गुरदासपुर
पर हुआ हमला दुखद है, इसके तुरंत बाद मोदी जी द्वारा की जा रही त्वरित कार्यवाही यथा
केन्द्रीय सुरक्षा बालों को, एनएसजी को तुरंत गुरदासपुर रवाना करना और उच्च
अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति का जायजा लेना आदि प्रशंसनीय है. दरअसल मुझे
लगता है कि यह आतंकवादियों की ओर से एक चेतावनी थी जबकि सुप्रीम कोर्ट याकूब मेनन
की अर्जी पर कोई निर्णय लेने वाला था. यह भारत जैसे बड़े देश को एक बार फिर धमकाने
और कमजोर करने की बड़ी साजिश है. कंधार काण्ड याद कीजिये और वह ब्लैकमेल. मुझे लगता
है कि यह सिर्फ आतंकवादी हमले की बात नहीं, बल्कि हमारे पुरे खुफिया तंत्र और
मुस्तैदी का भी सवाल है कि आखिर हमारी गुप्तचर एजेंसियां क्या कर रही है, केंद्र सरकार ने हाई अलर्ट छह लोगों की मौत के बाद जारी किया जबकि 30 तारीख जैसे जैसे पास आ
रही थी तो क्या सरकार को स्वतः संज्ञान लेकर देश, सुरक्षा बलों को सचेत
रहने को नही कहना चाहिए था ? दूसरा, इस समय दुनिया की नजर
याकूब की फांसी पर लगी है तो चाक चौबंद रहना क्या हमारी जिम्मेदारी नही थी ? वे तीन-चार आतंकवादी तो
मानव बम बनकर थाने में बैठे ही है जो 112 इंच का सीना लेकर वे तो
मरे ही सेना के हाथों पर हमारी सुरक्षा व्यवस्था का क्या ?
दूसरा महत्वपूर्ण सारा देश केंद्र और राज्य की आपसी
खींचतान के नाटक को सरेआम देख रहा है, कल मुख्यमंत्री बादल ने भी इस सारी गलती और
सुरक्षा में लापरवाही का ठीकरा केंद्र पर फोड़ा, जोकि बहुत ही गंभीर मसला है.
अरविन्द, नजीब जंग और मोदी की लड़ाई मीडिया के विज्ञापनों से होते हुए अब सडकों पर
दिखाई देने लगी है और इस वजह से कही कोई निर्णय लेने वाला नहीं है. देश की पुरी
व्यवस्था एक व्यक्ति के हाथों में आ गयी है. सोशल मीडिया पर चले वाक्युद्ध में भी
56 इंच के सीने के बहाने लोगों ने सरकार को जी भरकर कोसा. आखिर हम किस समाज और
व्यवस्था में जा रहे है. सरकार के सारे दांव उलटे पड़ रहे है. केंद्र-राज्य के
रिश्ते सुधरने के बजाय बिगड़ते जा रहे है और केंद्र एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में हर
तरह के फैसले अपने हाथ में केन्द्रित रखना चाहता है
इस समय यह घटित होना दर्शाता है कि देश को कमजोर करने
वाली ताकतों को इस बात का पुख्ता भरोसा है कि वे चाहे जो करें पूरा देश सो रहा है,
बॉर्डर पर आये दिन घुसपैठ, हमारे जवानों और अधिकारियों की ह्त्या होना स्वाभाविक
हो गया है, महिलाओं के साथ अत्याचार बढे ही है, आम आदमी की सुरक्षा के लिए कही कोई
संगठित प्रयास नहीं दिखते, प्रशासन पुरी तरह से बेखौफ होकर हर जगह काम कर रहा है,
वरिष्ठ अधिकारी ना केंद्र में काम करना
चाहते है, ना दिल्ली में - तो आखिर ये सब क्यों हो रहा है और कब तक होता
रहेगा?
देश दिल्ली और मन की बात से बहुत दूर होता है प्रधानमंत्री
जी, हम यह कब समझेंगे ???
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