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Davinder Kour Uppal, Prabhu Joshi, Rawat Brothers and Films on Netflix Posts from 3 to 6 May 2021

 जाने वाले कभी नही जाते


1987 - 90 का समय था, भोपाल गैस त्रासदी को लेकर विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे थे, एकलव्य ने " भोपाल गैस त्रासदी - जन विज्ञान का सवाल " नामक किताब छापी थी छोला रोड़ पर प्रदर्शन होते रहते थे, ऐसे ही एक राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन की झीनी स्मृतियाँ है जब जन विज्ञान जत्थों ने भी देशभर से शिरकत की थी
हम लोगों को भेल स्थित नवनिर्मित फ्लैट्स में रोका गया था सौभाग्य से मेरे साथ अनिल सदगोपाल, स्व जब्बार भाई, स्व विनोद रायना, अनिता रामपाल, के साथ दो महिला प्राध्यापक थी - एक दविंदर कौर उप्पल थी और दूसरी सागर विवि के क्रिमिनोलॉजी विभाग की थी और उनके साथ आये छात्र नीचे वाले फ्लैट्स में रुके थे
जिस अंदाज़ में उप्पल मैडम बहस करती और जनपक्षधरता के मुद्दों को जन संचार से जोड़कर बात करती वह चकित करने वाला था, उसी समय मे प्रदीप कृष्णात्रै अपने प्रवेश परीक्षा में पूछे गए एक प्रश्न से चर्चा में आये थे और एनएसयूआई के छात्रों के उत्पात से व्यथित थे, बहरहाल इस प्रदर्शन से केरल से शुरू हुए केरला शास्त्र साहित्य परिषद और भारत ज्ञान विज्ञान जत्थों के साथ पीपुल्स साइंस मूवमेंट का बड़ा काम आरम्भ हुआ और 1990 तक आते आते साक्षरता का बड़ा काम अंतरराष्ट्रीय साक्षरता वर्ष में शुरू हुआ , बाबा साहब अंबेडकर की भी शताब्दी जयंती में महू में अंबेडकर राष्ट्रीय सामाजिक शोध संस्थान की शुरुवात हुई और उन्ही के शिष्य स्व डाक्टर महादेव लाल शहारे निदेशक नियुक्त हुए
एक बड़े बदलाव का माहौल था, वीपी सिंह का मंडल कमीशन रिपोर्ट आना और लागू करना, राजीव गोस्वामी द्वारा आत्महत्या का प्रयास, आडवाणी की रथ यात्रा, लालू यादव द्वारा गिरफ्तारी और बबीना - तालबेहट में आडवाणी को रखना, बाबरी मस्ज़िद का टूटना - ये सब बड़ी हलचलें थी और हम लोग अपने उस समय में बड़ी बहसें करते ; अनवर जाफरी, संतोष चौबे, एसआर आज़ाद, लाखन सिंह, आशा मिश्रा, राहुल उप्पल मैडम से लेकर हम सब उन चर्चाओं और कार्यक्रमों के साक्षी बनते जा रहें थे कभी लगा ही नही कि ये सब लोग इतने बड़े है - क्योंकि हम बराबरी से बहस करते, लड़ते - झगड़ते और अपनी बात दम से रखते - क्योंकि भोपाल से लेकर देशभर में नुक्कड़ नाटक करना हो या प्रदर्शन करना, असग़र वजाहत साहब का नाटक "सबसे सस्ता गोश्त" करते थे - जो आज करना ही मुश्किल है, कई बैठकों में सफ़दर हाशमी भी आते थे, छग से राजकुमार नायक, अनूप रंजन पांडेय भी अपनी टीम लाते, हबीब साहब यहाँ थे ही हुक्का गुड़गुड़ाते हुए
उप्पल मैडम से एक बार लम्बी बहस हुई - मालवीय नगर के पत्रकार भवन में, जब तीन माह तक लम्बी नाट्य कार्यशाला हुई थी, तो उप्पल मैडम ने उस बहस का समापन एक टिप्पणी से किया कि "जब भी दुनिया में बड़े बदलाव की बात हुई और बड़े अभियान हुए है - जैसे अभी मंडल आयोग, साक्षरता और दलित चेतना के काम हम कर रहें है - ठीक इसके विपरीत इसे नष्ट करने के भी प्रयास तेजी और बराबरी से होते है जैसे आडवाणी की रथ यात्रा और बाबरी मस्ज़िद का 6 दिसम्बर 1992 का तोड़ा जाना - हमारे इन प्रयासों को रोकता है और जनमानस बंट जाता है " , हॉल में बैठे एम के रैना, मोहन महर्षि, हबीब जी, सहित सभी मित्र, कॉमरेड और एनजीओ कर्मी के साथ अविभाजित मप्र के नाट्य कलाकार सन्न थे - तब तक हम लोग उन्हें विदुषी मान ही चुके थे
उप्पल मैडम अपने आप मे विवि थी, हम तो छात्र न थे, पर वे परिवार का हिस्सा मानती थी, जब 2005 में मैंने द हंगर प्रोजेक्ट, भोपाल में राज्य प्रमुख का दायित्व ग्रहण किया और महिला सरपंचों के लिये एक कार्यशाला में स्रोत व्यक्ति के रूप में आमंत्रित किया तो बोली "अरे ये बढ़िया हुआ कि तुम भोपाल आ गए, अब मेरे विवि के बच्चों को फील्ड में जाने और ज़मीनी हकीकतों को समझने में मदद मिलेगी, बस बच्चों को किराया भाड़ा दे देना - दूर दराज के बच्चे है, भोपाल में रहते हैं, पर फील्ड में आना - जाना और खर्च वहन नही कर सकते अपने पैसों से " - कई बार हमारे प्रकाशनों का सम्पादन किया, टिप्पणी दी, कार्यशालाओं में आई, हमें विवि में विकास पत्रकारिता पर छात्रों के साथ बात करने के मौके दिए, पर मजाल कि अपना नाम छापने की इजाज़त दी या एक रुपया पारिश्रमिक / मानदेय लिया हो, कहती थी - "अकेली हूँ, विवि से इतना मिल जाता है कि ऐयाशी से रहती हूँ " और हंस देती थी, कहती इस पैसे से किसी बच्चे की फीस भर दो या उसका कमरे का किराया दे दो, पर हकीकत यह थी कि बहुत सादा जीवन जीती थी और कई छात्रों को आर्थिक रूप से प्रत्यक्ष मदद करती थी, बहुतेरों को मैं जानता हूँ - जो आज बड़े मीडिया घरानों में काम कर रहें हैं
प्राथमिक शिक्षा के "सीखने - सिखाने" के कार्यक्रम में हम लोग पूरे प्रदेश में शिक्षक प्रशिक्षण करने जाते, अनूपपुर में जब जाता था तो डांटती थी कि उधर तुम धर्मशाला में क्यों रुकते हो, मेरा घर है, भाई है, वही रुका करो और बाहर का खाना मत खाया करो, अनूपपुर स्टेशन के ठीक पास उनके भाई का घर भी था और स्टेशनरी की दुकान हुआ करती थी और उनके बड़े भाई वही शिक्षक थे
अनूपपुर में स्व श्याम बहादुर नम्र, दुनू रॉय आदि वरिष्ठ साथियों की बड़ी टीम थी, श्याम जी बहुत सक्रिय थे, उनका घर विदूषक कारखाना देश के आन्दोलनकर्मियों के लिए चैतन्य था उन दिनों और अमन भोपाल में पत्रकारिता पढ़ रहे थे, श्याम भाई और अनिल सदगोपाल की नियोगी पर पुस्तक आई थी जिस पर मैंने "हंस" में लम्बी समीक्षा लिखी थी, उसे पढ़कर बहुत खुश भी हुई थी और हमने लम्बी बात भी की थी
बहुत ही वात्सल्यमयी महिला जिनके साथ एक लम्बा साथ रहा - सीखने सीखाने का दौर रहा , पुरानी मिट्टी से बने ऐसे लोगों का यूँ खत्म हो जाना बहुत ही दुखद है
भाई Anurag Dwary , राजू कुमार, सीमा जैन, Seema Kurup और Brajesh Rajput Sachin Kumar Jain Indu Saraswat , अजीत सिंह जैसे मित्रों ने जो आखिरी दिनों में जो उनकी सेवा की है - उतना तो अपने भी नही करते, इन सबके लिए बहुत प्यार, श्रद्धा और सम्मान है - इस पुण्याई के लिये
दविंदर कौर उप्पल मैडम ने जो लम्बी जिंदगी जी और देश दुनिया में जो पत्रकारिता और स्वस्थ मूल्यों के वटवृक्ष स्थापित कर दिए है - उन्हें मिटा पाना मुश्किल है और जब तक ये वटवृक्ष हैं मूल्यानुगत पत्रकारिता है - तब वे सदैव हमारी स्मृतियों में बनी रहेगी
उन्हें श्रद्धांजलि नही दूँगा क्योकि वे कही नही गई है वे यही है, Pushya Mitra से बात करती हुई, समर्थन की कार्यशाला में, युवा मित्रों को समझाते हुए, लिखते हुए, राकेश दीवान से या चिन्मय मिश्र जी से बहस करते हुए , नर्मदा आंदोलन के बुलेटिन के किसी अंक का सम्पादन करते हुए और हमेशा की तरह कि "मेरा नाम डालने की ज़रूरत नही बस काम समय पर पूरा हो जाये तो अगला काम शुरू करें " - वे जल्दी ही किसी नए काम मे दिखेंगी - आमीन

