ये बारिश में भीगना यूँ है मानो एक रक्तिम घटाटोप बरसात के साये से जूझता और मिट्टी के बोझ से दबे पांवों को लपेटता घिसटता और हांफती साँसों के बीच में मीलों मील चलते चले जा रहा हूँ, पीठ पर सदियों की सताई और कुंठित आत्माओं की तड़फ और बोझ लिए। ये यूँ गुजरना ऐसा है मानो एक लंबी ठहरी नदी में मैं बह रहा हूँ - रक्त रंजीत सा और पानी ठहर गया है- झील की सतह पर जमी एक बेहद अशांत और गर्म बर्फ सा। ये कैसा समाँ है , ये कैसा जूनून है , और इसका अंत क्या एक लंबे क्रंदन में होगा - यह पूछते हुए कि कहाँ हो तुम, सुन रहे हो ना.... यह तुम्हारे लिए है !!!
ये बारिश में भीगना यूँ है मानो एक रक्तिम घटाटोप बरसात के साये से जूझता और मिट्टी के बोझ से दबे पांवों को लपेटता घिसटता और हांफती साँसों के बीच में मीलों मील चलते चले जा रहा हूँ, पीठ पर सदियों की सताई और कुंठित आत्माओं की तड़फ और बोझ लिए। ये यूँ गुजरना ऐसा है मानो एक लंबी ठहरी नदी में मैं बह रहा हूँ - रक्त रंजीत सा और पानी ठहर गया है- झील की सतह पर जमी एक बेहद अशांत और गर्म बर्फ सा। ये कैसा समाँ है , ये कैसा जूनून है , और इसका अंत क्या एक लंबे क्रंदन में होगा - यह पूछते हुए कि कहाँ हो तुम, सुन रहे हो ना.... यह तुम्हारे लिए है !!!
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