पवन और फाल्गुनी पेशे से वरिष्ठ वैज्ञानिक है - नासा अमेरिका में काम करते है पर भारत और मप्र के मालवा में इनके प्राण बसते है, कोविड के तांडव, हाहाकार और अव्यवस्थाओं के बीच दुनिया भर के डाक्टर्स और मनोवैज्ञानिकों के साथ मिलकर यह हेल्प लाइन आरम्भ की है जो पूर्णतया विश्वसनीय और सच मे बहुत मददगार है
यहाँ बात करने पर आत्म विश्वास ही नही बढ़ता बल्कि सही सलाह, कम से कम अति आवश्यक और अपने बजट में आने वाली दवाईयां भी सुझाई जाती है
किसी को लगे कि बात करने की जरूरत है तो ज़रूर एक बार कोशिश करके देखिए, मैंने दो तीन बार बात की है अपनी ऋग्णावस्था में
इसकी विशेषता यह है कि यहाँ उपलब्ध डाक्टर साहेबान विभिन्न दस प्रकार की भारतीय भाषाओं में भी बात कर सकते है सिर्फ हिंदी या अँग्रेजी का प्रयोग नही है
हमारे यहाँ के पेशेवर डाक्टर्स भी इससे जुड़ सकते है अंतरराष्ट्रीय स्तर के सुपर स्पेशलिस्ट्स से जुड़ने, समझने और अपनी बातें शेयर करने और नवीनतम शोध से वाकिफ़ होने का भी मौका मिलेगा
इधर कई प्रकार की हेल्पलाइन में मैंने इस तरह की हेल्पलाइन नही देखी है , फाल्गुनी और पवन का आभार, शुक्रिया हम
सबकी ओर से
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चारो तरफ के गहन अँधेरों और निराशाओं के बीच एक खुशी का मौका है आज हमारे लाड़ले बेटे चि अनिरुद्ध और सौ श्रेया की शादी की सालगिरह है आज, पिछले वर्ष कोरोना काल में आज ही के दिन घर में हुई थी शादी, एकदम सादी और आज एक वर्ष बाद भी घर में ही मना रहे हैं वर्षगांठ
बच्चों की खुशियाँ ही अपना जीवन है अब
दोनों को शुभाशीष, यूँही ख़ुश रहें, मस्त रहें और खुशियाँ बिखेरते रहें, बहुत स्नेह दुआएँ और स्वस्तिकामनाएँ
Girish Sharma चैतन्य ताम्हणे निर्देशित फिल्म " कोर्ट " देखने की सिफारिश करने के लिए आभार
मतलब क्या ही कहा जाये फ़िल्म है या एक बदलाव की कहानी जो धीरे धीरे घटित हो रही है जहाँ जड़ता है, घर परिवार है, न्याय व्यवस्था है जो कछुआ चाल से चलती है और दो वकीलों की व्यथा - कथा है , वीरा साथीदार, विवेक गोम्बर और गीतांजलि कुलकर्णी का उत्कृष्ट अभिनय दर्शाता है कि मराठी कला मंच सशक्त है .
