“जब होवेगी उम्र पुरी, तब टूटेगी हुकुम हुजूरी, यम के दूत बड़े मरदूद, यम से पडा झमेला” (पंडित स्व कुमार गन्धर्व की पत्नी पदमश्री वसुंधरा ताई का निधन )
“भानुकुल” आज उदास
है ऐसा उदास वह 12 जनवरी 1992 को हुआ था जब भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूर्धन्य
गायक पंडित कुमार गन्धर्व ने अंतिम सांस ली थी, दुर्भाग्य से आज फिर माताजी के
रास्ते वाले सारे पेड़ ग़मगीन है और भानुकुल में एक सन्नाटा पसरा है. भानुकुल देवास
की टेकडी के नीचे बसा एक बँगला है जहां भारतीय संगीत के दो महान लोग आकर बसे और इस
शहर के माध्यम से देश विदेश में भारतीय संगीत और खासकरके निर्गुणी भजनों की अनूठी
परम्परा को फैलाया. इसी बंगले में पंडित कुमार गन्धर्व ने संगीत रचा, नए राग
रागिनियों की रचना की, उनके सुयोग्य पुत्र मुकुल शिवपुत्र ने संगीत की शिक्षा ली,
पंडित की पहली पत्नी भनुमति ताई के निधन के बाद उनकी सहयात्री बनी ग्वालियर घराने
की प्रसिद्द गायिका विदुषी वसुंधरा ताई जिनके साथ पंडित जी का दूसरा विवाह अप्रैल सन
1962 में हुआ. कुमार जी को यक्ष्मा की शिकायत थी और मालवे के हवा पानी ने उन्हें
एक नई जिन्दगी दी, एक फेफड़ा खोने के बाद भी उनका संगीत में योगदान किसी से छुपा
नहीं है. कुमार जी के होने में और यश के
शिखर पर पहुँचाने में वसुंधरा ताई के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता, जिन्होंने
कुमार जी के साथ जीवन में ही नहीं वरन हर मंच पर उनका हर आरोह अवरोह में साथ दिया
और हर तान के साथ अपना जीवन लगा दिया. वसुंधरा ताई जैसी विदुषी महिला आज के समय
में दुर्लभ है.
पंडित देवधर की
सुयोग्य शिष्या और बेटी वसुंधरा ताई ग्वालियर से देवास आने के बाद मालवे में ऐसी
रच बस गयी कि यहाँ के लोग उनके घर के लोग हो गए, वे देवास, इंदौर और उज्जैन के हर
घर में पहचानी जाने लगी, देवास के हर भाषा और मजहब के लोगों से उनका वास्ता पड़ा और
उन्होंने बहुत सहज होकर सबको अपना लिया. ना मात्र अपने गायन से बल्कि उनकी सहजता, अपनत्व
और वात्सल्य भरी मेजबानी के व्यवहार से हर शख्स उनका कायल था. स्व कुमार जी जब तक
थे या आज भी देश-विदेश के बड़े से बड़े गायक - वादक, साहित्यकार, अधिकारी, कलाकार,
पत्रकार जब भी इंदौर, देवास या उज्जैंन से गुजरे तो एक बार वे जरुर कुमार जी के
भानुकुल में आये और जी भरकर कुमार जी से बाते की और ताई का आतिथ्य पाया जो उनकी
यात्रा को महत्वपूर्ण बना गया.
