ये पेड़ नहीं है - बल्कि एक पीढी को सौंपे जाने वाली धरोहर है. बहुत दिनों से लग रहा था कि मेरे कमरे में कुछ अधूरापन है फिर लगा कि शायद हरियाली सूख रही है, तो एक दिन जाकर कुछ पेड़ ले आया, और एक बरगद मिल गया इसे इस उम्मीद से लगाया है कि इसके नीचे जरुर बहुत कुछ उगाउंगा और फिर शायद कोई कहावत नई रच पाऊं. Alok Jha ये देख लो, शायद हम एक ही नाव में भटके ही सही, सवार तो है......चेत रहे है पेड़, फ़ैल रही है बैलें, और निकल रही है नई शाखें और उग रही है कोंपलें ताकि कुछ और नया सृजित हो सकें. कम से कम कुछ हरी पत्तियाँ, कुछ नई शाखें और कुछ अन्दर ही अन्दर फैलती सी जड़ें
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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हमारे जीने का सहारा है पेड़ ...
बहुत सुन्दर..