" 15 अगस्त " on Netflix
राजू पेठे, मृण्मयी देशपांडे, आदिनाथ कोठारी का अभिनय और स्वप्निल जायेकर का निर्देशन मतलब दो घँटे चार मिनिट की एक लम्बी प्रेम कविता है जिसमें चुहल है, मस्ती है, बुजुर्गों के मुद्दे, मुम्बई की गांधी चाल में राजनीति, नगर सेवक के गुण दोष , देश है - अमेरिका है, गरीबी - अमीरी, पिकासो और एमएफ हुसैन है , और सबसे ज्यादा सघन प्रेम की अनुभूति है जो अंत तक आते - आते आपको अविरल अश्रुओं की धारा में इतना डूबो देती है कि फ़िल्म कब खत्म हुई आपको पता ही नही चलता
स्वतंत्रता और परतंत्रता के बीच एक ही चाल में रहने वाले दो युवाओं की कहानी है जो चाल के बाकि लोगों के बरक्स आज़ादी की असलियत, पूर्वाग्रह, समझ और मजेदार किस्सागोई की दास्ताँ है, पर एक चाल में साथ रहकर मत भिन्न होने के बाद भी लोगों में अपनापा और सहयोग कैसा होना चाहिये यह दिखाने में फ़िल्म सफल हुई है
बाल नायक का हाथ झंडा गाड़ने वाले डंडे के गड्ढे में फंस गया है और इस बहाने निर्देशक ने देश के समूचे विकास पर व्यंग्य किया है और हाथ गड्ढे में से निकालने के लिए किए जा रहें प्रयासों के ज़रिए पूरे विकास की प्रक्रिया और एडहॉक प्रयासों को जबरदस्त तरीके से दिखाया है जो हर बार फेल होते है पर अंत में झंडे को सलामी के समय हाथ बाहर निकलता है गड्ढे में से जो यह दर्शाता है कि देश, देश के राष्ट्रीय प्रतीक ही सबसे बड़े है व्यक्ति, पार्टी या कोई नेता देश नही हो सकता पर यह समझ होने के लिये हमें अभी और शिक्षा की आवश्यकता है, पूरी फिल्म में जाधव नामक चरित्र नवीन प्रयासों को करता जरूर है कि उस बाल नायक का हाथ गढ्ढे से निकल सकें और स्वतंत्रता दिवस मनाया जा सकें पर हर बार वह फेल होता है - बहुत बारीक प्रतीकों, उपमाओं और तीखे व्यंग्य भरे संवादों से ओत प्रोत फ़िल्म बड़ा सन्देश देती है , इसके समानांतर प्रेम की एक कविता है जो बड़े कैनवास पर लिखी जा रही है और जिसका अंत इतना आदर्श रूप में होता हैं कि पता ही नही चलता
" 15 अगस्त " साफ सुथरी , सरल, सहज, बहुत समृद्ध और बेमिसाल फ़िल्म है जो नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है
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