"आजाद कलम"
देश हित में मोदी और अमित शाह को पार्टी वापिस भेजें.
वर्तमान सरकार के यदि दिल्ली और बिहार चुनाव परिणामों में भी अगर मुगालते दूर हुए है तो मोदी को यह समझ लेना चाहिए कि देश की नब्ज क्या है बाकी जगहों पर अब चुनाव होंगे तो बचे खुचे मुगालते भी दूर हो जायेंगे.
मोदी ने 36 सभाएं और अमित शाह ने 76 सभाएं बिहार में करके देश का मेहनत का रुपया बर्बाद किया, एक महादेश के प्रधानमंत्री का इस तरह से समय बर्बाद करना, छोटी जगहों पर जाना और पूरे केबिनेट, भारत सरकार के आला अधिकारी से लेकर देश भर के लोगों ने भाजपा को जिताने में कोई कसर नहीं छोडी परन्तु इस सबके बावजूद कुछ हासिल नहीं किया. ज़रा प्रशासन की सोचिये जिसने देश के बड़े से बड़े लोगों के लिए किस तरह से छोटी जगहों पर "प्रोटोकॉल" मेंटेन किया होगा और कैसे सुरक्षा व्यवस्थाएं और बाकी सब चाक चौबंद रखा होगा.
सही समय है की भाजपा अब अपना नेतृत्व बदले मोदी इस्तीफा दें, और दूसरा कोई नेता देश को नेतृत्व दें क्योकि देश ने मोदी को बुरी तरह से फेल कर दिया है. भाजपा के लिए यही सही समय है जब गुजरात की इस अपशगुनी जोड़ी को निकाल बाहर करें और दीन दयाल उपाध्याय, देवरस, गोलवलकर, हेडगेवार से लेकर आडवानी, जोशी, गोविन्दाचार्य, और वेंकैया जैसे आदर्श चरित्र वाले लोगों को आगे आने दें . मोहन भागवत को हो सकता है कि यह गरल पान करना पड़े और शायद देश भर में फैले संघियों से बुराई मोल लेना पड़े पर मोहन भागवत को अब आगे आकर मोदी और अमित शाह की जोड़ी को वापिस गुजरात भेजना ही होगा और देश के लोगो की इस चुनाव में जागी हुई इच्छाएं भाजपा को बचे समय में पूरी करना ही होगी वरना सन 2019 में इससे बुरी गत होगी.
अरविंद केजरीवाल और नितीश कुमार की ताकत को कम आंकना बड़ी भूल होगी. यह समय भाजपा के लिए कठिन है जिसमे कैलाश विजयवर्गीय जैसे लठैत लोग भी ताकत लगाकर हार गए और मीडिया को खरीदकर रजत शर्मा से लेकर सुधीर चौधरी जैसे कलंक भी अपनी ताकत लगाकर हार गए, संघ ने भी कोई कसर नहीं छोडी, फिर क्या कारण है कि भाजपा के क्षत्रप बुरी तरह से गच्चा खा गए ?
मुझे गंभीरता से लगता है कि गाय, जातिवाद, (खासकरके मोदी का अपने को पिछड़ा बताना) साम्प्रदायिकता, बेहद भयानक तरीके से पटना में पूरी पार्टी, संगठन और सरकार का कैम्प करना, पंद्रह लाख का काला धन, मोहन भागवत का ऐन वक्त पर आरक्षण के खिलाफ वक्तव्य देना, और बिहार में चुनाव पूर्व बोली लगाना और नितीश के कामों को अपना बताकर विकास के खोखले दावे करना, मोदी का अति विदेश भ्रमण, अच्छे दिन, पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे जैसे घटिया वाक्य, अरुण शौरी और राम जेठमलानी के तीखे कमेन्ट और मुस्लिम बनाम ओबीसी, मुलायम और रामविलास पासवान जैसे अवसरवादी लोगों का साथ, जीतन मांझी की व्यक्तिगत महत्कान्क्षायें, जैसे मुद्दों ने मोदी को शिकस्त दी है. यह हार भाजपा की नहीं वरन मोदी और अमित शाह की व्यक्तिगत हार है और इसके लिए वे दोनों ही सम्पूर्ण रूप से जिम्मेदार है.
यह कोई दुर्भावनावश लिखी जाने वाली टिप्पणी नहीं बल्कि एक गंभीर चिंतन के बाद उभरी टिप्पणी है जो देश हित में है और अगर गहराई से देखे तो भाजपा के आत्म मंथन के लिए है ताकि आने वाले चुनावों में पार्टी अपना बेहतरीन प्रदर्शन कर सकें. बिहारी बुद्धि और दिल्ली की बुद्धि को अगर आप फिर भी नजर अंदाज करके आगे बढ़ना चाहते है तो शायद आप आत्महन्ता है और इन दो लोगों की जिद के कारण एक गौरवमयी और कांग्रेस जैसी घटिया सत्ता लोलुप पार्टी से लाख गुना बेहतर पार्टी खत्म हो जायेगी. इस समय देश नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहा है, एक ओर देश भर के बुद्धिजीवी सामने आकर मार्च निकाल रहे है दूसरी ओर पूरी दुनिया में भारत जैसे देश की किरकिरी हो रही है. इन चुनावों से देश की छबि पूरी दुनिया में खराब होगी यह मानकर चलिए और जो नियोजन के लिए दुनियाभर के लोग यहाँ निवेश करना चाहते है वे एक बार ठिठक कर सोचेंगे और सच में वे वापिस लौट जायेंगे.
देशहित में मोदी और अमित शाह को पार्टी वापिस करें और नया नेतृत्व चुने, ऐसा नहीं कि भाजपा के पास लोग नहीं है परन्तु जब तक इन दोनों को बाहर नहीं किया जाएगा तब तक भाजपा को अपनी सांगठनिक ताकत का एहसास नहीं होगा.
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