलेंस, डाक्टर, पैरा मेडिकल स्टॉफ, जरूरी इंजेक्शन, वैक्सीन या मन्दिर, 600 गधों को चरने की चरनोई वाली गौशाला, एक निहायत ही अयोग्य, अनपढ़, स्वार्थी, कारपोरेट के गुलाम, लंपट और नीच के लिए आवास
देश क्यों नही सवाल कर रहा - आपने ही अनपढ़, स्वार्थी, गंवार और घटिया आदमी को चुना है, जाहिर है सवाल आपसे ही होगा, आप चुप है 75 वर्षों से - इसलिये यह सब हो रहा है, आपके पास संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकार से लेकर सूचना के अधिकार के हक है - फिर भी आप चुप है, इससे बेहतर है आप डूब मरिये उसी गंगा के पानी में
सही कहते है उदय प्रकाश " कुछ नही बोलने और कुछ नही सोचने से आदमी मर जाता है" - मरे हुए लोगों से क्या बात करना
जो लोग इस पोस्ट पर सरकार समर्थन में ज्ञान देने आए या 'अपनी तबियत का ध्यान रखों' , टाइप रायता फैलाने आये - वे ना आयें, ज़िंदा कौमों से बात करता हूँ, मक्कार और इस सरकार के समर्थकों से ना बात करना है और ना ही स्पष्टीकरण देना है, जिन हरामखोरों ने मात्र 7 वर्ष में देश बर्बाद कर दिया हर मोर्चे पर, उन्हें 1947 से देश सौंप देते तो अब तक ये संसार का नर संहार कर उजबकी हरकतें करने से बाज नही आते और जो अभी भी 2024 के बाद इन कमीनो को सत्ता मे लाने के मंसूबे पाल रहें है -उनके लिए दिल से सिर्फ़ दुआ ही की जा सकती है कि इन सब समर्थकों और भक्तों को श्मशान में पर्याप्त जगह मिलें और कब्रस्तान में दफनाने को आधा ग़ज़ जमीन नसीब हो
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