देश के हालात कितने खतरनाक हो चले है तीन महत्वपूर्ण राज्यों के मुख्यमंत्री विभिन्न जघन्य आरोपों में फंसे है, अर्थ तंत्र बिगड़ गया है, स्टॉक एक्सचेंज गिरा पड़ा है, शिक्षा से लेकर हर तरफ भ्रष्टाचार का भयानक बोलबाला है, प्रशासन और न्यायपालिका तक सब गडमड्ड हो गया है, मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे है, मीडिया के लोगों को मारा जा रहा है, कोई भी मुख्यमंत्री सीबीआई की जांच के दायरे में आने को तैयार नहीं, देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं है, आपदाएं सर चढ़कर बोल रही है और ऐसे में माननीयप्रधानमंत्री श्री मोदी जी का आज से पांच देशों की यात्राओं पर जाना, साथ अपने विश्वसनीय जेटली को भी ले जाना क्या इंगित करता है ? देश में जो मंत्री बचे है वे एक डेढ़ साल में कोई निर्णायक भूमिका नहीं निभा सके है, हम सब जानते है, वे सिर्फ यस सर की भूमिका में है !!! क्या अमित जी शाह इस संकटकाल में संकटमोचन बनेनेगे ?
या प्रधानमंत्री जी सब्सिडी, सेल्फी, आदि के बाद कोई नया शिगूफा छोड़ेंगे विदेश से? या उनकी नजर में ये मुद्दे कोई मुद्दे नहीं है विदेश यात्राओं की तुलना में ???
देश के हालात सचमुच आपातकाल जैसे हो रहे है, क्या इसी आपातकाल की बात माननीय आडवानी जी कर रहे थे?
सबसे बड़े पत्रकार के स्वागत के कारण बने कारवे से एक नवजात की मौत। अब कहिये
क्या कहा था हाई और सुप्रीम कोर्ट ने पर प्रशासन के किसी गुर्गे में हिम्मत की रैली, जुलूस और बारातों को रोक सकें, "व्यापम का अंजाम देख रहे हो ठाकुर" के अंदाज में धमकी मिल जायेगी।
और देश से सबसे बड़े अखबार भास्कर की आज की खबर है।
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हुजुर आपसे बड़ा पत्रकार सच में कोई नहीं है क्योकि जब रजत शर्मा अदालत चलाकर बिक गए, या दीपक चौरसिया भांड हो गए तो बाकी लोगों की और अक्षय कुमार जैसों की क्या बिसात.............? और फिर इंदौर के लोगों को आप और आपकी ताकत मालूम है ना.........प्रदेश के कद्दावर लोग इंदौर आने में घबराते है कि कही ये अंतिम यात्रा ना हो जाएँ..........बहुत पुराने ठोस अनुभव है ना सबके.
सही कहा आपने, और यह बात आपकी पार्टी के लोग नीचे से ऊपर तक मानते है क्योकि पन्त प्रधान भी तो इसी सिद्धांत पर काम कर रहे है और जानकारी के लिए बाल ठाकरे से लेकर पन्त प्रधान ने भी मीडिया के अदने से कर्मचारी के रूप में काम किया ही है. जाहिर आपसे बड़ा पत्रकार कौन हो सकता है, बस गलती है तो ससुरे संविधान की, जो साला अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता देता है वरना बचता कोई मैदान में ......
और माफी मांगना तो आपका पुराना शगल है........हम एक उम्र से वाकिफ है.
इतना बड़ा सच और ये पूरी दुनिया कह रही है फिर भी आप लोगों को लगता है कि मैं शिवराज जी को लेकर पूर्वाग्रह पाल रहा हूँ. माफ़ करना मेरी किसी से दुश्मनी नही है . भाई Ravish Kumar का यह खत काफी है .
बाकी अंध भक्तों का पता नही, नैतिकता और चरित्र का पाठ पढाने वाले, अटलजी और आडवाणी के वंशजों से ये उम्मीदें नही थी. रविश ने सही लिखा है कि सब गोलमाल है, इनका धर्म सिर्फ एक है किसी भी प्रकार से सत्ता बनी रहें बस. और नाटकों में तो शेक्सपियर को शर्मसार कर दे ये लोग , कितने ही कालिगुला इनके चौखट पर पानी भरते है और कालिदास सेवा में पंखे झलते है.
