देवास संस्कृति का बड़ा केंद्र है कोई माने या ना माने. आज यहाँ मभा हिन्दी साहित्य के तत्वावधान में एक छोटी सी कवि गोष्ठी रखी गयी थी. चूँकि मै खंडवा में था पर मित्र लोग आ रहे थे इसलिए काम ख़त्म कर तुरंत भूखा प्यासा भागकर आ गया फिर भी तसल्ली थी कि बावजूद बसों की लेट लतीफी और बरसात, ट्राफिक जाम के कारण देरी से पहुंचा तो सही. असली बात यह है कि यह छोटा सा किन्तु महत्वपूर्ण आयोजन कलापिनी ने अपने घर भानुकुल में रखा था, जहां आदरणीय पदमश्री वसुंधरा ताई के सानिध्य में उपस्थित कवि मित्रों ने कवितायें पढी. कुमार गन्धर्व अकादमी ने शास्त्रीय संगीत के साथ अब चित्रकला, विचार व्याख्यान, कला और साहित्य के लिए भी एक अच्छी पहल शुरू की है. कलापिनी ने बताया कि हर दो माह में अब इस तरह के कार्यक्रम नियमित होते रहेंगे. इसी दिशा में भाई मोहन वर्मा ने यह कार्यक्रम आयोजित किया. बरसात का सुहाना मौसम और भाई राग तेलंग की कवितायें साथ ही अशोक, संजय राठौर और देवास के मनीष शर्मा की कवितायें सुनना एक सुखद अनुभूति थी. इस सुहाने मौसम में और लगभग दाखिल हो चुके मानसून में यह कविता पाठ एक ऐतिहासिक कार्यक्रम बन गया. सबका शुक्रिया और बधाई कि बरसात के बाद लोग आये और पुरे धैर्य से कवितायें सुनी. भाई राग तेलंग ने अपना कविता संकलन भी मुझे भेंट किया जिसके लिए आभार ही कह सकता हूँ.
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
Comments