Khari Khari, Shashank Sharma, Prabha Atre, Marathi Movies on Netflix , Bucket List , Corona and other Posts from 7 to 11 May 2021
भारतीय शास्त्रीय संगीत के युवा गायक और साथी कधिर शर्मा ने आज सुझाया कि " जमुना किनारे मोरा गांव" - प्रभा अत्रे जी ने भी गाया है तो खोजा युट्युब पर आसानी से मिल गया
कुमार जी, मुकुल शिवपुत्र , वसुंधरा ताई, कलापिनी और भुवनेश के स्वरों में सुनकर इस भजन से बेहद प्रभावित हुआ हूँ, रात नींद नही आती तो दो बजे , तीन बजे नितांत निविड़ एकांत में सुन लेता हूँ अक्सर पर अभी प्रभा अत्रे की आवाज़ में सुनकर चकित हूँ - कधिर ने दो पंक्तियाँ गुनगुनाई भी थी
सुनियेगा इस भजन को जब मन अशांत हो और लगे कि निर्भय निर्गुण, गुण रे गाऊँगा जैसा मन हो
https://www.youtube.com/watch?v=aPj8nRdJ3B8
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कुछ मित्रों से अलग-अलग जिलों में बात कर रहा हूं तो यह समझ आ रहा है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कोरोना के मरीजों के साथ अजीब व्यवहार हो रहा है - एक ओर जहां सोशल बॉयकॉट हो रहा है, वहीं दूसरी और उनके साथ बुरी तरह से छुआछूत की जा रही है - यह ठीक वैसे ही है - जैसे दलित और सवर्णों के बीच में सदियों से चला आ रहा सामाजिक बहिष्कार और छुआछूत का मामला होता है ; कोरोना के इस समय में इस तरह की सामाजिक प्रवृत्तियों पर भी गहराई से ध्यान देने की जरूरत है - खास करके इस तरह के सामाजिक व्यवहार और मनोविज्ञानिक पक्षों पर क्योकि पीड़ित पक्षों के साथ जाने - अनजाने में अन्याय हो रहा है - वह बहुत चिंतनीय है और इसके दूरगामी परिणाम बहुत ही मुश्किल होंगे
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हम लोगों ने बेशर्मी की हदें पार कर दी है, एक ओर जहां चारों तरफ व्यक्तियों की मौत का तांडव चल रहा है, दिन में 50 मौत की खबरें रोज पढ़ने को मिलती है - नमन, श्रद्धांजलि, ओम शांति लिख - लिख कर हाथ दुखने लगे हैं - ठीक इसके विपरीत हमारे ही हिंदी के साहित्यकार बाज नहीं आ रहे - क्या किया जाए फेसबुक से लेकर व्हाट्सएप तक स्थितियां बहुत खराब है - एक आदमी की मौत की खबर ठीक से पढ़ी भी नहीं जाती और उसके पहले हम लोग कविता - कहानी या चुटकुला पेल देते हैं
दुखद यह है कि यहां पर भी रोज अपनी कविताएं लोग लगाते हैं, टैग करते हैं और अपनी किताब और अपने खुद के बीवी - बच्चों, कुत्ते, बिल्ली, गधों, उल्लूओं, कार, बैलगाड़ी और अपनी स्वयं की प्रशंसा में आत्ममुग्ध रहते हैं - मतलब इतना शर्मनाक है कि अगर मैं 2, 4, 5 के स्क्रीनशॉट यहाँ लगाऊं तो वे लोग आकर मेरा खून कर देंगे पर अब मैं बोलना ही नहीं चाहता और व्हाट्सएप समूह में तो बात करने से मतलब नहीं है
कोरोना से ग्रसित हूँ, घर में सब लोग पोजिटिव्ह थे पर कुछ के फोन लेने में घबराहट होने लगी कि अगला कविताएँ ना सुना दें, अजीब अजीब तरह के फोन थे, एक सज्जन ने तो हद ही कर दी थी - थोड़ा स्वस्थ हो जाऊं फिर लिखूँगा पर हम भारतीयों को सैक्स एजुकेशन की तरह फोन शिष्टाचार भी सीखने की ज़रूरत है - "हमें सब आता है, समझता है और बढ़िया से हैंडल कर लेते है" टाईप शेख़ीबाज लोगों से समाज भरा पड़ा है
वाट्सएप समूह में किसी की पोस्ट पढ़ने के पहले अपनी पोस्ट को पेलना ज्यादा जरूरी है, कुछ भी वाहियात किस्म की पोस्ट लोग लगाते रहते हैं - इसलिए मैं बहुत सारे व्हाट्सएप समूह से तो हट ही गया हूं खासकर के साहित्यिक समूहों से और अब हद यह हो गई है कि हमारे जिम्मेदार साहित्यकार बजाय इन परिस्थितियों पर बात करने के या लिखने के अपनी ही चीज थोपते जा रहे हैं यदि मेरे जैसे लोग इन अव्यवस्थाओं पर लिखते है तो कुछ लोग जबरन के अभिभावक बनकर समझाने आ जाते है कि "अपनी तबियत सुधारो और फिर लड़ना, आध्यात्मिक बनो, तटस्थ हो जाओ, कुछ बदलने वाला नही है, सरकार को गाली देने से क्या होगा, ऊर्जा जाया मत करो मोदी या अव्यवस्थाओं के पीछे, तुम्हे क्या करना है " - जानकारी के लिये बता दूँ कि मेरे माँ - बाप ने ही गलत के ख़िलाफ़ लड़ने की शिक्षा दी है और वे अब दोनो स्वर्ग सिधार चुके हैं - कृपया अभिभावक बनने की कोशिश ना करें और जबरन ज्ञान का रायता ना फैलाएं - 55 वर्ष का हूँ, दुनिया देखी है बच्चा नही हूँ
