इंदौर साहित्य उत्सव - अवलोकन II - समय दोपहर 1.55
इंदौर साहित्य उत्सव से आज कई लेखक, साहित्यकार बगैर अन्दर घुसे लौटें .यह दुखद ही नहीं बल्कि क्षोभ का विषय है.
इंदौर साहित्य उत्सव - दिन दूसरा - अवलोकन पहला- समय सुबह 10.15
बच्चे सबसे सॉफ्ट टार्गेट होते है............
आज इंदौर साहित्य उत्सव में सुबह पीयूष मिश्रा की कल ना आ पाई और लोकार्पित किताब "कुछ इश्क किया कुछ काम किया" का शायद लोकार्पण ही हुआ और लोग पहुंचे नहीं तो आयोजकों ने बच्चों को बुलाकर हाल आधा भर दिया और पीयूष मिश्रा पेलने लगे लम्बी लम्बी .
बहुत ही विचित्र आदमी है और क्या आदमी है पता नहीं. इंदौर में स्थानीय लोगों को नकार कर और आसपास देवास उजैन महू के लोगों को छोड़कर सीहोरे से पंकज सुबीर जैसे लोगों को कार्यक्रम के संचालन के लिए बुलाना आयोजको की समझ पर सवाल है. इंदौर में इतने लोग है, साहित्यकार है पर किसी का उपस्थित ना होना और घटिया किताबें वो भी रूपये लेकर छपने वाले अखबारों से हकाले गए लोगों का प्रकाशक बन जाने वाले लोगों का बोलबाला है.
यह उत्सव एक बर्बादी के सिवा कुछ नहीं, बड़े बड़े टेंट और बड़ी व्यवस्थाएं मुंह चिढा रही है और उपस्थिति के नाम पर कुछ नहीं. और निमंत्रित भी ऐसे है जो हर जगह से खारिज है और आज उनकी कोई बखत नहीं है.
मित्र सत्या पटेल ने अपनी वाल पर बड़े ही व्यंग्यात्मक स्वरुप में "पधारो सा" लिखा है जिसमे उन्होंने आयोजको की धज्जियां उडाई है और इसकी आयोजना में शामिल स्थानीय लोगों की समझ पर गजब के सवाल किया है.
बच्चों को जबरन मुर्गा बनाकर पीयूष मिश्रा जैसे आदमी के कार्यक्रम में बिठाने की सजा देना बेहद कष्टप्रद है. बच्चों को कम से माफ़ कर दें और उन्हें क्यों प्रेम - मोहब्बत और ब्रेक अप के किस्से सुनाकर दिमाग में मवाद भर रहे है लोग.
#इंदौरसाहित्यउत्सव
देशप्रेमी प्रधान सेवक..........मिलने और घूमने की जल्दी में झंडा उलटा है इसका ध्यान नहीं है.......
असल में संघ की प्राथमिकता राष्ट्रध्वज नहीं है ना इसलिए रंगों का क्रम ध्यान नहीं रहता बेचारे को........
और फिर इस देश के बाद अगले देश की योजना दिमाग में रहती है, हर बार हडबडाहट रहती है तो इन छोटी मोटी बातों पर कौन ध्यान दें. और फिर यह गलती तो साले हरामखोर अधिकारियों की है जो बदनाम करने पर लगे है इनकी छबि.......
जय हो जय हो......मै लाख ना चाहूँ कि बुरा ना बोलूँ, बुरा ना सोचूँ, बुरा ना कहूं, पर क्या करूँ रोज रोज ऐसी हरकतें बन्दा करता है कि भारतीय होने के नाते यह ध्यान आ ही जाता है और मुझे लिखना ही पड़ता है - सब कुछ सच में, खरी खरी..
