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Post of 16 July 15

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सिर्फ वित्त आयोग ही नहीं बल्कि राज्य योजना आयोग में एक आय एफ एस अधिकारी के कार्यकाल की भी जांच होनी चाहिए शिवराज जी के कार्यकाल में जो तीन चार बार चुनाव होने पर भी जमे रहे और अरबों के बजट से खेलते रहे. बार बार लिखने और अनुरोध करने पर भी तीन तत्कालीन मुख्य सचिव, प्रदेश शासन की हिम्मत नहीं थी कि उन्हें अपने पद से हटा सकें. इस अधिकारी ने प्रदेश में विकेंद्रिकरण के नाम पर कई विदेश यात्राएं की, अपनों को उपकृत किया और पुरे स्टाफ में भी टेक्नीकल सपोर्ट यूनिट के नाम पर अंधाधुंध भर्तियाँ की जो कि बिलकुल ही स्तरहीन लोगों की भर्तियाँ थी. यूनिसेफ से लेकर तमाम एजेंसियों के साथ इनके संबंधों की भी जांच होनी चाहिए. प्रदेश में विकेंद्रीकरण के नाम पर मामाजी की शह पर इस अधिकारी ने मोटोरोला के जीपीएस से मेपिंग के महंगे सेट खरीदे और जिलों में बाँट दिए जो आजकल धुल खा रहे है,  दो तीन जिलों में पाईलेट प्रोजेक्ट के तहत संसाधनों की मेपिंग के लिए नागपुर की एक फर्म को ठेका दिया जिसमें से एक जिले होशंगाबाद के मूल कागज़ जिला सान्खियिकी अधिकारी कार्यालय से गायब हो गए, तत्कालीन जिला कलेक्टर को भी चुप रहने के निर्देश मिले थे, और कम्पनी को भुगतान भी कर दिया गया.........ऐसे भोले भंडारी अधिकारी जो कि शिवराज जी के खासमखास थे, और ये बिना शिवराज जी की शह के कुछ नहीं कर सकते थे, कुल मिलाकर ये आठ साल योजना आयोग में जमे रहे और सुविधाएं भकोसते रहे. इसकी भी जांच होना चाहिए . मैंने स्वयं में कई बार फेस बुक पर खुलकर लिखा चुनावों के दौरान तत्कालीन मुख्य सचिवों और मुख्य निर्वाचन अधिकारी, मप्र शासन और भारत सरकार को लिखा था परन्तु कोई कार्यवाही नही की गयी, जाहिर है इन पर प्रदेश के मुखिया का हाथ था. राज्य योजना आयोग में मुख्य सलाहकार एक आयएएस ना होकर एक भारतीय वन सेवा का अधिकारी कैसे इतने साल बना रहा जिस विभाग में अरबों का बजट हो, वहाँ बिना प्रशासनिक अधिकारी के होना और चलना,  यह निश्चित ही चिंता और सोचने का विषय है जहां 51 जिलों के वार्षिक बजट में अरबों रुपयों का सवाल होता है. अब चूँकि बात निकली है तो दूर तलक जाना स्वाभाविक ही है. 

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