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देवास प्रकाश कांत जी, प्रभु जोशी और जीवन सिंह ठाकुर के नाम से जाना जाता है स्व प्रो नईम के ये तीन छात्र साहित्य जगत में अनूठे रचनाकार है और तीनों अलग मिज़ाज के होकर भी ब्रह्मा विष्णु महेश की जोड़ी है जिनसे हमारी पीढ़ी ने बहुत कुछ सीखा है
पिछले दिनों जीवन सिंह जी की पत्नी और हमारी मधु भाभी का निधन हो गया कोविड से और आज प्रभु दा का देहावसान हो गया - यह लगभग हम लोगों के लिए सदमा ही है और हम इसे स्वीकार भी नही कर पा रहें है
मधु भाभी और प्रभु दा की आत्मा को शांति मिलें और परिवारों को दुख सहन करने की शक्ति मिलें
पिछले दिनों ही हमने डाक्टर ओम प्रभाकर जी को खोया था उस दुख से उबर भी नही पाए थे कि यह सब होता चला गया
इस समय में कुछ और कहना हमारे लिए बहुत ही मुश्किल है - हमारे लिए जीवन के बड़े संकट की घड़ी है
हम देवास के साहित्यिक परिवार के लोग अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते है
देवास के समस्त साथी
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दो भाई, दोनों डॉक्टर , दोनो कुक्षी और मनावर ब्लॉक में कोविड के मरीजों को ठीक करके घर भेज रहें है
छोटी जगहों पर कम सुविधाओं और न्यूनतम समय में मरीजों को साफ सुथरे वातावरण में आईसीयू में सफ़ाई, सुविधाएं, भोजन से लेकर निशुल्क दवाईयां उपलब्ध करवा कर धैर्य और परिश्रम के साथ यह कर पाना बहुत बड़ी बात है वो भी सरकारी तंत्र में पर इनमें जादू है ; दोनो उच्च शिक्षित, अनुभवी कौशल और चिकित्सकीय दक्षताओं में परिपूर्ण है
एक ओर जहां बड़े शहरों और जिला मुख्यालयों पर अफरा तफरी मची है वही ये दोनों भाई निस्वार्थ भाव से चौबीसों घँटों सेवारत है
यह जज़्बा कायम रहें - दुआओं में इन्हें याद रखिये
सौभाग्य से दोनों मेरे अनुज है और बहुत लाड़ले है और मुझे गर्व है इन पर
कौन कहता है सरकारी व्यवस्थाएं खराब है
" We need to bring back the Pride to Govt Hospitals , Schools etc."
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"भाई- व्यक्ति कि वल्ली" चित्रपट अतिशय उत्तम आहेस, पुल देशपांडे चे बायोपिक आहे, सागर देशमुख आणि इरावती हर्षे चे उत्कृष्ट अभिनय, त्यातून महेश मांजरेकर यांचे निर्देशन म्हणजे क़ाय - मराठी अभंग, शास्त्रीय संगीतांचे बंदिश आणि शेवटी भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व चे "जमुना किनारे मोरा गांव" आईकून मनाला जे सुख भेटेल ते फ़क्त अप्रतिमच आहेस
नक्की बघाय सारखी, क्वचित बघितली असेल
नेटफ्लिक्स वर आहे

*Firebrand

*1000 Rupees note
Nice Marathi movies on Netflix
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