सीधी बात बाप बनने की कोशिश ना करें वरना जहां असली बाप है वहाँ का टिकिट कटवाने में देर नही लगेगी मुझे
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जीवन अनिश्चित हो गया है और लगता है कि अब इन्हीं दुविधाओं और अनिश्चिन्ताओं के बीच ही अपने जीवन को दो सिरों पर बंधी बहुत टाईट बंधी रस्सी पर चलना होगा कि ज़रा बेलेंस बिगड़ा और नीचे गिरा
एक बकैट लिस्ट बना रहा हूँ , बल्कि हम सबको बनाना चाहिये ; इसमें रोज कुछ न कुछ जोड़ूँगा
◆ एक वाद्य यंत्र सीखना चाहता हूँ - गिटार, तानपुरा या सारँगी या पक्का गाने के दो राग कम से कम - यमन, मालकौंस, वसंत बहार या भैरवी
◆ तीन - चार अधूरी पड़ी कहानियाँ पूरी करना चाहता हूँ बगैर यह सोचे कि उसके पात्र जो आसपास है क्या कहेंगे
◆ कुछ कविताएँ बेख़ौफ़ होकर बिंदास लिखना चाहता हूँ जिससे किसी को बुरा लगे तो मेरी बला से
◆ अकेला नदी, पहाड़, समुद्र या कही दूर जाना चाहता हूँ एक माह के लिए आवारा मुसाफिर की तरह किसी की परवाह किये बिना
◆ सारी औपचारिकताएं और वर्जनाओं से मुक्त होकर बेफिक्री से एक लम्बी यात्रा नितांत अनजान लोगों के बीच या उनके साथ करना चाहता हूँ
◆ जितना लम्बा हो सकें उतना मौन रहना चाहता हूँ
◆ अपने मन की बातें, स्वप्न और अदम्य इच्छाएँ निर्भीक रूप से अभिव्यक्त करते हुए एक बार पहाड़ की चोटी से चिल्लाकर कह देना चाहता हूँ
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सात आज, बाकी कल से दो रोज़ अगले आठ दिनों तक
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बहुत दिनों में कानों में एक मधुर गीत सुनाई दिया है, सूफ़ी परम्परा की ओर बढ़ता यह गीत युवा मित्र शशांक ने गाया है और यह इतना प्यारा है कि सुबह से अभी तक 3 - 4 बार सुन लिया है, शशांक नेपाल से आते है और लखनऊ में रहकर संगीत साधना करते है इनके भाई शिवा भी अदभुत संगीतज्ञ है और गिटार पर पकड़ जबरदस्त है
बहुत बढ़िया शशांक, और गीत सुनने का मन है, आज का दिन बना दिया तुमने जियो बिटवा, जियो
इस गीत के लिए
बधाई
और शुभाशीर्वाद
https://www.youtube.com/watch?v=t1wxkLlMxAs
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दो पीढ़ियों के नजरिये, प्रेम , द्वंद, संघर्ष और कैसे ब्रेक अप के बाद फिर विश्वास और प्रेम मजबूत होकर उभरता है
सचिन खेडेकर मराठी के उत्कृष्ट अभिनेता ही नही वरन एक बेहतरीन मनोवैज्ञानिक के रूप में इस फ़िल्म में सामने आए है
अमेय वाघ, मिथिला पारकर के साथ सचिन ने कसा और सधा हुआ अभिनय किया है और वरुण नार्वेकर ने अपने सिद्धहस्त निर्देशन से दो पीढ़ियों के मतभेद और युवाओं के प्रेम, मुद्दों, रिश्ते - नाते, आपसी सूझबूझ, देह और देह के परे के प्रसंगों के साथ उनके ईगो को चढ़ते एवं उतरते हुए बहुत खूबसूरती से दिखाया है
मराठी फिल्मों के वृहद संसार से चकित हूँ और थियेटर से आये ये कलाकार, कहानीकार, दिग्दर्शक और समग्रता से सम्पूर्ण सिनेमेटोग्राफी, गीत संगीत, अभिनय और प्रस्तुति में हिंदी के रुपहले पर्दे से बहुत आगे है, तकनीकी रूप से सक्षम और स्पष्ट दिशा के साथ मराठी सिनेमा बहुत समृद्ध है इस बात में कोई शक नही है और इसका मूल कारण है मराठी माणूस भले ही गरीब अशिक्षित हो सकता है पर वह उत्कृष्ट कोटि का कलावन्त है और जीवन के बरक्स कला और कैमरे के आगे पीछे देखने की उसकी दृष्टि और मेधा बहुत स्पष्ट है
नेटफ्लिक्स पर यह उपलब्ध है - "मुरम्बा"
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