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कामरेड डा अजय कुमार खरे - अमर रहें ।







सन 1987  की बात, साक्षरता और जनान्दोलनों का दौर, भोपाल गैस त्रासदी, छोला रोड पर इकठ्ठा हम लोग एक भीड़ जिसमे ख्यात वैज्ञानिक, डाक्टर, मजदूर, शिक्षक, केरला शास्त्र साहित्य परिषद् का जन विज्ञान जत्था और विज्ञान का उपयोग कैसे लोगों के हित में हो इस पर रवीन्द्र भवन में दो दिन के लम्बे लम्बे सेशन. बाद में सन 1990 में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता वर्ष और पुरे देश में हलचल, कई दोस्त बने हम लोग बड़े हो रहे थे, विचारधारा समझ रहे थे, काम की समझ विकसित कर रहे थे, कई दोस्त साथ थे - जो अलग अलग व्यवसाय काम धंधों से आते थे, उनमे से एक अलग शख्स था - डा अजय खरे, बहुत बाद में पता चला कि ये बन्दा प्रापर डाक्टर है, और वो भी पी जी है, दोस्ती का सिलसिला बढ़ा, और फिर ये दोस्ती ऐसी चली कि कल रात 230 बजे ख़त्म करके वह बन्दा चला गया यकायक और बगैर बताये.. क्यों क्या एक बार बताओगे डा अजय खरे............???

इस बीच   इस तीन दशकों में लगभग हम लोगों ने देश भर में स्वास्थ्य, शिक्षा और साक्षरता का गहरा काम संजीदगी से किया, इस सबमे विनोद रायना, संतोष चौबे, लाखन सिंह, एस आर आजाद, अजय और पुरी मंडली थी - जिन्होंने नेतृत्व दिया था, अनेक आन्दोलनों को और अभियानों को, जब भी स्वास्थ्य की बात होती अजय से राय ली जाती, भारत ज्ञान विज्ञान समिति के देशी , प्रादेशिक सम्मेलनों में शिरकत कर हम लोग देर रात तक पोस्टर बनाते, कार्यशालाओं की तैयारी करते, बहस करते, लड़ते झगड़ते, और फिर साथ में मस्ती करते, घूमते और आम लोगों के हितों की ही बात करते. मै सात बरस भोपाल में रहा काम के लिए, शायद ही ऐसा हफ्ता गुजरता हो - जब अजय से बात नहीं होती या बी जी वी एस के दफ्तर में कोई गोष्ठी में ना मिलते हो, चाहे प्रयास के नरेद्र गुप्ता आये हो तब या दिल्ली से के के आये हो या मप्र लोक साझा एवं संघर्ष अभियान के किसी कार्यक्रम में, विकास संवाद के किसी बहस में. स्वास्थ्य या किसी भी जन अभियान में अजय की राय बहुत मायने रखती थी और वे बहुत गंभीरता से निष्पक्ष राय देते थे. बाद में संतोष चौबे वैचारिक रूप से अलग हो गए इस अभियान से परन्तु दोस्ती और प्यार मोहब्बत बनी रही आपस में.

पिछले कई   बरसों से अजय, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के साथ काम कर रहे थे, हालांकि मुझे उनके बैतूल पद स्थापना के दिन भी याद है, जब हम वहाँ मिले थे या जवाहर कैंसर अस्पताल भोपाल के दिन या 1250 अस्पताल के दिन, पर पिछले कुछ समय से वे एन आर एच एम भोपाल में जन स्वास्थ्य और सरकार की जन विरोधी नीतियों की लड़ाई तंत्र के अन्दर रहकर लड़ रहे थे. नकली दवाओं, अमानक स्तर की दवाओं, सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों पर बढ़ाते काम के दबाव और थोपे गए शासकीय तनाव पर भी काम करके सरकारी तंत्र में डाक्टरों की इज्जत और गरिमा के लिए भी काम कर रहे थे, ग्रामीण क्षेत्र में जन स्वास्थ्य सुविधाएं कैसे बढे, आशा और बहु उद्देशीय कार्यकर्ता, टेक्नीकल स्टाफ, और इन जैसे जमीनी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की क्षमता कैसे बढ़ाई जाए - इस पर भी वे एक पुरी टीम के साथ काम कर रहे थे, नीतियाँ बना रहे थे, मोड्यूल विकसित कर रहे थे, आरती पांडे, सविता, और कई ऐसे साथी उनकी इस यात्रा में जुड़े थे, ये सब और हम लोग अजय के भरोसे ही स्वास्थ्य के बारे कुछ भी कह देते थे और कर लेते थे. मैंने हाल ही में क्राय के लिए प्रदेश के चौदह जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं पर माताओं और शिशुओं की पहुँच पर एक अध्ययन किया था जिस की रिपोर्ट पर उन्होंने सार्थक सुझाव दिए थे ताकि योजना और नीती में परिवर्तन के लिए लोक स्वास्थ्यएवं परिवार कल्याण विभाग को सुझाव दिए जा सके. मेरी हाई शुगर के लिए भी वे चिंतित रहते थे और कहते थे कि यार सही से दवा ले लिया करो, सीहोर में जब मै था तो कईं बार सरकारी अस्पताल में मुलाक़ात हो जाती थी अनुश्रवण और मूल्यांकन के दौरान हम फील्ड में साथ चले जाते थे. ग्राम आरोग्य केन्द्रों को बेहतर करने में हमारे नवाचार को उन्होंने एक शेप दिया था जरुरी संसाधनों और दवाईयों की सूची बनाकर जो आवश्यक हो सकती थी.

