कल रात बादल छा रहे थे सारी रात छत पर घुमते हुए लगा कि कुछ है जो खो रहा है, कुछ है जो घुल रहा है, कुछ है जो बारिश की बूंदों से होता हुआ सीधे अंदर उतर रहा है । बहुत देर तक बादलों के पीछे चलता रहा और खोजता रहा चाँद को! कल रात जल्दी के कारण देख नही पाया था । आज शाम होने के ठीक पहले वह छत पर आ गया, सूरज की मन्द होती लालिमा और बूझते सूरज को देखकर हालांकि वह दुखी जरूर था , पर चाँद के निकलने को लेकर बहुत आशान्वित भी था क्योकि उसने हर रात चाँद को देखा था। अपने कमरे के एक गमले में उसने चाँद को छुपाकर रखा था, यह गमले में छुपा चाँद वह अपने सख्त जूतों में छुपा ले जाता - जब वह खरगोश और चींटियों से मिलने दूर अक्सर जंगल में जाता । घने पेड़ों के बीच चलते चलते जब चाँद छुप जाता तो वह पगडंडियों के बीचो बीच अपने नन्हें से जूते खोलकर बैठ जाता और फिर उसमे चाँद को बाहर निकाल कर जी भरकर देख लेता और बातें करते करते नदी के तैरते पानी में एक उछाल मार कर सो जाता। यह उसके और चाँद के बीच एक मौन समझोता था जो धरती तारों को रास नही आता था। आज की रात फिर अपने गमले में छुपे चाँद को जूतों में छुपा वह खुली छत पर ले आया था, छत की सीढ़ियों को नदी के पानी सा उछलता पाकर उसने एक सांस में छत को पा लिया था पर चाँद आधी रात तक नजर नही आया, बेहद दुखी होकर उसने नीचे देखा तो सर्पीली सड़क पर एक बावली सी लड़की जाती नजर आई जो सड़क किनारे लगे पेड़ो को अपनी झोली में रखते हुए उद्दाम वेग से चींटियों के रथ पर सवार होकर आसमानी रास्ते पर ऊपर की ओर बढ़ती आ रही थी, उसे लगा कि उसका चाँद उसकी झोली में पड़े किसी पेड़ के फल के बीज में पड़ा मुस्काता होगा और अचानक वह फिर भोर के तारे को लपकने दौड़ा कि उसे अपने पास रखकर सारी मुरादें पूरी कर लें और शुक्र तारे को अपने जूते में छुपाकर नीचे ले आया। रोज की तरह सुबह का सूरज उसके कमरे में दाखिल हो रहा था और उसने देखा कि उसका चाँद उसके गमले में उग आया था, और शुक्र तारा एक बोन्साई का पेड़ बनकर उसकी छत से चिपक रहा है। वह जागते जागते फिर सोने का उपक्रम करने लगा।
रायन के लिए
ग्वालियर में
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