Skip to main content

Post of 6 June 15


Indore School of Social Work, Indore की खबर पढी जिस तरह से इस संस्थान का स्तर घटा है पिछले कुछ बरसों में वह बेहद चिंतनीय है और आज तो हद तब हो गयी जब तृतीय सेमेस्टर के अधिकाँश छात्रों को फेल कर दिया गया. प्राचार्य जे टी थुड़ीपारा और एक महिला प्राध्यापक रंजना सहगल की आपसी लड़ाई का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है. सबसे बेहतर विकल्प है शासन इसे अपने अधीन ले लें क्योकि वैसे भी यह एक मिशनरी द्वारा संचालित है और प्रवेश, परीक्षा, परिणाम और प्लेसमेंट को लेकर यह महाविद्यालय अक्सर चर्चा में रहता है जिस पर अंकुश लगाकर तत्काल इस पर कार्यवाही की जरुरत है. मध्य प्रदेश के सबसे पुराने और एक समय में अच्छा माने जाने वाला यह संस्थान अब प्रदेश का सबसे घटिया संस्थान बन गया है.
पूर्व छात्र इस बारे में कुछ मोर्चा बनाकर काम करे ताकि दूर दराज से आने वाले बच्चे समाज सेवा का सही ककहरा सीख सके बजाय घटिया राजनीती और दांव पेंच सीखने के. पूर्व छात्र संघ सिर्फ साल में एक जलसा मनाने के बजाय इसे बेहतर रुप से चलाने में मदद करें. एक वो जमाना था जब प्राचार्य स्व डा फिलिप्स ने वर्तमान सरकार के एक केबिनेट मंत्री को फेल करके निकाल दिया था और एक आज है कि एक प्राचार्य का सारा समय इस महिला प्राध्यापक के लिए षड्यंत्र बुनने में सारा समय चला जाता है. और इस सबके बीच छात्र यहाँ वहाँ "बहकते और भटकते" रहते है. शासन इसे अधिग्रहित करें सरल और सीधा सा फार्मूला बस.

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही