भाजपा के राष्ट्रीय
अध्यक्ष अमित शाह ने चित्रकूट में कल कहा कि राजनीती में साठ साल के बाद नेताओं को
संन्यास लेकर समाज सेवा करना चाहिए, यह बात उन्होंने स्व नानाजी देशमुख द्वारा
स्थापित चित्रकूट में समाजसेवा के विभिन्न प्रकल्पों को देखकर कहा. स्व नानाजी
देशमुख ने अपने आख़िरी दिनों में सक्रीय राजनीती छोड़कर चित्रकूट में बसकर आस पास के
गाँवों में दीनदयाल सेवा प्रकोष्ठ के माध्यम से जन सेवा के कई काम आरम्भ किये, बाद
में उनकी दत्तक पुत्री नंदिता पाठक और भरत पाठक ने उन कामों को आगे बढाया और आज
चित्रकूट में लोगों के संगठित समूह है जो खेती में बदलाव से लेकर ग्रामीण रोजगार
और कुटीर उद्योगों से आजीविका चलाने का बेहतरीन काम कर रहे है. यह नानाजी की ही
सूझबूझ थी कि जीते जी उन्होंने चित्रकूट ग्रामोदय विश्व विद्यालय की स्थापना की और
विभिन्न प्रकार के ग्राम विकास के खेती के, और आजीविका के विभिन्न प्रकल्प आरम्भ
किये जिसके नतीजे आज सार्थक रूप से सामने दिख रहे है. इस स्थान को और उनके द्वारा
स्थापित इन प्रकल्पों को निश्चित रूप से एक बार देखा जाना चाहिए खासकरके नेताओं को
जो विधायक निधि और सांसद निधि का भी उपयोग सही नहीं कर पाते और अपने कार्यकाल में
बदनाम होकर खत्म हो जाते है. अमित शाह की इस बात में सच में दम है कि भारत जैसे
देश में जहां इस समय 55% युवा है विश्व में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला मुल्क है.
जमीनी धरातल पर देखें तो हमारे युवा कई अवसरों से वे दूर है, खासकरके राजनीती से
और निर्णयों से, तो इन युवाओं को मुख्य धारा में लाने और व्यापक स्तर पर इनकी
भागीदारी बढाने के लिए बुजुर्ग राजनेताओं से देश को सच में मुक्ति लेना होगी. इस
समय अगरचे हम देखे तो पायेंगे कि हर जगह पर हर पार्टी में और हर विचारधारा में
बुजुर्गों का वर्चस्व है और वे इस कदर आसन जमाकर बैठे है कि पाँव कब्र में लटक गए
पर ना पद का मोह छुट रहा ना काम कर पा रहे है. कांग्रेस से लेकर भाजपा, वामपंथी,
जनता दल, समाजवादी, तृणमूल, बसपा, दक्षिण भारत की लगभग सभी पार्टियों में इस समय
बुजुर्गों की सत्ता है. अकेली भाजपा में अटल बिहारी जी से लेकर मुरली मनोहर जोशी,
लालकृष्ण आडवानी से लेकर खुद नरेंद्र मोदी साठ के ऊपर है.
कांग्रेस में सोनिया भी
साठ के ऊपर है. रामविलास पासवान से लेकर लालू, नितीश, प्रकाश करात और तमाम नेता
जैसे जयललिता भी साठ के ऊपर ही है. अगर तरुणाई की बात करें तो हमारे सामने सचिन
पायलट, राहुल गांधी, नवोदित लालू के सुपुत्रद्वय, अखिलेश, ममता, अरविंद केजरीवाल,
मनीष सिसोदिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे चंद नाम ही जेहन में उभरते है. निश्चित
ही युवाओं के पास ताकत, जोश और हिम्मत है, वे रिस्क लेकर कडा संघर्ष करना भी जानते
है और मेहनत भी कर सकते है, ये युवा इन बुजुर्गों से ज्यादा पढ़े लिखे है, ये युवा
विभिन्न प्रकार की सूचना प्रौद्योगिकी में दक्ष एवं कुशल है जो आज चुनाव जीतने से
लेकर बाजार में बेचने खरीदने काम आ रही है, और हाथों में अत्याधुनिक गजट घुमाते
हुए हर काम इंटरनेट से करते है. मुझे लगता है कि आज की युवा पीढी के पास जो
दुनियावी अनुभव है और संघर्ष करने का माद्दा है वह पहले की पीढी की तुलना में अधिक
है और इनके पास एक्सपोजर भी ज्यादा है. अपने समय की समस्याओं को जानते है, समझते
है और हल करने का जज्बा भी रखते है. ऐसे में वाकई यह समय की आवश्यकता है कि युवाओं
को ज्यादा मौके दिए जाए.
हमारे यहाँ लम्बे
अवधि यह मांग समय समय पर उठती रही है कि जब नौकरी में रिटायर्डमेंट की समय सीमा
निर्धारित है तो राजनीती में क्यों नहीं? गाहे बगाहे इस पर चर्चा भी हुई है परन्तु
आज तक इस पर किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया क्योकि सरकार में ऐसे लोग थे जो खुद
पदों पर आसीन थे लिहाजा वे अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारते. पूर्व प्रधान
मंत्री स्व. राजीव गांधी से सहमति या असहमति हो सकती है परन्तु जिस तरह से उनके युवा
नेतृत्व ने देश को नई शिक्षा नीती (1986), भूमंडलीकरण और वैश्विककरण, कम्प्युटरीकरण
और सूचना प्रौद्योगिकी, फाईबर ऑप्टिक्स के सहारे देश भर को एक संजाल से जोड़ने में
सफलता दी, वह अदभुत थी. आज भी जहां भी युवा नेतृत्व है वहाँ तस्वीर दूसरी है. ठीक
दूसरी ओर देश के अधिकाँश राज्यों में बुजुर्ग नेतृत्व वाले राज्य कुछ कर नहीं पा
रहे है. भूख, भय, भ्रष्टाचार, कुपोषण और अपराध की स्थिति भयानक है और सरकारें
यथास्थिति वाद में यकीन करके कुछ भी करने में अपने आपको अक्षम पा रही है.
अमित शाह का यह सही
सुझाव सही समय पर आया है, नरेद्र मोदी जी देश में बदलावों की बयार ला रहे है देश
विदेश में लोकप्रिय हो रहे है तो अब उन्हें कम से कम अपने घर से यानी भाजपा से
शुरू करना ही चाहिए जैसा कि शपथ लेते ही बुजुर्गों को मंत्री पदों से दूर कर दिया
था , अब और बचा खुचा साफ़ करके एक आदर्श स्थापित करें ताकि बाकी सब भी अनुसरण करके
युवाओं को मौका देंगे और देश में शायद इसी बहाने एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों की
अपेक्षाएं पूरी हो सके.
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