इंदौर साहित्य उत्सव को जयपुर साहित्य उत्सव बनाने की अनूठी जिद के कारण यह एक सफल प्रयास कहा तो जा सकता है परन्तु पहले दिन जो प्रतिसाद मिलना था वह नहीं मिला . सुबह उदघाटन के समय जब पहुंचा तो प्रभु जोशी के अलावा, हैलो हिन्दुस्तान के सम्पादक मालिक के अलावा बाउंसर और वालीन्टियर ही थे. वृष्ट प्रशासनिक अधिकारी और ख्यात लेखक मनोज श्रीवास्तव ठीक समय पर पहुंच गए थे फिर हमसे हाय हेलो करके कही चले गए. आबिद सूरती भी आ गए थोड़ी देर में संजय पटेल भी थे पर श्रोता नदारद थे.
मै दिन में तो रुक नहीं पाया पर जब शाम ढले पहुंचा तो पाया कि लीलाधर मंडलोई जी कविता में रुपवाद पर व्याख्यान दे रहे थे, उत्पल बैनर्जी संचालन कर रहे थे और बाद में नरेश जी ने गिरना कविता पढी और फिर ताल ठोकते हुए दुःख सबको मांजता है जैसे कविता को पोडियम को तबले की तरह ठोककर कविता में शिल्प और सुर की बात की. बाद में महुआ माजी ने, निर्मला भुराडिया ने भी अपनी बात रखी. एक मराठी लेखिका और शरद पगारे जब बोल रहे थे तो उस पांडाल में चंद लोग ही बचे थे. यह बेहद शर्मनाक था.
आबिद सूरती को पिछले हफ्ते ही लोगों ने स्टार प्लस पर अमिताभ के कार्यक्रम में सुना था इसलिए उनके पास भी भीड़ नजर नहीं आई सारा दिन वो यहाँ वहाँ घूमते नजर आये. मैंने बातचीत की तो वही पानी बचाने के टेप चालू थी, जो दर्जनों बार सुना चुके है जैसे अनुपम मिश्र एक स्लाईड शो सदियों से घिस रहे है. पर आबिद सूरती को देखकर कलागुरु स्व विष्णु चिंचालकर की याद आ गयी गुरूजी की काया भी ऐसी ही थी दुबली पतली और सहजपन लिए व्यक्तित्व.
खैर दिल्ली से आये कमल प्रिथी ने भीष्म साहनी की कहानी "अभी तो मै जवान हूँ" पर आधारित एकल अभिनय "चकला" प्रस्तुत किया जो बेहद खराब हो गया आवाज ठीक ना होने के कारण.और कमल की प्रस्तुति भी कमजोर थी. डेढ़ घंटे तक एक आदमी को अपरिपक्व अभिनय की स्थिति में झेल पाना मुश्किल है.
अंत में पीयूष मिश्रा ने गुलाल के गाने "हे री दुनिया" से अपने कार्यक्रम की शुरुवात की. पीयूष ने अपने बेहद लोकप्रिय गाने जैसे सन्नाटा, एक बगल में चाँद होगा, घर और हुस्ना गाये. मुश्किल से दो सौ युवा और इंदौर के बुद्धिजीवियों के बीच हुए इस कार्यक्रम में पीयूष के तुकबंदी वाले और बेहद सरल - सहज गीतों ने थोड़ा आश्वस्त किया परन्तु यह जरुर कहूंगा कि पीयूष एक रचनात्मक व्यक्ति है और बहुत भटके हुए है उन्होंने मंच पर कहा कि वे सूडो सेक्युलर नहीं है, शराब ने उन्हें बर्बाद किया था और दूसरा बर्बाद उन्हें कम्युनिस्टों ने किया. पर आज वे सच्चे सेक्युलर है. समझ यह आया कि चंद घटिया शब्दों, प्यार मोहब्बत, ब्रेक अप और गालियों का इस्तेमाल करके आप लोकप्रिय बन सकते है खासकरके युवा पीढी के बीच - जो ना साहित्य जानती है, ना भाषा बस एक दिल के करीब जुमलों की भाषा को समझती है और पीयूष जैसे लोग इन्हें यह बेचकर अपनी निजी इमेज बनाते है. इतना कहूंगा कि इस आदमी से असहमत हुआ जा सकता है विचार, कविता, गीत - संगीत और राजनीती के स्तर पर इसे खारिज नहीं किया जा सकता.
कार्यक्रम में लोगों के ना आने का कारण आमंत्रण पत्र का डर भी था, अब आज आयोजकों ने घोषणा की है कि कल चूँकि जावेद अख्तर और शबाना आजमी का कार्यक्रम है इसलिए लोग ना आये तो थू थू होगी इसलिए आमंत्रण का डंडा हटा दिया है. दूसरा नईदुनिया, भास्कर जैसे बड़े अखबारों ने इसे कवरेज ही नहीं दिया क्योकि ऊपर हैलो हिन्दुस्तान का नाम लिखा था.
#इंदौरसाहित्यउत्सव
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