पत्रकार अक्षय सिंह की मौत पर शिवराज सिंह के नाम रवीश कुमार की खुली चिट्ठी
माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी,
"वो जो गहरे नीले कुर्ते में है न, हां! वही जो अभी बेसुध सी पड़ी है, ये..ये जो अब उठकर दहाड़ मार रही है। संभाल नहीं पा रही है खुद को। ये जो उठकर फिर गिर गई है।"
आग की उठती लपटों के कारण उसे देख तो नहीं पाया पर कान के पास कुछ आवाज़ें पत्रकार अक्षय सिंह के बारे में बताने लगीं। मैं उसकी चिता के करीब खड़े लोगों की तरफ देख रहा था। वो कौन लड़की है जिसके बारे में आप बता रहे हैं? "सर अब क्या कहें, ये अक्षय की मंगेतर है।" सुनते ही उसके चेहरे पर ज़िंदा अक्षय को खोजने लगा, तभी उसे संभालने एक और लड़की आ गई। "सर ये अक्षय की बहन हैं। चश्में में जो हैं।"
श्मशान में सरगोशियां ही ज़ुबान होती हैं। ख़ामोशी की लाचारी समझ सकता हूं। सीढ़ी पर दो लड़कियों को बिलखते देख उस तरफ नज़र जा ही नहीं पा रही थी जहां अक्षय का पार्थिव शरीर पंचतत्वों में बदल रहा था। वो मिट्टी हवा और अग्नि से एकाकार हो रहा था। पास में उसकी मंगेतर और बहन अपनी चीख़ के सहारे उस तक पहुंचने की आख़िरी कोशिश कर रही थीं। पिताजी लक़वे से लाचार हैं इसलिए वहां दिखे नहीं या किसी ने दिखाया नहीं।
माननीय शिवराज सिंह, मैं यह सब शब्दों की बाज़ीगरी के लिए नहीं लिख रहा हूं। मुझे पता है कि ऐसे मामलों की संवेदनाएं वक़्ती होती हैं। कल किसी और घटना की आड़ में कहीं खो जाएंगी। हम सब निगम बोध घाट से लौट जाएंगे। सोचा आप आ तो नहीं सके इसलिए लिख रहा हूं ताकि आप पढ़ सकें कि ऐसी मौतों के पीछे की बेबसी कैसी होती है। चार लड़कियों ने आई.ए.एस. में टॉप किया तो आप लोग कैसे खिल खिलकर बधाई दे रहे थे। यहां सीढ़ी पर बिलखती-लुढ़कती लड़कियां ही एक दूसरे को सहारा दे रही थीं।
अपने जीवन में नेताओं को करीब से देखते-देखते समझ गया हूं। आप सभी को इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं सिर्फ आपकी बात नहीं कर रहा। आप सब में आप सब शामिल हैं। आपकी संवेदना उतनी ही खोखली हैं जितना सत्ता का मोह सच्चा है। सत्ता ख़ून भी पी सकती है और अपने लिए ख़ून बहा सकती है। सत्ता के लिए ही तो है ये सब।
"अक्षय बहुत स्मार्ट था। बहुत ही फ़िट बॉडी थी। एक अतिरिक्त चर्बी नहीं थी। जिम जाता था। सर सिगरेट पान कुछ नहीं लेता था।"
फिर किसी की आवाज़ आई। मैं अक्षय से कभी नहीं मिला। अपनी बिरादरी के लोगों के साथ कम उठा बैठा हूं। बहुत कम पत्रकारों को जानता हूं। बहुत से संपादकों को नज़दीक से भी नहीं देखा है। मुझे थोड़ा अफ़सोस है कि ऐसे पत्रकारों को ठीक से नहीं जान पाया। इसलिए माननीय शिवराज सिंह, श्मशान में अक्षय के बारे में जो सुना वो लिख रहा हूं। क्योंकि आप आ नहीं सके, लिहाज़ा जानने का मौक़ा भी नहीं मिला। मुझे आपकी क्या अपनी भी संवेदना दिखावटी लगती है। फिर भी लिख रहा हूं ताकि एक बार फिर से पता चल जाने में कोई हर्ज नहीं है।
"अक्षय बहुत सावधान रहता था। बहुत स्टिंग किए। एक से एक खोजी पत्रकारिता की। कभी अपना नाम और चेहरा नहीं दिखाता था। सर उसने शादी भी नहीं की। 36 साल का हो गया था। कहता था कि इतने मुक़दमे चल रहे हैं उस पर, शादी कर ले और पता नहीं क्या हो जाए। उससे थोड़ा परेशान रहता था। पिताजी को लकवा मार गया है। बहन की शादी भी करनी है।"
