Skip to main content

Khari Khari Dead Bodies in Ganga , Film Ahaan of Netflix - Posts of 15 to 17 May 2021

 || भिन्न विषय की रोचक फ़िल्म अहान ||


अहान - अधेड़ उम्र के एक दम्पत्ति की प्रेम कहानी में एक वयस्क किंतु मानसिक रूप से अपरिपक्व युवा की भूमिका को लेकर बनाई गई फ़िल्म है - जो विशेष रूप से आवश्यकता वालें [ persons with special demand or mentally retarted ] लोगों के मुद्दों पर फोकस करती है
आरिफ़ ज़कारिया और निहारिका सिंह पति पत्नी है और उनका युवा पड़ोसी अबुली मामाजी एक मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का है - जिसका मानसिक विकास अभी उम्र के हिसाब से हुआ नही, पर वह माँ के काम मे हाथ बंटाता है, बहुत संवेदनशील और भावुक है और आरिफ़ निहारिका के सामान्य झगड़ों के बीच दोनो के अलग होने पर एक मध्यस्थ या पुल की भूमिका अदा करता है
फ़िल्म बहुत स्लो पेस पर चलती है पर विशेष मांग वाले बच्चों, किशोरों और युवाओं की समझ, योगदान पर फोकस करते हुए सही तरीके से मुद्दों को सामने लाती है, यह उन लोगों को जरूर देखना चाहिये जिनके घरों, रिश्तेदारों या आसपास में ऐसे लोग है - जिन्हें सहानुभूति की नही बल्कि बराबरी से समता के आधार पर ट्रीट करके नौकरी या विकास के अवसर देने की बात है
आजकल बहुत एनजीओ इस तरह का काम कर रहें हैं और ये लोग जॉब्स से लेकर शिक्षा में फिट भी हो रहें हैं, समाज का नजरिया भी बदल ही रहा है - ऐसे में इस फ़िल्म का स्वागत किया जाना चाहिये कि निखिल फेरवानी जैसे समझदार निर्देशक ने मनोविज्ञान, सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक मुद्दों के सम्मिश्रण से यह फ़िल्म बनाई
नेटफ्लिक्स पर यह उपलब्ध है - एक अलग विषय और मुद्दे पर बनी है फ़िल्म, आपका मन हो तो देखें
***
सुनो तो गंगा, ये क्या सुनाये
राम तेरी गंगा मैली हो गई !!!

कल पटना, कानपुर, हरदोई और कुछ अन्य जिलों में मित्रों से बात कर रहा था तो यह बात सामने आई कि गंगा में इस समय तो शव तैर ही रहें हैं, पर अभी मानसून शुरू होगा और गंगा में ज़रा भी उफ़ान आया और पानी बढ़ा तो रेत में दबी हजारों - लाखों लाशें तैरती मिलेंगी और तब हालात बहुत ही खराब हो जायेंगे
मतलब यह विचार करने की बात है कि किसी भी धर्म में मृत्यु उपरान्त अंतिम संस्कार सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है जिसे पूरी श्रद्धा और विश्वास से आदमी करता है, यही नही पूरे 14 दिन या चालीसा होने तक के सभी प्रपंच भी करता है भले अमीर हो या गरीब, पर सबका साथ सबका विकास वाले समय में आदमी अपने लोगों की लाश पानी में छोड़कर या रेत में दबाकर भाग रहा है
आजादी के 75 वर्ष के बाद भी हम आम आदमी को इतनी आय उपलब्ध नही करा पाये है कि अपनी महतारी और बाप का, अपने बच्चों या पत्नी का या सहोदर का क्रिया कर्म सम्मान से कर सकें - मतलब उसके पास पहले दिन के लिए लकड़ी के ₹ 800 - 900 भी नही या ताबूत के लिये रुपये नही है - यह उन सभी पार्टियों के लिए डूब मरने की बात है, नेहरू जैसे दृष्टा प्रधानमंत्री के बाद जितने भी प्रधान बनें वे सब धूर्त और एकदम बदमाश निकले, इंदिरा गांधी को हटाने के बाद जिस तरह से मोरारजी देसाई , जगजीवनराम से लेकर चंद्रशेखर, गुलजारीलाल नंदा तक यहाँ तक कि राजीव गांधी, मनमोहन सिंह जैसा अर्थ शास्त्री या असली देशभक्त अटल जी की सरकार ने भी गरीबी हटाने के नाम पर सिर्फ देश को धोखा ही दिया और संविधान की शपथ लेकर सिर्फ़ शपथ का उल्लंघन ही किया है - कायदे से देखा जाए तो ये सब सिरे से इस देश के अपराधी है और इन सबका अपराध अक्षम्य है
2014 से जो अधकचरी, अनुभवहीन और कुपढ़ सरकार राज कर रही है उसके बारे में बात करने की ज़रूरत ही नही है, लोगों को विशुद्ध रूप से अंधा करके दिल - दिमाग़, अस्मिता, आत्म विश्वास और विकास के अवसरों का सत्यानाश किया है - वह इतिहास में याद रखा जायेगा - मतलब ये लाशें इस सरकार की है जो हमारी पवित्र गंगा की छाती पर तैर रही है और बेशर्म सरकार को अपनी छवि, निज आवास, मन्दिर और विष्ठा सँवारने की पड़ी है
छि, ये दो - चार लोग अर्थात प्रधान, गृह, वित्त और स्वास्थ्य मंत्री कितने घृणित है जो इन विषम परिस्थितियों के बाद भी नीच कर्मों में लगकर घटिया राजनीति कर रहें हैं इसके साथ ही कांग्रेस के राहुल, प्रियंका तथा अन्य विपक्षी मुलायम, लालू , मायावती, सुविधाभोगी कामरेड्स, अकाली, तृणमूल और अन्य पता नही कहाँ भाँग खाकर पड़े है - मतलब मैं विपक्ष के नेताओं के नाम लिखना चाह रहा हूँ तो सूझ नही रहा है इस कदर हालात खराब हो गए है
क्या ही कहा जाये - एक कोई तंत्र काम कर रहा हो तो बात की जाये सिवाय रुपया कमाने और देश में निर्दोष नागरिकों की राज्य प्रायोजित हत्याओं के कुछ और हो ही नही रहा इस समय
अफ़सोस, आईये गाना गाये - " सौंगन्ध राम की खाते है मन्दिर वही बनायेंगे " या " करके गंगा को खराब देते गंगा की दुहाई " परमपूज्य शंकराचार्य गण, नागा साधू, अखाड़ेबाजी करने वाले धर्म के ठेकेदार और तमाम पीठेश्वर और 1008 है कहाँ, मुल्ले मौलवी, इमाम और ओप - पोप, बिशप, फादर, मदर, ब्रदर कहाँ गायब है - कुम्भ में गरीब जनता से लूटे रूपये गिनने में लगे है क्या
आज अख़बार की यह तस्वीर आपको विचलित नही करें और फिर भी गंगा का पानी कमंडल या किसी बोतल में रखकर आप घर में पवित्रता का एहसास कर रहें हैं तो आपसे बड़ा पाखण्डी कोई नही है और इस सबके बावजूद भी 2024 में इसी निकम्मे, झाँकीबाज और आत्ममुग्ध गंवार को लाने की मुहिम समानांतर रूप से आईटी सेल के साथ सोशल मीडिया पर भी कुछ लोगों ने शुरू कर दी है - उनके लिए अभी से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि और नमन
ईश्वर से प्रार्थना है कि इन सबको माफ़ मत करना - ये सब जानते है कि ये क्या कर रहें हैं

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...