अजय भाई   का इस पुरी लड़ाई से यूँ चले जाना बहुत ही दुखद है, कल ही उनका जन्मदिन था और मैंने उनके रचनात्मक और दीर्घायु होने की कामना की थी, अब डर लग रहा है कि यह क्या होगा, काल ने पहले हमसे विनोद भाई को छिना और फिर आज अजय को, लग रहा है कि हम हार रहे है लगातार - नियति और प्रकृति भी कैसा क्रूर मजाक कर रही है.

मित्र राहुल  का कहना है कि कल रात ढाई बजे बड़वानी से लौटते समय सीहोर के पास एक खड़े ट्रक में कार का घूस जाना, ड्राईवर का बच जाना और अजय का मौके पर ही ख़त्म हो जाना कही कोई गहरी साजिश तो नहीं है मौत की, क्योकि वे एक लम्बी लड़ाई दवा माफियाओं के खिलाफ लड़ रहे थे, उन्हें पांच बार जान से मारने की धमकी मिल चुकी थी, एक बार यह पूरा मामला ई टीवी पर भी आ चुका था जब उन्हें उनके मोबाईल पर लगातार धमकियां मिल रही थी. तंत्र में डाक्टरों का और प्रशासनिक अधिकारियों का एक धडा उनके खिलाफ था, जो भी हो अब अजय तो चले ही गए है एक पुरी लड़ाई हम सबको देकर और सौंपकर. जन स्वास्थ्य, ग्रामीण और गरीब लोगों के हकों की लड़ाई करने वाला तंत्र में बैठा एक मददगार हमने खो दिया है. जरुरत है कि अजय भाई के काम को आगे बढाने के लिए प्रदेश के सभी साथी मिल जुलकर प्रयास करें और सभी डाक्टर, स्वास्थ्यकर्मी लामबंद होकर उस लड़ाई और उन मुद्दों पर संगठित रूप से काम करें जो उन्होंने उठाये थे और अधूरे छोड़े थे.

डा अजय  खरे जो मप्र में और पुरे देश में जन स्वास्थ्य अभियान खड़े करने वाले बेहतरीन इंसान और काबिल डाक्टर थे, का इस तरह से देहावसान हो जाना दुखद है. देश और प्रदेश ने एक काबिल डाक्टर, बेहतरीन इंसान और हम सबने एक अच्छा प्यारा दोस्त खो दिया। आज सुबह से यह खबर पाकर बहुत आहत हूँ । सन् 87 से अजय से दोस्ती थी और हर समय उन्हें अपने साथ पाता था। डा विनोद रायना की मौत के बाद अजय का यूँ चले जाना पुरे जनांदोलनों की एक बड़ी क्षति है और जन स्वास्थ्य, ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और डाक्टरों की लड़ाई का पुरोधा और एक सच्चे मित्र का यूँ गुजर जाना उम्र के इस पड़ाव पर बहुत अखरेगा, यह ठीक नहीं है अजय भाई, यह एक धोखा है हम सबके साथ.

कल रात   देवास से अनिल करमेले और मनोज कुलकर्णी जा रहे थे तो मैंने दो बार कहा कि सम्हलकर जाना, मनोज को शायद अजीब लगा होगा परन्तु ना जाने क्यों अब रात के समय सफ़र करने में डर लगता है और कोई परिजन या मित्र भी जा रहे हो तो डर लगता है, खैर.

कामरेड डा अजय खरे अमर रहें ।

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