Where Mind is with fear... lead me to the dark...
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भला हो इन सारे भक्तों का और बाकी समझदारों का जिन्होंने सहिष्णु और असहिष्णु जैसे मूश्किल शब्द और Tolerance & Intolerence जैसे कठिन शब्द आम लोगों को सिखा दिए.
काश कि फिर से शब्दों की सुनामी आये और हम गंवार मूर्ख लोग जाहिल और अनपढ़ों से ऐसे ही कुछ अच्छे शब्द सीख जाएँ कम से कम अच्छे दिन ना सही अच्छे शब्द तो सीख ही जायेंगे पांच साल में
अब भौंकते हुए मत आना वाकई पोजिटिव सेन्स में कह रहा हूँ मितरो
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किरण और आमिर के बहाने जो लोग घटिया जोक्स बना रहे है उनके अंदर पितृ सत्ता कितनी कूट कूटकर भरी है यह भी साफ़ समझ आ रहा है, विश्वास ना हो तो जरा वाट्स अप और फेसबुक पर इन शैतानों के घटिया जोक्स देख लें। महिलाओं को बराबरी का कब मानेंगे हम ? और इसमें जेंडर के नाम पर रोटी खाने वाले और महिला हिंसा पर दहाड़े मारकर रोने वाले भांड, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल है।
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आर्यावर्त का नाम चायवाला देश रख दो
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झाबुआ में कैलाश विजयवर्गीय ने भाजपा को जीत (:P) दिलाई.......और व्यापमं में शिवराज के बाद मुख्यमंत्री ना बन पाने का बदला लिया .
याद है जब कांग्रेस हारी थी झाबुआ में तो दिग्विजय ने कहा था कि "जब कांग्रेस झाबुआ में हार गयी है तो मैंने हार मान ली है और वे भोपाल से चले गए थे"
अब माननीय शिवराज जी को क्या कहना है वैसे देवास में मिला सामंतवादी तोहफा उन्हें खुश कर सकता है, क्योकि गायत्री पवार निर्दलीय भी चुनाव लड़ती तो गुलाम मानसिकता के चलते जीत जाती, और देवास सीट तो भाजपा को थाली में रखे लड्डू की तरह मिली है और बगैर किसी प्रयास के पर झाबुआ में जहां सारे मंत्री और अफसरशाही ने जोर लगा दिया था वहाँ क्या हुआ मितरो ?
राजेन्द्र कास्वा को अभी भी छुपाकर रखो और शरण दो संघ की भाजपा की ताकि आने वाले समय में झाबुआ के पड़ोसी जिलों और समूचे मालवा में शिवराज जी का झांकी निकल सकें.
हालांकि ना देवास से फर्क पडेगा ना झाबुआ से, लोकसभा में मोदी जी का एक हाथ जरुर कट गया है, बिहार के बाद मप्र में राजनीती की चाल देखिये कि मोदी का जादू खत्म हो रहा है. याद रखिये देवास चुनाव में भाजपा की जीत कोई मायने नहीं रखती - जिस तरह से जय प्रकाश शास्त्री ने गायत्री पवार को मात्र तीस हजार से जीतने दिया वह आने वाले समय की पदचाप है कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है. कांग्रेस ने भी जीतकर क्या कर लिया होता साठ साल का इतिहास हमारे सामने है ही पर देवास को अपनी उपलब्धि बताना चुनाव की रणनीती वालों और सियासी पैरोकारों की निहायत ही मूर्खता भरी मानसिकता होगी.
ये चुनाव मप्र में बदलाव की बयार है और अब शिवराज जी को और उनकी भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी को सावधान हो जाना चाहिए कि क्या करना है और क्या किये जाने की जरुरत है. क़ानून व्यवस्था से लेकर मुआवजा, आत्महत्या, कुपोषण, महिला हिंसा और अपराध, सूखा, राहत और बाकी दीगर मुद्दों पर बचे हुए समय में ध्यान नहीं दिया तो अबकि बार ......कौनसी सरकार ?
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देवास का क्या हुआ विधायक कितने वोटों से जीती....? मुबारक देवासियों........सामंतवाद मुबारक हो.
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हिंदी में तथाकथित लेखक इतना आत्ममुग्ध क्यों है और एटीट्यूड क्यों दर्शाता है जबकि तमाम पुस्तक मेले और साहित्य उत्सव पीयूष मिश्रा जैसे भांड और मालिनी अवस्थी के ठुमको द्वारा ही भीड़ जुटाते है।
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सुरक्षित शहर की एक पहल कार्यक्रम के तहत इंदौर में 23 नवम्बर को Independent Commission For Aid Impact, London, UK, की टीम काम को देखने आई जिसमे कमिश्नर Tina Fahm, Gemma Daview, Peter Grant आये. इन लोगों की टीम के साथ DFID भारत की अरुंधती रॉय चौधरी और अनुवादिका अपराजिता भी थी.
पूरी टीम ने इंदौर में और प्रदेश के चार नगर निगमों के द्वारा महिला हिंसा रोकने के लिए किये जा रहे प्रयासों को देखा समझा और सराहा. इंदौर में महिलाओं के परपल समूह (छोटी कुम्हार खेडी ) के काम को गंभीरता से देखा जहां महिलाओं ने महिला हिंसा रोकने के साथ स्व सहायता समूह के कामों, आजीविका प्रशिक्षण और विभिन्न विभागों की योजनाओं के साथ तालमेल को होते देखा और कहा कि विश्व में यह अपनी तरह का कार्यक्रम है जो इतने बड़े स्तर पर एक साथ चार शहरों में नगरीय निकायों द्वारा किया जा रहा है. इस टीम ने स्थानीय गांधी हाल में युवाओं के लिए आयोजित युवा उत्सव में भी भाग लिया और युवाओं को सम्मानित किया. गांधी हाल में युवाओं ने रोटी बेलने, साड़ी पहनने जैसे काम करने की प्रतियोगिता हुई, और नाटक भी करके बताया. इस अवसर पर टीना ने महिला हिंसा से जुडी एक प्रदर्शनी का उदघाटन भी किया.
इस पूरे आयोजन में इंदौर की दो संस्थाओं -भारतीय ग्रामीण महिला संघ, पहल के कार्यकर्ताओं का बड़ा योगदान था. नगर निगम, इंदौर की ओर से रोहन सक्सेना (IAS), अतिरिक्त आयुक्त, देवेन्द्र सिंह चौहान (डिप्टी कमिश्नर) तकनीकी समूह की ओर से मनीषा शर्मा तेलंग, अस्मिता बासू, संदीप नाईक, वसीम इकबाल, हिमांशु शुक्ला उपस्थित थे. कार्यक्रम को सार्थक बनाने में उषा अग्रवाल, रीता मदान, तरुणा होलकर, आशय, प्रवीण गोखले, अनूपा, अंशुल, मेघा दुबे, लोकेन्द्र, अशोक, विनोद, आशीष, रजनी, सरिता, प्रीती, कीर्ति, रश्मि, राम, धर्मेन्द्र, आदि की भूमिका महत्वपूर्ण थी.
डेढ़ साल चले इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में गतिविधियाँ की गयी है और बेहद सीमित संसाधनों में ज्यादा से ज्यादा लाभार्थियों को इसमे जोड़ा गया है. चार शहरों में महिला हिंसा को रोकने के प्रयासों को अब स्मार्ट सीटी परियोजना में भी समाहित किया जा रहा है साथ ही महिला सेफ्टी आडिट को स्थानीय शासन की इकाईयों में एक नियमित गतिविधि के रूप में जोड़ा जा रहा है, जो इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धि है.
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