Skip to main content

Posts of 28 July 15







और आखिर आ गयी आज। डा कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि और प्रेरणा अनुज Priyam Tiwari की। बस अपुन, सायकिल और व्यायाम ।
कुछ कर नही पा रहा था और शरीर बेढब हो चला था - बीमारियों का घर, मधुमेह और ना जाने क्या क्या. काम की व्यस्तता देर रात तक जिलाए रखती है और सुबह उठकर घूमना हो नहीं पाता अब कम से कम दस किलोमीटर सायकिल रोज चलेगी तो शायद कुछ फर्क पड़े कम से कम हड्डियां तो मजबूत हो बाकी तो खुदा जाने............

शुक्रिया प्रियम एक अच्छी सीख देने के लिए तुमसे वादा किया था ना कि जैसे ही घर पहुंचूंगा ले लूंगा सो आज ग्वालियर से आते ही खरीद लाया और चार किमी चलाकर लाया थोड़ा अजीब लगा पर फिर एकदम बेफिक्र होकर मस्त हवाओं से टकराता और भीगता घर लौट आया और एक नजर का टीका लगाया. मजा आ गया.





IBN Khabar 7 पर कलाम की यादों से सराबोर हुआ सोशल मीडिया… में अपनी भी एक छोटी सी टिप्पणी
जरुर पढ़े, बहुत मार्मिक टिप्पणियाँ है डा कलाम को लेकर.

http://khabar.ibnlive.com/blogs/publicview/dr-apj-abdul-kalam-former-president-2-394682.html


आज डा कलाम की मौत के बाद एक अजीब बहस वामपंथी और कुछ मित्रों के बीच हुई, किसी के मौत के बाद किसी को गरियाना ठीक नहीं है, मतभेद अपनी जगह परन्तु कम से कम मरने के बाद तो छोड़ देना चाहिए, कुछ मित्रों ने बताया कि वाट्स एप के समूहों में भी कुछ बुद्धिजीवी अपना ज्ञान पेलते नजर आये जिनकी ना समझ है ना कोई विचारधारा ना प्रतिबद्धता. यदि दम है तो खुलकर मप्र में व्याप्त व्यापम के मामले में सामने आये. एक दारु की बोतल और सेकण्ड क्लास के किराए पर बिक जाने वाले हिन्दी के घटिया कवि और तथाकथित बुद्धिजीवी अपने को किसी मरे आदमी को गरियाकर क्या साबित करना चाह रहे है सिवाय मूर्खता के और कुछ नहीं हो सकते ऐसे भौंडे प्रयास. 

दूसरा दुखद यह लगा कि कुछ लोगों ने कलाम साहब के बहाने से कुछ मित्रों के व्यक्तिगत जीवन में ताक झाँक  की कोशिश की और रंग भेदी नस्लीय टिप्पणी की जोकि बहुत ही खेदजनक है , यहाँ तक की लिख दिया कि काले रंग के चेचक के दाग वाले, अपनी बीबी को धता बताकर कमसिन लड़कियों के पीछे पड़े है ये कौनसी मानसिकता है?  यह सही है कि हिन्दी में कवि स्कैंडल बनाने में माहिर है और कुंठित भी और लडकियां उनकी कमजोरी भी है, जहां भी जाते है पाने अपराध बोध छुपाने के लिए वे वो सब करते है जो अश्लीलता की श्रेणी में आता है और बदचलनी का इल्जाम सही भी हो सकता है पर आज के इस दुखद मौके पर यह टिप्पणी ठीक नहीं थी. 

कुछ मित्रों की कविता को किसी ने कही लगा दिया तो वे सारा दिन परेशान होते रहे और यहाँ वहाँ मेसेज कर कोसते रहे...........


एक पूर्व राष्ट्रपति की मौत हुई, एक लोकप्रिय इंसान की मौत हुई, एक जन नेता की मौत हुई और सबसे बढ़कर एक वैज्ञानिक की मौत हुई .....क्या इतना पर्याप्त नहीं है , अब जबकि शख्स ज़िंदा नहीं है तो मूल्यांकन करने का अधिकार आपको दिया किसने?  शर्म उनको तो आती नहीं आप भी बेचकर खा गए क्या हिन्दी के कुंठित साहित्यकारों.......................???

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही