आपको याद है पाश की कविता "कैथरकला की औरतें" जिसमे औरतें भिड जाती है पुलिस वाले से या नसीरुद्दीन शाह की राजस्थानी पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म "मिर्च मसाला" जिसमे औरतें अंत में दरोगा पर इकठ्ठा होकर लाल मिर्च का पाउडर फेंक देती है क्योकि वह उनमे से एक पर गलत निगाह रख रहा था. हालात वास्तविक जीवन और फिल्मों कहानियों से अलग नहीं है चाहे आप एक सरसरी तौर पर निगाह अपने आसपास घूमा लें या किसी किशोरी, युवा लड़की या महिला से छेड़छाड़ की स्थिति पूछ लें. जिस समाज में महिलाओं को बराबरी का हक़ नहीं सम्मान नहीं वहाँ गैर बराबरी से उपजे व्यवहार में महिलाओं के साथ छेड़छाड़, हिंसा, बलात्कार, दहेज़ ह्त्या और जघन्य अपराध होना बहुत सामान्य है. परन्तु अब चेतना और जागरूकता से जहां ऐसे मुद्दे सामने आ रहे है, सरकार ने निर्भया काण्ड के बाद क़ानून में बदलाव किये है वही महिलाओं ने भी अपने स्तर पर खुद आगे बढ़कर हिंसा और छेड़छाड़ के खिलाफ एक मुहीम शुरू की है.
मध्यप्रदेश का नाम लेते ही कुपोषण, महिला अत्याचार का नाम सामने आता है क्योकि इन दो मुद्दों के लिए यह प्रदेश देश भर में जाना जाता है परन्तु मप्र शासन के नगरीय प्रशासन विभाग की पहल और अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग ब्रिटेन के सहयोग से प्रदेश के चार बड़े शहरों - इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और भोपाल में महिला हिंसा से निपटने के लिए एक सुरक्षित शहर एक पहल कार्यक्रम आरम्भ किया गया है जिसमे एक शोध परक ढंग से महिला हिंसा को कम करने के विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ आयोजित की जा रही है. महिलाओं के समूह बनाए जाकर उनके साथ कई प्रकार के प्रयास किये जा रहे है ताकि इन्हें सशक्त बनाकर समाज में उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सकें.
जबलपुर की एक बदनाम बस्ती माझी बस्ती है जहां गुंडागर्दी और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ इतनी ज्यादा है कि लोग आवाज उठाने में डरते है. शराब, गांजा, स्मैक का चलन बस्ती में इतना ज्यादा है कि बड़े - बूढों से लेकर छोटे बच्चे जिनकी उम्र बारह तेरह बरस है, भी पीना शुरू कर देते है और इसके लिए मारा पीटी करना, छोटी मोटी चोरी करना, घर का सामान बेच देना या बाहर बहुत सामान्य बात है, जाहिर है जब नशा दिमाग में चढ़ता है तो मस्ती और लड़कियों और महिलाओं को तो छेड़ेंगे ही !!! इस तरह से धाक भी जमती है और बदनाम भी होते है.