इस बीच बहुत से लोग अपनी संवेदना प्रकट करने के लिए आ जा रहे थे। सब नि:शब्द! एक पत्रकार समाज के लिए सिस्टम से कितना टकराता है। केस मुक़दमे झेलता है। उसकी निष्ठा कितनी होगी कि वो इस दौर में अपना चेहरा सामने नहीं आने देना चाहता होगा। जबकि उसके पेशे के हर नामचीन का ट्विटर हैंडल देख लीजिए। वे दिन में पचास ट्वीट यही करते हैं कि शिवराज ने मुझसे बात करते हुए ये कहा, नीतीश ने मुझसे एक्सक्लूसिव ये कहा। जो काम करे और नाम न बनाए ऐसे किसी पत्रकार की प्रतिबद्धता को ट्विटर पर लुंगी-तौलिया तक पसारने वाले पत्रकार समझ भी नहीं सकते। आप लोग तो हर मुलाक़ात की तस्वीर साझा करते ही हैं, आज कल तो खोज खोज कर जन्मदिन मनाते हैं जैसे इसी काम के लिए चुनाव होता है।
मैं अक्षय सिंह के बारे में बिल्कुल नहीं जानता था। अच्छा या बुरा कुछ भी नहीं। अच्छा बुरा किसमें नहीं होता। आप ही के मंत्री हैं बाबू लाल गौड़। उन्होंने व्यापमं में हो रही मौतों के बारे में बयान दिया था कि जो दुनिया में आएगा वो जाएगा। मुझे पता नहीं आप ऐसे मंत्री को कैबिनेट में आने कैसे देते हैं, कैसे झेलते हैं। ख़ैर, मुझे पता ही कितना है। जो भी हो व्यापमं घोटाले की तमाम मौतों पर आपकी सफाई बिल्कुल विश्वसनीय नहीं लगती है। आपका भरोसा खोखला लगता है।
"सर वो तो इतना अलर्ट रहने वाला लड़का है कि पूछिए मत। अनजान नंबर का फोन कभी नहीं उठा पाता था। घर में सख्त हिदायत दे रखी थी कि कोई भी आ जाए उसकी ग़ैर मौजूदगी में दरवाज़ा मत खोलना। हम लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ी। पड़ोसी की मदद लेनी पड़ी। पहचान साबित करनी पड़ी कि हम उसके सहयोगी हैं तब जाकर दरवाज़ा खुला।"
फिर कोई आवाज़ कानों तक सरक आई थी। अक्षय के मां-बाप को क्या पता कि इस बार अक्षय के पीछे उनके लिए कोई ख़तरा बनकर नहीं आया है। बल्कि अक्षय के अब कभी नहीं आने की सूचना आई है। अब कोई ख़तरा उनके दरवाज़े दस्तक नहीं देगा।
माननीय शिवराज सिंह, आप चाहें तो कह सकते हैं कि मैंने तब क्यों नहीं लिखा जब वो हुआ था। आप दूसरे राज्यों और दलों की सरकारों की गिनती गिना सकते हैं। मेरी चुप्पी का हिसाब गिनाने के लिए ट्विटर पर घोड़े दौड़ा सकते हैं। आप लोगों की ये तरकीब पुरानी हो गई है। व्यापमं घोटाले का सच कभी सामने नहीं आएगा। ये आप बेहतर जानते होंगे। ये हम भी जानते हैं।
मैं ये नहीं कह रहा कि आप दोषी हैं। अक्षय सिंह की मौत के लिए कौन दोषी है ये मैं कैसे बता सकता हूं। आपकी जांच से कभी कुछ पता चलता है जो मैं इंतज़ार करूं। आपके राज्य में ज़हरीली गैस से लोग मर गए, क्या पता नहीं था लेकिन क्या पता चला। आपकी क्या, कभी किसी की जांच से पता चला है। आपकी खुशी के लिए अभी कह देता हूं कि क्या कभी कांग्रेस, जेडीयू, अकाली, आरजेडी की सरकारों में पता चला है? पता नहीं चलने का यह सिलसिला किसे नहीं पता है।
जो डाक्टर या इंजिनियर शिवराज सिंह जी का समर्थन कर रहे है यकीन मानिए वो व्यापम की पैदाइश है.