कलागुरु विष्णु
चिंचालकर, नाट्यकर्मी बाबा डिके, प्रसिद्ध पत्रकार और सम्पादक राहुल बारपुते और
स्व कुमार गन्धर्व कला क्षेत्र की ये चौकड़ी मालवा ही नहीं वरन देश विदेश में
प्रसिद्द थी और जब ये मिल जाते थे तो बहुत लम्बी चर्चाएँ, और बहस होती थी. अशोक
वाजपेयी तब मप्र शासन में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी थे और भारत भवन बनाने की
तैयारी में थे. अक्सर देवास उनका आना होता था और ताई के स्नेह और आतिथ्य के लिए वे
लालायित रहते थे क्योकि उन्हें ताई से कई रचनात्मक सुझाव मिलते थे. चारों मित्रों
की यह अमर जोड़ी बनाने में वसुंधरा ताई का बहुत बड़ा हाथ था. ताई की समझ सिर्फ संगीत
ही नहीं बल्कि व्यापक मुद्दों और रंजकता, कला के विविध पक्ष और साहित्य पर भी
बराबर थी. कुमार जी के घर लगभग सारे अखबार और पत्रिकाएं आती थी जिनका अध्ययन और
मनन वे लगातार करती रहती थी. मुझे याद है एक बार जब जब्बार पटेल ने अपने नवनिर्मित
फिल्म “उड़ जाएगा हंस अकेला” का प्रीमियर देवास में रखा था और मै जब्बार पटेल का
इंटरव्यू कर रहा था तो ताई ने कई मुद्दों और फिल्म के तकनीकी पहलुओं पर विस्तृत
बात रखकर जब्बार पटेल को भी आश्चर्य में डाल दिया था. फिल्म के शो के बाद लोगों के
प्रश्नों का भी ताई ने बखूबी जवाब दिया था जो उनके गहन वाचन और याद रखने का अनूठा
उदाहरण था.
संगीत के
कार्यक्रमों में देवास में लगभग हर कलाकार यहाँ आता है और भानुकुल जाकर स्व कुमार
जी श्रद्धा सुमन अर्पित करता है और ताई से आशीर्वाद लेता था. हम बड़े कौतुक से हर शख्स
को ताई से बात करते हुए देखते थे और पाते थे कि वे हर कलाकार की उनके गुणों के
कारण तारीफ़ करती और रचनात्मक सुझाव भी देती थी और हर कलाकार इसे सहजता से स्वीकार
करता था. शायद हम कभी महसूस ही नहीं कर पाए कि कुमार जी और ताई जैसे बड़े महान
लोगों के सानिध्य में हमारा बचपन कब गुजर गया और हम संगीत में संस्कारित हुए. कुमार जी और ताई ने देवास की अनेक पीढ़ियों को शास्त्रीय संगीत का ककहरा सिखाने का महत्वपूर्ण किया.
ताई सिर्फ कुमारजी
की सहचरणी नहीं थी बल्कि शास्त्रीय संगीत के जो संस्कार ग्वालियर घराने और अपने
पिता से मिले थे उन्होंने संगीत में बहुत प्रयोग किये, निर्गुणी भजनों की परम्परा
को जीवित रखा. देश विदेश में उनके शिष्य आज इस परम्परा को निभा रहे है. कुमार जी
के निधन के बाद वे सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी कम करने लगी थी परन्तु
अपनी पुत्री सुश्री कलापिनी और पोते भुवनेश को उन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा
देकर इतना पारंगत कर दिया कि ये दोनों आज देश के स्थापित कलाकार है.
इधर ताई बीमार रहने
लगी थी, जब भी मिलते तो कहती थी कि मिलने आ जाया करो, अब तबियत ठीक नहीं रहती. और
आखिर कल वही हुआ जिसका डर था, कल वे अपने ही घर पर गिर गयी और कूल्हे में चोट लगी
थी, कलापिनी और भुवनेश ने खूब प्रयास किये परन्तु कल दोपहर उन्होंने अंतिम सांस
ली. ताई को भारत सरकार ने कई पदम् पुरस्कारों और उपाधियों से नवाजा था. भारतीय
संगीत की मूर्धन्य गायिका तो वे थी ही, साथ ही एक अच्छी गुरु और बहुत स्नेहिल माँ
थी. देवास के साथ साथ पुरे मालवे ने आज एक वात्सल्यमयी माँ को खो दिया.
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