वास्तव में लोक गीत बनाम जन गीत गाने वाले एक कलाकार की अदालती दांव पेंच की कहानी है, जिसमे गटर में उतरकर सफ़ाई करने वाले का जिक्र आता है, उसकी आत्महत्या का मुद्दा है और जिसके आसपास पूरी कहानी घूमती है और इसके समानांतर कई और कहानियाँ है - वकीलों की या आंदोलन की, इतिहास की और दबे छुपे प्रेम की
यह फ़िल्म बहुत शांत चित्त, धैर्य और समझ के साथ देखे जाने की मांग करती है और दर्शक का परिपक्व होना अतिआवश्यक है - यदि आप एक सेट का भी दृश्यांकन छोड़ते है तो फ़िल्म को या तो पुनः देखना पड़ेगा या अंत में आप सिर्फ सिर धुनेंगे कि अंत समझ नही आया
बहरहाल, जरूर देखिये
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मित्र चंडी दत्त शुक्ल का जाना बहुत दुखद था, अंतिम दिनों में बीमार था, शुगर में हम दोनों में एक तरह की प्रतिस्पर्धा थी और वह बार - बार बीमार पड़ता और हर बार ठीक होकर घर आ जाता
अपनी पत्नी, बिटिया के साथ फोटो डालता था जो उसके प्राणवायु थे ; भास्कर में, अहा जिंदगी में बड़ा लम्बा समय बीताया और कविता - कहानी को लेकर लम्बी बात होती थी
शुरुवात ही करता था कि "दादा कविता कहानी पढूंगा, पर छापूंगा नही, मेरे फेसबुक के दोस्तो से परेशान हूँ, लोग लघुशंका से ज्यादा कविता लिखते है और इनबॉक्स में भेजते है" एक दो बार बोला कि ये कविता छापना चाहता हूँ पर मैंने मना कर दिया कि नही रहने दो
हमारी बहस होती थी, अहा जिंदगी जब जयपुर से इंदौर आई अर्थात सम्पादन यहाँ के महान लोग करने लगे तो किसी मीटिंग में आया तो सुबह आते ही फोन किया कि जल्दी आ जाओ, भास्कर में मीटिंग है, शाम तक ही हूँ मिलने का मन है, मैं तुरन्त गया इंदौर और हम लोग देर तक बैठे गप्प करते रहें
इतना प्यारा दोस्त गोंडा में आज हमेशा के लिए विदा हो गया, हिम्मत नही पड़ रही कि उसके फोन पर बात करूँ, बिटिया का चेहरा नजर आने लगता है - अच्छी बात यह है कि अंतिम समय में वह घर रहना चाहता था और रहा भी - हम सबकी यही तमन्ना होती है कि कही भी संघर्ष करें, जिये, पसीना बहाएं पर मौत अपने घर - आंगन में हो, अपने गांव, शहर या दालान में हो, उन्ही घर परिवार वालों और दोस्तों के बीच जिनसे हम प्यार करते है, जिनसे झगड़ते है और जहां विश्वास है कि रोने वाले सच में दिल से रोयेंगे कोई नौटँकी नही करेगा - कम से कम रोने की - गाली भी देना होगी तो कपाल क्रिया होने तक के समय में चार गाली देकर भड़ास निकाल लेंगे, पर श्मशान से निकलते समय दो घड़ी रुकेंगे, एक बार पलटकर देखेंगे जरूर और आँखों के कोरो से बह रहें आंसूओं को अपने शर्ट की बांह से पोछकर गाली देंगे कि साला मरकर हमें तड़फता छोड़ गया कमीना
फेसबुक की सूची से इधर 25 - 30 लोगों को मृत्यु उपरांत हटाना कितना भारी निर्णय था - यह बताना भी मुश्किल है, अभी चंडी को लिस्ट से हटाया तो लग रहा था उसके जनाज़े में शामिल हूँ और चिता पर शव रखकर कांधा खाली किया है जैसे, जैसे हल्के से हाथ को झटका दिया और बोझ कम किया हो, जैसे किसी सगे को रुखसत किया हो मानो
भरे मन से प्यारे दोस्त को यही से विदाई , ईश्वर अगर सच में है तो उसके परिवार को, बिटिया को यह दुख सहन करने की शक्ति दें और चंडी अब तुम्हे समय का प्रेशर नही है, भास्कर या पत्रिका के अंक निकालने की समय सीमा नही और मालिक का दबाव भी नही - इसलिये मेरी कविताएँ और कहानियाँ तसल्ली से पढ़ना, मात्रा सुधारना और Sarjana Chaturvedi को दे देना कि बिहार एडिशन में लगा दें दद्दा की घटिया वाली कहानी और उबाऊ कविताएँ क्या कहूँ , दोस्त रुलाकर चले गए और सच बताओ शुगर क्या सच में इतनी घटिया बीमारी है कि साला जान ही ले लें एक कद्दावर इंसान की, हर बार की तरह लौटकर क्यों नही आ रहें और आत्म मुग्ध होकर बड़बोलेपन से तारीफ कर कह रहे कि शुगर को फिर हरा दिया आज
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