सावधान इंडिया.
यहाँ सबको सब पता है बस बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे या राजा नंगा है कौन कहें ?
हमने जांच की क्या मांग की, आपने तो सबको मारना शुरू कर दिया सरकार !!!
लोगों ने सच क्या बोला, आप तो मारना शुरू कर दिए सरकार !!!
स्टिंग ऑपरेशन और खोज खबर की तलाश में हम दोनों ने कई दौरे किये.हफ्ते-हफ्ते ..दस-दस दिन के लिए ...ज्यादातर दिल्ली से बहुत दूर. कभी बनारस तो कभी पीलीभीत. कई रातें होटलों के एक कमरे में बिताई . दोनों शाकाहारी और टी टोटलर रहे.. तो अक्सर नींद के इंतज़ार में वक्त किसी न किसी किस्से से शुरू होता था पर बातचीत एक टॉपिक पर ही खत्म होती ...और फिर हम दोनों सो जाते.
जरा गेस करिए दो खोजी पत्रकारों के बीच संवाद का सबसे आम टॉपिक क्या हो सकता है ?
शायद आज के दौर में विश्वास न हो पर हम दोनों के बीच सबसे ज्यादा बातचीत "माँ " को लेकर होती थी. दरअसल ख़बरों और सूत्रों के अलावा अक्षय के फोन पर उनकी छोटी बहन और मम्मी ही हमेशा दुसरे सिरे पर रहती थीं. और बात खत्म होने के बात अक्षय अपनी माँ का टॉपिक छेड़ देता.
मुझे काफी देर बाद मालूम हुआ की अक्षय के परिवार में सिर्फ तीन ही लोग थे. माँ, छोटी बहन और अक्षय. और वो इस परिवार का जीविका चलाने वाला एकलौता सदस्य था.
आज माँ का अस्पताल में टेस्ट है. आज माँ को चश्मा दिलाना है. आज माँ की तबियत ढीली है. आज माँ के लिए गिफ्ट लेकर जाना है . सर आपके आशीर्वाद से माँ को वैष्णोदेवी ले जा रहा हूँ. सर आज माँ ने सब्जी बनाकर दी है.प्लीज़ टेस्ट करिए. सर झूठ नही बोल रहा माँ के हाथों में जादू है. कभी उरद की दाल खिलाता हूँ आपको..
मेरी माँ नही थी इसलिए ये किस्से, ये बातें, मेरे दिल को बड़ा सुकून देती थी ...और धीरे धीरे मे खुद माँ के बारे में ही पूछने लगा. एक वजह शायद ये थी कि ये उसका पसंदीदा टॉपिक भी था.
हर मंगलवार को अक्षय को मुझे रात 8 बजे तक फारिग करना होता था.उस दिन अक्षय का व्रत होता था और उसे घर जाकर माँ के हाथों से व्रत तोडना होता था. अगर मे ख़बरों में फंसा हूँ तो वो शाम को ही हिंट दे देता ..सर आज ट्यूसडे है.
आज दोपहर जब आजतक से शम्स ताहिर खान ने अक्षय के बारे में खबर दी तो कुछ देर मे रियेक्ट ही नही कर सका. शम्स मुझसे अक्षय के घर का पता पूछना चाह रहे थे. शायद वो ये भी चाह रहे थे कि मे उनकी माँ को खबर भी दूं.