बस्ती की महिलायें और लड़कियां परेशान थी उन्हें सूझ नहीं रहा था कि क्या करें, एक दिन वो नगर निगम जबलपुर के द्वारा चलाये जा रहे सुरक्षित शहर परियोजना के संपर्क में आई, उन्हें एक महिला हिंसा के खिलाफ किये जा रहे प्रशिक्षण में हिसा लेने का मौका मिला, इसके बाद इन महिलाओं ने पंद्रह महिलाओं के साथ मिलकर बस्ती में निर्मल छाया समूह बनाया और सौ रुपया महीना इकठ्ठा करना शुरू किया जो आज बढ़कर बारह हजार हो गया है. आपस में ये लों लेती है र समय पर चुकाती भी है. सारी पंद्रह सदस्य घरों में खाना बनाने जाती है या घरों में पापड बनाती है. शिमला बाई बताती है कि हम सब बहुत परेशान हो गयी थी रोज रोज के झगड़ों और छेड़छाड़ से, तो फिर लगा कि अब बहुत होना चाहिए, जहां कोई शादी करने को तैयार नहीं, महिलाओं की इज्जत नहीं और चौबीसों घंटे तनाव रहे वहाँ क्या जीवन, प्रशिक्षण से हमें बल मिला हमने मिलकर सोचा कि अब कुछ काम महिलाओं को ही करना होगा, एक दिन हममे से ही एक बहन की लड़की को एक लडके ने बुरी तरह से छेड़ा, जब उस लड़की और महिला ने शिकायत की तो उसने और उसके दोस्तों ने अभद्रता की यह होली से पहले की बात है, हम लोग पुलिस में गए तो गढ़ा थाने वाले आये और देखकर लौट गए, कुछ किया नहीं. लडके की हिम्मत बढ़ गयी, उसने अगले दिन फिर उस लड़की को छेड़ा, अबकी बार उस महिला ने यह बात हमारे समूह के सदस्यों को बताई, बस फिर क्या था, हम सबने उस लड़की की धुनाई की और सीधे गढ़ा थाने गए और एक आवेदन लिखकर दिया कि रोज क्या होता है शराब बिकती है, और गुंडागर्दी बढ़ गयी है. आवेदन में हमने लिखा कि यह मामला "354- अ" में आता है अतः अविलम्ब कार्यवाही की जाए. लक्ष्मी केवट बताती है कि प्रशिक्षण में हमें घरेलू हिंसा से लेकर सभी प्रकार के कानूनों की जानकारी दी गयी थी और सिखाया गया था, हमें पर्चे और किताब भी मिली थी. यह आवेदन पढ़कर पुलिस हरकत में आई और हमारी महिलाओं की भीड़ देखकर तुरंत हमारे साथ बस्ती में आई और उस लडके को ले गयी.
लक्ष्मी बताती है कि तब हमने एक रजिस्टर खरीदा, सब महिलाओं के फोटो चस्पा किये, नाम लिखे और अब हमारे निगरानी दल में 50 महिलायें है जो रोज इन असामाजिक तत्वों पर चौबीसों घंटे नजर रखती है, यहाँ तक कि वे घर में अपने पति और जवान बच्चों पर भी नजर रखने लगी है और यदि वे शराब पीते है या कोई अन्य नशा करते है तो वे सख्त रवैया अपनाती है. कौशल्या बताती है कि जैसे क़ानून सबके लिए है वैसे ही हमारे समूह का व्यवहार भी सबके लिए सामान है, चाहे वो हमारा पति ही क्यों ना हो अगर वो घर बाहर या कही भी हिंसा करेगा तो हम विरोध करेंगे. हालांकि पद्रंह बीस दिनों में बहुत फर्क पडा है हम थाने के बाद एस पी ऑफिस भी गए थे, छेड़छाड़ कम हुई है परन्तु घरों में दबाव बहुत है, काम के दबाव है और हमारी बराबरी का मुद्दा तो अभी बहुत दूर है पर हम बुंदेलखंड की तर्ज पर गुलाबी गेंग बनाना चाहते है हमने वह फिल्म टीवी पर देखी है.
हम अब पचास महिलायें है, और अब हम आंगनवाडी, सफाई, मध्यान्ह भोजन और बस्ती के स्कूल में पढाई क्यों नहीं हो रही या राशन की दूकान से पर्याप्त और सही समय पर सामान क्यों नहीं मिल रहा इस पर भी काम करना चाहते है ताकि हम हमारी बस्ती जो बदनाम हो चुकी है, को फिर से इज्जत दिलाना चाहते है. उम्मीद की जाना चाहिए कि इन महिलाओं ने जो बीड़ा उठाया है वह सबकी मदद से पूरा हो और कम से कम महिलाओं को इज्जत के साथ जीवन बिताने का मौका मिलें , सभी लडकियां बगैर खौफ और डर के आ जा सकें, पढ़ सकें , नौकरी कर सकें, और सम्मान से समाज में अपना जीवन बिता सकें. माझी बस्ती की महिलाओं के ये छोटे प्रयास व्यर्थ नहीं जायेंगे और ये महिलायें बाकी महिलाओं के लिए प्रेरणादायी उदाहरण बनेगी.
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