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सिर्फ तथागत नहीं 7 July 15





मेरे लिए ये सिर्फ तथागत नहीं है, गौतम बुद्ध नहीं, राजकुमार सिद्धार्थ नहीं, अंगुलिमाल, आनंद  या आम्रपाली के गुरु नहीं, वरन एक समूची जीवन पद्धति है, अनुशासन है, और जीवन की आशाओं - निराशाओं के बीच से निकलने वाली एक ऐसी राह है - जो चलना, गिरना, उठना, समझना, समझाना और रोना - हंसना सिखाती है. ना जाने क्यों इन मुश्किल दिनों में जब बहुत जगह से बहुत निराशा हाथ लग रही है और बहुत कुछ करने के बाद भी बहुत कुछ नहीं कर पा रहा तो अंत में अंतस में बहुत नैराश्य सा छा गया है, चहूँ ओर व्याप्त अन्धकार और त्राहि - त्राहि से भयभीत हूँ और ना जाने क्यों ऐसे में तथागत याद आते है. उनके चेहरे की शान्ति और दैदीप्त्मान आभा से सीख रहा हूँ कि कैसे मौन रहकर भाषा बोली जाए, कैसे विपश्यना को जीवन में उतारकर कलुष और संताप से दूर रहा जाएँ, कैसे अपरिग्रह और वासना से दूर रहकर सीमित संसाधनों में साँसों का स्पंदन बरकरार रखा जाए. पर अभी तो याचक की भाँती खडा हूँ पता नहीं किन दरवाजों और देहरियों पर और एक भिक्षु बनने में  बहुत देरी है - शायद जन्मों का फासला है और पता नहीं कब मुझे तथागत के चेहरे की शान्ति समझ आयेगी और कब वह दिव्य अनुभूति होगी, पर फिलवक्त अभी जब "उजास" इलाहाबाद में गया था, तो आते समय बनारस एयरपोर्ट से तथागत की ये चंद मूरतें, प्रतीकात्मक ही सही, उठा लाया बहुत श्रद्धा के साथ कि कही से तो शुरुआत हो. क्या शान्ति का दूसरा नाम जीवन का संताप, क्लेश, यातना और अपराधबोध है ? 







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