मे पीछे हट गया . मुझे लगा दुनिया में मेरे लिए इससे बड़ा पाप कोई और नही हो सकता कि मे अक्षय की मौत की खबर अक्षय की माँ को सुनाऊँ. जब लोग पहुँचने लगे तो मैंने हिम्मत की.
देर शाम मैंने अक्षय के घर की सीडियां पहली बार चढ़ी. उसे आपार्टमेंट तक छोड़ने तो मे कई बार गया था पर घर की सीढ़ियाँ कभी नही चढ़ी थीं. मे अक्षय के घर आज पहली बार पहुंचा... सीढ़ी की हर पायदान एक पहाड़ सा था. तीसरे फ्लोर के फ्लैट का जब दरवाज़ा खुला तो बहन मुझे पहचान गयी और दूसरी तरफ माँ बैठी थी. मै माँ से बिना आँख मिलाये ..माँ को बिना देखे दरवाज़े से वापस हो लिया.
ये माँ अब मेरी माँ जैसी ही है ...
फर्क सिर्फ इतना है कि मेरी माँ घर की दीवार के फोटो फ्रेम में जड़ी है ...और ये माँ जीते जी आज जड़ चुकी थी.
दीवार पर चस्पा और पलंग पर बैठी इन दोनों माओं में अब कोई फर्क नही है.
जरा गेस करिए दो खोजी पत्रकारों के बीच संवाद का सबसे आम टॉपिक क्या हो सकता है ?
शायद आज के दौर में विश्वास न हो पर हम दोनों के बीच सबसे ज्यादा बातचीत "माँ " को लेकर होती थी. दरअसल ख़बरों और सूत्रों के अलावा अक्षय के फोन पर उनकी छोटी बहन और मम्मी ही हमेशा दुसरे सिरे पर रहती थीं. और बात खत्म होने के बात अक्षय अपनी माँ का टॉपिक छेड़ देता.
मुझे काफी देर बाद मालूम हुआ की अक्षय के परिवार में सिर्फ तीन ही लोग थे. माँ, छोटी बहन और अक्षय. और वो इस परिवार का जीविका चलाने वाला एकलौता सदस्य था.
आज माँ का अस्पताल में टेस्ट है. आज माँ को चश्मा दिलाना है. आज माँ की तबियत ढीली है. आज माँ के लिए गिफ्ट लेकर जाना है . सर आपके आशीर्वाद से माँ को वैष्णोदेवी ले जा रहा हूँ. सर आज माँ ने सब्जी बनाकर दी है.प्लीज़ टेस्ट करिए. सर झूठ नही बोल रहा माँ के हाथों में जादू है. कभी उरद की दाल खिलाता हूँ आपको..
मेरी माँ नही थी इसलिए ये किस्से, ये बातें, मेरे दिल को बड़ा सुकून देती थी ...और धीरे धीरे मे खुद माँ के बारे में ही पूछने लगा. एक वजह शायद ये थी कि ये उसका पसंदीदा टॉपिक भी था.
हर मंगलवार को अक्षय को मुझे रात 8 बजे तक फारिग करना होता था.उस दिन अक्षय का व्रत होता था और उसे घर जाकर माँ के हाथों से व्रत तोडना होता था. अगर मे ख़बरों में फंसा हूँ तो वो शाम को ही हिंट दे देता ..सर आज ट्यूसडे है.
आज दोपहर जब आजतक से शम्स ताहिर खान ने अक्षय के बारे में खबर दी तो कुछ देर मे रियेक्ट ही नही कर सका. शम्स मुझसे अक्षय के घर का पता पूछना चाह रहे थे. शायद वो ये भी चाह रहे थे कि मे उनकी माँ को खबर भी दूं.
मे पीछे हट गया . मुझे लगा दुनिया में मेरे लिए इससे बड़ा पाप कोई और नही हो सकता कि मे अक्षय की मौत की खबर अक्षय की माँ को सुनाऊँ. जब लोग पहुँचने लगे तो मैंने हिम्मत की.
देर शाम मैंने अक्षय के घर की सीडियां पहली बार चढ़ी. उसे आपार्टमेंट तक छोड़ने तो मे कई बार गया था पर घर की सीढ़ियाँ कभी नही चढ़ी थीं. मे अक्षय के घर आज पहली बार पहुंचा... सीढ़ी की हर पायदान एक पहाड़ सा था. तीसरे फ्लोर के फ्लैट का जब दरवाज़ा खुला तो बहन मुझे पहचान गयी और दूसरी तरफ माँ बैठी थी. मै माँ से बिना आँख मिलाये ..माँ को बिना देखे दरवाज़े से वापस हो लिया.
ये माँ अब मेरी माँ जैसी ही है ...
फर्क सिर्फ इतना है कि मेरी माँ घर की दीवार के फोटो फ्रेम में जड़ी है ...और ये माँ जीते जी आज जड़ चुकी थी.
दीवार पर चस्पा और पलंग पर बैठी इन दोनों माओं में अब कोई फर्क नही है.
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दो बातें कहनी है
पहली कि अगर कल दिल्ली में है तो कोशिश करियेगा 1 बजे दोपहर निगमबोध घाट पहुँचने के लिए जहाँ अक्षय के अंतिम दर्शन के लिए आप आ सकते हैं.
और हाँ अक्षय के घर को अब कौन चलाएगा ? इस विषय पर कोई निर्णय लेना होगा
पहली कि अगर कल दिल्ली में है तो कोशिश करियेगा 1 बजे दोपहर निगमबोध घाट पहुँचने के लिए जहाँ अक्षय के अंतिम दर्शन के लिए आप आ सकते हैं.
और हाँ अक्षय के घर को अब कौन चलाएगा ? इस विषय पर कोई निर्णय लेना होगा
भाजपा से जुड़े कई वरिष्ठ मित्रो और मीडिया के साथियों को लगता है कि मप्र में व्यापम घोटाले हो रही सभी मौतों के लिए शिवराज नही कोई और भी समान रूप से जिम्मेदार है और इस बहाने आतंरिक रूप से शिवराज को बदनाम करके स्वयं मुख्यमंत्री बनना चाहता है। ताजा हुई दो - तीन मौतों - नरेंद्र तोमर , ग्वालियर में राजेन्द्र और आजतक के अक्षय कुमार की मौत की तरफ इशारा था। साथ ही राज्यपाल से लेकर केंद्र तक के नेता, ब्यूरोक्रेट्स और बहुत छोटे स्तर के कई कर्मचारी, जेल में बंद लोगों से लेकर मंत्रियों के निजी स्टाफ और परिजनों के भी इन मामलों में शामिल होने की संभावना बताई गयी।
बातचीत के आधार पर ये निष्कर्ष निकले, मुझे नही पता , पर मुद्दे में दम तो है।
प्रदेश के चार पांच बड़े शहरों और पार्टी में प्रदेश के बाहर के भी कई लोग है जो प्रदेश की बागडोर सम्हालने को बेताब है। व्यापम में हो रही सिर्फ मौतें ही नही वरन स्थान, समय और अवसर भी महत्वपूर्ण है।
भतृहरि का कथन है कि सम्पूर्ण चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ है ,सर के बाल सफ़ेद हो गए है , शरीर के अंग शिथिल हो गए है किन्तु कितना आश्चर्य है कि तृष्णा पल पल बढ़ते ही जा रही है।
-बोध मञ्जरी
श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ ट्रस्ट
सरसावा, जिला सहारनपुर उप्र
श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ ट्रस्ट
सरसावा, जिला सहारनपुर उप्र
भाजपा से जुड़े कई वरिष्ठ मित्रो और मीडिया के साथियों को लगता है कि मप्र में व्यापम घोटाले हो रही सभी मौतों के लिए शिवराज नही कोई और भी समान रूप से जिम्मेदार है और इस बहाने आतंरिक रूप से शिवराज को बदनाम करके स्वयं मुख्यमंत्री बनना चाहता है। ताजा हुई दो - तीन मौतों - नरेंद्र तोमर , ग्वालियर में राजेन्द्र और आजतक के अक्षय कुमार की मौत की तरफ इशारा था। साथ ही राज्यपाल से लेकर केंद्र तक के नेता, ब्यूरोक्रेट्स और बहुत छोटे स्तर के कई कर्मचारी, जेल में बंद लोगों से लेकर मंत्रियों के निजी स्टाफ और परिजनों के भी इन मामलों में शामिल होने की संभावना बताई गयी।
बातचीत के आधार पर ये निष्कर्ष निकले, मुझे नही पता , पर मुद्दे में दम तो है।
प्रदेश के चार पांच बड़े शहरों और पार्टी में प्रदेश के बाहर के भी कई लोग है जो प्रदेश की बागडोर सम्हालने को बेताब है। व्यापम में हो रही सिर्फ मौतें ही नही वरन स्थान, समय और अवसर भी महत्वपूर्ण है।
व्यापम की कवरेज के लिये दिल्ली से आये आजतक के संवाददाता अक्षय सिंह का झाबुआ में दुखद निधन।
समझ नहीं आता कि SIT एक ऐसे माहौल में कैसे जांच कर सकती है जब प्रदेश का मुखिया और राज्यपाल इस काण्ड में शामिल हो......जिसकी बार बार आशंका जताई जा रही है, क्या SIT के लोग दूसरे ग्रह से आये है जो बगैर डर के काम करेंगे....अब सही समय है जब प्रदेश की मीडिया को एकजुट होकर इस काण्ड की जांच की मांग सीबीआई से करवाना चाहिए . अभी राहुल कँवल का बाईट आजतक पर देखा तो बेहद अफसोस हुआ.
यानी अब मप्र में व्यापम के सबुत ही नहीं मिटायें जायेंगे, बल्कि कोई जानकारी लेने आयेगा तो उसे भी एक शांत मौत दे दी जायेगी, कितना शर्मनाक है, जेल में मौत और जेल के बाहर भी आरोपी को भी मौत और पत्रकार को भी मौत !!!
क्या राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, राष्ट्रपति या सुप्रीम कोर्ट स्वत संज्ञान लेकर इस पुरे प्रकरण की जांच सी बी आई को सौंपेगा? या हमारी मीडिया के साथी इंतज़ार कर रहे है. क्यों ना मप्र सरकार के सभी कार्यक्रमों का विरोध करके तब तक बहिष्कार करें जब तक जांच सीबीआई को नही दी जाती या प्रदेश के मुखिया राज्यपाल इस्तीफा नहीं देते. मुझे नहीं लगता जब तक शिवराज सिंह जी और राज्यपाल पदों पर आसीन है तब तक SIT निष्पक्ष रूप से जांच कर पायेगी.
नरेंद्र मोदी तो भ्रष्ट लोगों को और अपने मुख्यमंत्रियों को बचाने में बिजी है बेचारे, शिवराज, फिर वसुंधरा और अब रमण सिंह आ गए है छत्तीस हजार करोड़ रुपयों के गबन में !!! और वे मन मोहन से ज्यादा मजबूर है और चुप्पी तो अब उनकी भी नियति बन गयी है.
लो अब शिवराज सुषमा स्मृति निहालचंद्र पंकजा वसुंधरा के बाद रमन सिंह पर 36 हजार करोड़ के चावल घोटाले में नाम (आजतक की न्यूज़)
जय भक्तों की। अब बोलो मनमोहन चुप भले थे या ये फेकू बड़बोले !!!
"औरत का शरीर उसके लिए मंदिर होता है"
माननीय सुप्रीम कोर्ट.
लीजिये महिलावादियों अब शुचिता और अस्मिता की बात करो. सुप्रीम कोर्ट अगर इस तरह के फतवे देगा तो महिला बराबरी और समता का क्या होगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोर्ट ने भी एक विशेष किस्म की भाषा बोलना शुरू कर दी है पिछले कुछ बड़े फैसले देखें तो सुप्रीम कोर्ट कुछ ज्यादा ही धार्मिक और फ़तवाधारी हो गया है ।
बड़ा मुश्किल समय है मित्रों , अब लोग कहाँ जाए और क्या करें !!!
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