बहुत ही खूबसूरत कम्पोजीशन है और अदभुत गीत है, कुमार जी ने जो गाया है और अब्र कबीर को लेकर जो प्रयोग कबीर केफे और नए युवा कर रहे है पाश्चात्य संगीत और उपकरणों के साथ वह भी स्तुत्य है.
मेरा गंभीरता से मानना है कि अब नए प्रयोग और नई शैली की गायकी भी आना चाहिए जो परपरागत से हटकर हो और कुछ नया रचना धर्म दिखाती हो वरना तो कुमार जी, भीमसेन जोशी, जसराज, और गंगू बाई हंगल की बंदिशें गा गाकर लोगों ने घराने बना दिए है. खासकरके कबीर जैसे प्रयोगधर्मी और क्रांतिकारी कवि और सिर्फ कबीर ही नहीं दादू, मीरा, जायसी, रसखान और तमाम सूफी संतों के भजनों को अब नए सन्दर्भों में परखकर, बुनकर और संजोकर लयबद्ध किया जाना चाहिए.
एक पुरी पीढी बड़े गुलाम अली खां, अमीर खां, रज्जब अली खां, गंगू बाई, कुमार जी, भीमसेन जोशी, आबिदा, जसराज जी, वसंत देशपांडे, मालिनी राजुरकर आदि को सुनते हुए बड़ी हुई और ख़त्म भी हो गयी. अब समय है कि नए युवा जो संगीत की दीवानगी में पागल होकर अपना सब कुछ छोड़कर जी जान से जुटे है, ना इन्हें नाम की चिंता है, ना यश और कीर्ति की पताकाएं फहराना चाहते है और ना ही चल अचल संपत्ति का मोह है - वे जो अनूठे संधान कर रहे है और रच रहे है शिद्दत से उसे सहज स्वीकार करके पुरे उदार मन से "रिकोगनाईज़" करना चाहिए. मै कदापि यह नहीं कह रहा कि हमारे मास्टर्स को भूला दें या बिसरा दें और खारिज करें, परन्तु अब नया रचने का ज़माना है और इसे गहराई से समझने की जरुरत है.
आपका शुक्रिया सुनाने के लिए उदय भाई Uday Prakash
Comments