मप्र में आजकल आत्माएं ज्यादा है, पहले भी शराब की दुकानों के समय को लेकर आत्मा जगी थी, और अब फिर छः माह बाद फिर आत्मा की आवाज जगी है. रात भर जागना कितना मुश्किल है यह तो भुक्तभोगी ही समझ सकता है...
मप्र में अंततः हर कहानी, मुद्दे और खेल का पटापेक्ष हो गया, सब भूल जाईये और फिर से चैन की बंसी बजाईये. अगले पांच साल तक सब ख़त्म और बाकी तो सब कुशल मंगल ही है........दिल्ली जिसको जाना था वो दिल्ली चले गए, जिसको निपटाना था, उसको निपटा दिया, जिसको जो बकना था बक लिया, पार्टी से जिसको दिक्कत थी वह स्पष्ट हो गयी, अब मामला सी बी आई और फाईलों के बीच है, जांच और तथ्यों के बीच का खेल है, यात्री भत्ता और होटलों के बिलों का खेल है, सर्किट हाउस और मुर्गें कबाबों की बारी है, शराब और हलफनामों का दौर है, नए - नए शिगुफों और जानकारियों का दौर है. बस सब ठीक है, अब गद्दी भी सुरक्षित है, साम्राज्य सुरक्षित और शिकार भी सुरक्षित.
यकीन मानिए अब कोई नहीं मरेगा. आमीन
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