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रेलवे में सामंतवाद - सन्दर्भ जी एम इंस्पेक्शन, जबलपुर , दिनांक 19 मार्च 2015



जबलपुर स्टेशन पर हूँ प्लेटफॉर्म 6 पर एक अधिकारी स्पेशल खड़ी है जिसमे जी एम , डी आर एम और वरिष्ठ अधिकारी इटारसी जा रहे है आते समय ये हर स्टेशन का निरीक्षण करेंगे।


अदभुत ट्रेन , बाहर से सामान्य पर भीतर से किसी फाइव स्टार से कम नहीं ! हर अधिकारी के लिए एक डिब्बा, चपरासी, सोफ़ा, बिस्तर, गैस का चूल्हा और खाने पीने की तमाम व्यवस्थाएं! मतलब गजब। मैंने पहली बार इतने कम सफ़ेद हाथियों के लिए ऐसी सुविधायें और एक के लिए एक पुरा डिब्बा जैसी सुविधा वाली ट्रेन देखी। हर डिब्बे में सेवा सुरक्षा के लिए चार से पांच वर्दीधारी चपरासी और चार खाकी में तैनात जवान इन हाथियों के लिए।


कौन कहता है की हम लोकतंत्र में रह रहे है , अधिकारी लोक सेवक है और आम आदमी के लिए काम करते है। साला सब मुगालते दूर हो गए । टैक्स मेरे पसीने का और ऐयाशी ये करें - वो भी ऐसी ट्रेनों में ?


यार भाई बताओ ये माजरा क्या है। स्टेशन पर यात्रियों से ज्यादा पुलिस वाले, खोजी कुत्ते और सफाई वाले है, मने कि बोले तो हम आज भी ठिठुरते गणतंत्र के आख़िरी पायदान पर खड़े और शोषित होते दो कौड़ी के नागरिक (?) है इस महादेश के !!!!


भगवान् कसम, अभी ये ठाट बाट देखकर दिल बैठ गया। प्लेटफॉर्म पर हर कोई हैरान है और बुदबुदा रहा है , पर ना सवाल पूछने की हिम्मत ना प्रतिरोध की। ये कैसा जनतंत्र है मेरे खुदा।

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