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Khari Khari, When I will be old and other posts from 27 to 30 May 2021

 || जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा ||

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जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा, एकदम जर्जर बूढ़ा, तब तू क्या थोड़ा मेरे पास रहेगा? मुझ पर थोड़ा धीरज तो रखेगा न? मान ले, तेरे महँगे काँच का बर्तन मेरे हाथ से अचानक गिर जाए? या फिर, सब्ज़ी की कटोरी मैं उलट दूँ टेबल पर? मैं तब बहुत अच्छे से नहीं देख सकूँगा न! मुझे तू चिल्लाकर डाँटना मत प्लीज़! बूढ़े लोग सब समय ख़ुद को उपेक्षित महसूस करते रहते हैं, तुझे नहीं पता?
एक दिन मुझे कान से सुनाई देना बंद हो जाएगा, एक बार में मुझे समझ में नहीं आएगा कि तू क्या कह रहा है, लेकिन इसलिए तू मुझे बहरा मत कहना! ज़रूरत पड़े तो कष्ट उठाकर एक बार फिर से वह बात कह देना, या फिर लिख ही देना काग़ज़ पर। मुझे माफ़ कर देना, मैं तो कुदरत के नियम से बुढ़ा गया हूँ, मैं क्या करूँ बता?
और जब मेरे घुटने काँपने लगेंगे, दोनों पैर इस शरीर का वज़न उठाने से इनकार कर देंगे, तू थोड़ा-सा धीरज रखकर मुझे उठ खड़े होने में मदद नहीं करेगा, बोल? जिस तरह तूने मेरे पैरों के पंजों पर खड़े होकर पहली बार चलना सीखा था, उसी तरह?
कभी-कभी टूटे रेकॉर्ड प्लेयर की तरह मैं बकबक करता रहूँगा, तू थोड़ा कष्ट करके सुनना। मेरी खिल्ली मत उड़ाना प्लीज़, मेरी बकबक से बेचैन मत हो जाना। तुझे याद है, बचपन में तू एक गुब्बारे के लिए मेरे कान के पास कितनी देर तक भुनभुन करता रहता था, जब तक न मैं तुझे वह ख़रीद देता था, याद आ रहा है तुझे?
हो सके तो मेरे शरीर की गंध को भी माफ़ कर देना। मेरी देह में बुढ़ापे की गंध पैदा हो रही है! तब नहाने के लिए मुझसे ज़बर्दस्ती मत करना। मेरा शरीर उस समय बहुत कमज़ोर हो जाएगा, ज़रा-सा पानी लगते ही ठण्ड लग जाएगी! मुझे देखकर नाक मत सिकोड़ना प्लीज़! तुझे याद है, मैं तेरे पीछे दौड़ता रहता था, क्योंकि तू नहाना नहीं चाहता था? तू विश्वास कर, बुडढों को ऐसा ही होता है, हो सकता है एक दिन तुझे यह समझ में आए, हो सकता है, एक दिन!
तेरे पास अगर समय रहे, हम लोग साथ में गप्पें लड़ाएँगे, ठीक है? भले ही कुछेक पल के लिए क्यों न हो। मैं तो दिन भर अकेला ही रहता हूँ, अकेले-अकेले मेरा समय नहीं कटता! मुझे पता है, तू अपने कामों में बहुत व्यस्त रहेगा, मेरी बुढ़ा गई बातें तुझे सुनने में अच्छी न भी लगें तो भी थोड़ा मेरे पास रहना। तुझे याद है, मैं कितनी ही बार तेरी छोटे गुड्डे की बातें सुना करता था, सुनता ही जाता था? और तू बोलता ही रहता था, बोलता ही रहता था। मैं भी तुझे कितनी ही कहानियाँ सुनाया करता था, तुझे याद है?
एक दिन आएगा जब बिस्तर पर पड़ा रहूँगा, तब तू मेरी थोड़ी देखभाल करेगा? मुझे माफ़ कर देना यदि ग़लती से मैं बिस्तर गीला कर दूँ, अगर चादर गंदी कर दूँ, मेरे अंतिम समय में मुझे छोड़कर दूर मत रहना प्लीज़!
जब समय हो जाएगा, मेरा हाथ तू अपनी मुट्ठी में भर लेना। मुझे थोड़ी हिम्मत देना ताकि मैं निर्भय होकर मृत्यु का आलिंगन कर सकूँ।
चिंता मत करना, जब मुझे मेरे सृष्टा दिखाई दे जाएँगे, उनके कानों में फुसफुसाकर कहूँगा, कि वे तेरा कल्याण करें, कारण कि तू मुझसे प्यार करता था, मेरे बुढ़ापे के समय तूने मेरी देखभाल की थी!
मैं तुझसे बहुत-बहुत प्यार करता हूँ रे, तू ख़ूब अच्छे-से रहना ... इसके अलावा और क्या कह सकता हूँ, क्या दे सकता हूँ भला!!
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दिन का उपहार


1994 - 96 की बात होगी, पहली बार आसाम गया था एक शिक्षक प्रशिक्षण करने, आसाम में एक अधिकारी थे जो उन दिनों शिक्षा सचिव थे - देव झिंगरन, दोनो पति पत्नी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे, उन्ही के बुलावे पर वहाँ गया था, देव आजकल Language Learning Foundation में दक्षिण एशिया के निदेशक है
देश में डीपीईपी परियोजना लागू हो रही थी अलग अलग राज्यों में नए नए डाइट बने थे, शिक्षा के लोकव्यापीकरण के लिए जोर शोर से प्रयोग नवाचार हो रहे थे, भारत सरकार के तत्कालीन केबिनेट सचिव और मेरे गुरु स्व अनिल बोर्डिया जी राजस्थान में "लोक जुम्बिश" परियोजना लागू कर रहे थे और मप्र में हम राजीव गांधी शिक्षा मिशन की तत्कालीन निदेशक अमिता शर्मा और तत्कालीन मुख्य मंत्री के निजी अधिकारी स्व आर गोपाल कृष्णन के साथ काम कर रहें थे, इस दौरान देशभर में घूम भी रहें थे
देव झिंगरन जी ने हमे एन बीहू के वक्त आसाम बुलाया और हम गये - बढ़िया थे वे 8 दिन, तब आते समय हमें आसाम के ये स्पेशल गमछे भेंट किये थे, जगह जगह हम गए तो मित्रों ने भी भेंट किये छोटे और प्यारे से गमछे ; विशेष रूप से सम्मान के रूप में भेंट किये जाने वाले ये गमछे दिल - दिमाग़ में तब से बसे हुए थे, बड़े जतन से सम्हाला, वापरा भी - एकाध अभी कही रखा भी होगा
हाल ही में आसाम में चुनाव हुए तो मप्र कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा से कई वरिष्ठ अधिकारी और मित्र चुनाव में पर्यवेक्षक बनकर वहाँ गए, एक अधिकारी की पोस्ट देखी तो मैंने लिख दिया कि मुझे गमछे चाहिये, बात आई गई हो गई, उन्होंने लिखा था कि जरूर
अभी थोड़े दिन पहले उनका आत्मीय सन्देश मिला कि आपका पता भिजवाईये गमछे भेजना है, मेरे लिए यह सुखद था, पता भेजा और आज ये अमूल्य उपहार मिल भी गया - इतनी संवेदनाशीलता, कामों में व्यस्त रहकर याद से इस उपहार को ले आना और मुझ तक पहुंचा देना यह गुण बिरलों में ही होता है
आपका धन्यवाद कैसे अदा करूँ Shailbala Martin जी, धन्यवाद शब्द बहुत ही छोटा है पर यकीन मानिये मेरे लिए ये बहुत ही अमूल्य तोहफ़ा है, आभारी हूँ
[ कोई नज़र ना लगाये - पहले ही कह रहा हूँ ]
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साढ़े तीन बजे बिजली गई थी, बिजली विभाग वाले फोन नही उठा रहें, जहाँ रहता हूँ वहाँ लगभग 40 % डाक्टर्स के घर है, शहर के सबसे बड़े और सबसे ज़्यादा नर्सिंग होम्स है मेरी कॉलोनी में
अभी घूमने गया था, जोकि अब शुरू किया फिर से, तो देखा कि हर डाक्टर के घर के सामने अमूमन 70 से 100 लोग खड़े है अँधेरे में, नर्सिंग होम्स अँधेरे में खड़े है ऊंघते अनमने से, मरीज गर्मी से बेहाल होकर बाहर आ खड़े है, उनके हाथों, गले मे नलियां लटकी है, मुंह पर ऑक्सीजन के फ्लो मीटर है, नर्स से लेकर सभी स्टॉफ हाँफ रहें हैं गर्मी में पर किसी को कुछ करना नही है, अव्यवस्था हमारा स्थाई भाव है अब ; तीन मॉल के जनरेटर्स घरघराहट के साथ बंद हो गए मेरे सामने ही
अस्पतालों के साथ अनेक घरों में कोरोना के मरीज ऑक्सिजन कॉन्संट्रेटर के भरोसे सांस खींच रहें है , लगभग हर तीसरे घर मे मरीज है पर बिजली विभाग ने कसम खा ली है कि कुछ नही करेगा, आधा देवास लगभग अँधेरे में डूबा हुआ है हमारी कॉलोनी सबसे ज्यादा प्रभावित है
दोनो फोन जो शिकायत के है, आपरेटर ने उठा कर रख दिये है वो " दैनिक वेतन भोगी आउट सोर्स वाला ठेकेदार का गरीब मुलाज़िम " कितनी और किस किसकी गालियाँ सुनेगा
अभी तो बमुश्किल आधा घँटा बरसात हुई थी तो शहर अँधेरे में डूब गया सोचिये मानसून में ये हरामखोर क्या करेंगे
#मामु (माननीय मुख्यमंत्री जी) #शिवराज जी, एक व्यवस्था ठीक हो तो बोलो, उस अटल ज्योति योजना का क्या हुआ ? कोरोना में तो मर ही रहें है अब बिजली भी नही दोगे क्या और अँधेरे में ही मार डालोगे हम सबको - क्या दोष है हमारा
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रोहिणी नक्षत्र का आज चौथा ही दिन है और जिस अंदाज़ में पानी बरस रहा उससे लगता है मानसून आ गया है - रोहिणी का यूँ टूटना ठीक नही होता, नानी - दादी और माँ कहती थी - "रोहिणी अगर खूब नही तपी तो मानसून कमज़ोर रह जाता है"
तपती हुई धरती पर ये वर्षा की बून्दें अमृत नही है, इससे उमस और गर्मी बढ़ेगी, क्षणिक सुख जरूर लग सकता है पर इसका नुकसान होगा
और हमेंशा की तरह बिजली गायब - क्या ही करें
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नए पुराने पेंट शर्ट सड़ रहें हैं पड़े पड़े, घर में पहनने वाले रामलाल के कपड़े घिस गए कि अब लगता है घर मे नए पहनना पड़ेंगे पर फिर खुद को ही ठीक नही लगेगा कि क्या नए कपड़े पहनकर घर मे बैठे हो मियाँ - कुछ शर्मो हया है या नही
ये रामलाल और छोटू के कपड़े पहनने की आदत ऐसी हो गई है कि आप में से कोई देख लेगा तो बोल उठेगा - "छोटू कपड़ा मार टेबल पर पहले" या कहेगा "कितना कंजूस आदमी है घर में रहकर भी अपने लिए ढंग के कपड़े नही पहन सकता" या "पता नही इतना रुपया है क्या छाती पर बांधकर ले जायेगा रहने का जरा भी शऊर नही "
वो झूम के मीटिंग या वेबिनार होते है रायता फैलाने वाले और परम ज्ञानियों के तो बस एकाध साफ सुथरा धुला हुआ बुशट पेन लेता हूँ - आलस भी आता है कि अब कौन निकाले और प्रेस खराब करें आधे घँटे के लिए - हवो ये ई ठीक है, कोई बोलेगा तो बोलने दो कौनसा नोबल पुरस्कार लेना है अपुन को, और क्या पता सामने वालों ने क्या पैना हेगा किसकूँ मालम और फिर कैमरा बन्द ही रखता हूँ पूरे समय और अपने श्रीमुख से फुल झाड़ने की बारी कभी गलती से आ गई तो सिर्फ थोबड़ा ही दिखें यह प्रयास होता है
पता नही अलमारियां कब खुलेंगी और धोबी के पास फिर कपड़े धुलेंगे, सूखेंगे और इस्त्री को जाएंगे सजने सँवरने
आलमारी खोलो तो डामर की गोलियों की खुशबू भी अब नही आती लगता है - वे भी ऊबकर कही दुबक गई है
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सम्भावना यह लग रही है कि उत्तर प्रदेश में जल्दी ही योगी की छुट्टी होगी और कोई ऐसा चेहरा लाया जाएगा - जो स्थानीय राजनीति में घुटा मुटा हो, जो चुनाव तक लोक लुभावन काम करें और चुनाव जीतने पर उत्तर प्रदेश को स्वर्ग से महान बना देने के वादों का अंबार लगा दें, नगदी ट्रांसफर से लेकर कृषि को लेकर उत्तर प्रदेश में विशेष छूट मिलें
अपने अमित भाई गायब है, निश्चित ही बंगाल की बड़ी हार के बाद वे ऑपरेशन यूपी पर लग गए है , भाजपा का 2022 में वहाँ जीतना जरूरी है वरना 2024 में तो सम्भव है इस सरकार का जय जय सियाराम होगा - क्योकि गांव से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर तो जग सिरमौर बन ही गया है देश
पश्चिम उत्तर प्रदेश से लेकर बाकी सब जगहों पर कोरोना, किसान आंदोलन के विरोध और अन्य असफलताओं ने सबकी छबि निपटा दी है और मंथन के विष को योगी को ही पीना होगा और अपने मन्दिर गोरखपुर जाना होगा - इसके अलावा कोई चारा फ़िलहाल नही है
हुआ यह है कि संघ ने आज़ादी के पहले से संगठन का काम तो बढ़िया किया, मन्दिर बनवा ही रहें है, हिंदुत्व की छतरी के नीचे अंध भक्तों की फौज से लेकर हर जगह अपनी गोटियाँ फिट कर ही ली, पर आज हक़ीक़त यह हो गई है कि देश के लोगों को सच्चाई देखने की आदत नही रही और सब पट्टी बांधकर वास्तविकता से मुंह मोड़ रहें है, कोरोना मौत के आंकड़ों से लेकर नोटबन्दी, जीएसटी या लिंचिंग तक के उदाहरण सामने है या पेट्रोल डीजल के भाव से लेकर महंगाई तक कोई कुछ बोल नही रहा शर्मा शर्मी में, और संघ के साथ असली भाजपा के लोगों को यह समझ आ गया है कि अब लोगों को सच्चाई से मतलब नही बल्कि सरकार को ही देश मान लिया है और इसलिये गफलत बढ़ गई है
याद रखियेगा उत्तर प्रदेश में अच्छे दिन आने वाले है

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