मोदी फिर बाहर
ये देशप्रेमी है या पर्यटन के लिए प्रधान सेवक बना है
उफ़ बेशर्मी की हद है।
सन 1990 को विश्व साक्षरता वर्ष घोषित करने वालों को भारत में आकर देखना चाहिए कि यहां क्या असर हुआ सारे लोग फर्जी डिग्री लेकर पूरी बेशर्मी से भारत जैसे देश पर राज कर रहे है। जो देश नालन्दा से लेकर वेदों और ऋचाओं का जनक रहा वहाँ आज ठेठ अनपढ़ और XII भी पास नही लोग 80 प्रतिशत साक्षर आबादी को हांक रहे है और दुनियाभर में चिल्ला रहे है।
धिककार और बेशर्म नेतृत्व केंद्र से लेकर वार्ड और पंचायतों तक।
इन्हें हकालो पढ़े लिखे लोगों आज इन्होंने छात्रवृत्ति बन्द की कल ये सांस लेना भी कर देंगे। जाहिल कही के !!!
बिहार में शपथ में नौ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति क्या दर्शाती है कि अब सारे लोग लामबंद हो चले है और केंद्र के विरुद्ध बिगुल फूंक रहे है। आने वाले पांच चुनाव 2019 का भविष्य तय करेंगे। या ये सब अनपढ़ गंवार जाहिल सत्ता को समर्थन देने गए थे। स्मृति ईरानी से लेकर बिहार उप्र मप्र और देश के नेतृत्व से लेकर सरपंच तक सब अशिक्षित है। बन्द कर दो विवि और स्कूल कालेज।
शर्म आती है कि हम लोग पढ़े लिखे है इर् स्मृति जैसे लोग और बिहार में पिल्लै हम पर राज करते है।
आज देवास को सामंतवाद से मुक्ति चाहिए यदि आज यह मुक्ति नहीं मिली तो देवास पुनः जातिवाद, सामंतवाद और काल के अंधेरी गुहा में समा जाएगा...........
देवास में विकल्प देखिये और सही व्यक्ति का चुनाव कीजिये....
भारत में विकास की रफ़्तार तेज है एक ओर दुनियाभर में हम भारत का डंका पीट रहे है, देश को विकास के सोपानों पर ले जा रहे है, देश की समस्याओं को हल करने की पुरजोर कोशिशें जारी है 125 करोड़ जनसंख्या को लेकर हमारी चिंताएं है पर दूसरी ओर हमारी व्यवस्था वही की वही है बल्कि हम सदियों पहले चले गए है. जिस देश में शिक्षा का स्तर बढ़ा है, आम लोग उच्च शिक्षित हो रहे है, वही हमारे नीतिकार, नेता और निर्णय करने वाले दिन पर दिन कम पढ़े लिखे और एकदम मूर्ख गंवार जैसे आ रहे है. यह प्रजातंत्र के घातक है और मै देख रहा हूँ कि एक अन्दर ही अन्दर क्रान्ति या व्यवस्था के विरुद्ध पढ़े लिखे लोगों का विरोधी स्वर बिगुल की भाँती बजने वाला है. केंद्र से लेकर राज्यों और जिले से लेकर पंचायतों में जो अनपढ़, मूर्ख गंवार और जाहिल प्रतिनिधि राज करने की मंशा से आ गए है वह सब कुछ बेहद अपमानजनक और शर्मनाक है.
यह शिक्षा पर निरक्षरता की विजय है और शायद इसी दिन को देखने के लिए हमने मेहनत की, डिग्रियां हासिल की, बड़े बड़े शोध किये, बड़े बड़े संस्थान बनाए ताकि कम पढ़े लिखे और अपरिपक्व लोग केंद्र से लेकर स्थानीय वार्ड में हम पर शासन कर सकें और हम पढ़े लिखे लोगों को हांक सके.
लगता है कि ना शिक्षा का महत्त्व है - ना ज्ञान का, बस एक मूर्खता की जिन्दगी जीना है और लठैत किस्म की जागरूकता चाहिए जो सारे काम प्रशासन से लेकर राजनीती में करवा पायें.
हम मुश्किल दौर में फंसते जा रहे है मित्तरो................
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